मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

भागवत - एक परिचय

आज हम चतुश्लोकी भागवत को जानेंगे। कहा गया है कि भागवत के यह चार श्लोक पूरे भागवत को पढ़ने का फल देते हैं। सारे कार्य, सारी इच्छाएं इसे पढ़ने से पूरी होती हैं। यह चार श्लोक भगवान् ने कहे हैं, यह भागवत का बीज है। यह चार श्लोक ब्रम्हा ने नारद मुनि को दिया, नारद ने व्यास को, व्यास ने शुकदेव जी को, शुकदेव ने महाराज परीक्षित को और सूत जी को दिया। फिर ऋषियों के द्बारा आज यह अमृत हम तक आया। भगवान् ने स्वयं कहा है-.


भगवन उवाच-


अ हमेवासमेवाग्रे नान्यद यतसद्सत्परम।
पश्चाद हं यदे तच्च यो वशिश्येतसो स्म्यहम।


ऋइतेर्थ यत प्रतियेत न प्रतियेत चात्मनि।
ताद्विदात्मानोमाया यथाभासो यथा तमः।


यथा महान्ति भूतानिभुतेशुच्चाव चेश्वनु ।
प्रविष्त्तान्य प्रविश्त्तानी तथा तेषु न तेश्वहम।


एतावदेव जिग्यासं तत्व जिज्ञासु नात्मन:।
अन्व्याब्यातिरेकाभ्याम यत स्यात सर्वत्र सर्वदा।





सृष्टि के पूर्व में मैं था। न स्थूल था, न सूक्ष्म, न ज्ञान था न अज्ञान- जहाँ कुछ नही, वहाँ मैं ही मैं हूँ इस सृष्टि के रूप में जो कुछ दिख रहा है वो भी मैं हूँ। जो रहने पर भी नही दिखाई देता, उसे मेरी माया ही समझना चाहिए। शुरू में मैं ही था। जब कुछ नहीं था, उस समय जो भी था, वही ईश्वर है ,शून्य से सर्जन नही होता। तत्व की दृष्टि से यह सम्भव नही है। पहले बीज था तभी रचना हुई। जो था, जिसे भी बीज मानो वही ईश्वर है और वो हमेशा था। प्रकृति के रूप में होना ही उसका स्वभाव है। पश्चात् हम- जब सारी सृष्टि का विलय हो जाएगा, तब भी मैं ही हूँगा। यानी था और रहूँगा। हर चीज बदलती रहती है, शक्ति या पदार्थ का रूपांतरण होता है, नाश नही होता। जैसे कोई चीज जली तो पदार्थ बचा रह गया, द्रव अंतरिक्ष में किसी न किसी रूप में है। संसार में कई चीजे हैं, जैसे प्रेम जो दिखता नही, पर है। अन्वय- उसे कहते हैं, जब एक की उपस्थिति से दूसरे का एहसास हो जाए, जैसे दूर कहीं धुँआ दिखता है तो वहां आग का होना सिद्ध है। ठीक इसी तरह भगवान् दिखता नहीं, पर सृष्टि तो है न। कौन है इसका रचना कार? इतनी बड़ी, इतनी सुंदर, इतनी अकल्पनीय, इतनी विराट, इतनी अद्भुत इस सृष्टि का रचनाकार कौन है? व्यतिरेक- यही है, यह सृष्टि है इसलिए इसका रचनाकार भी होगा। वही है जिसे हम ईश्वर कहते हैं, वो न होता तो सृष्टि न होती। सर्जक बिना सर्जन के रह सकता है पर सर्जन तभी होगा जब सर्जक यानि बनाने वाला होगा। गायक बिना गीत के रह सकता है पर गीत तभी होगा जब गाने वाला होगा। सारे संसार को चेतना देने वाला दिखता नहीं, पर है। हम उसकी कृपा पर ही साँस लेते हैं, बदले में वो हमसे कुछ नही लेता। जब सारा संसार सो जाता है, निष्क्रिय हो जाता है, उसकी प्रकृति तब भी अपना काम करती है। वो हम सब की ख़बर रखता है कि किसे क्या चहिये। इस संसार को ईश्वर ने अपने रहने का निवास बनाया। संसार असार नही है, छल भी नही, झूठ भी नहीं, कहाँ जाओगे छोड़ कर? इसे अपने धर्म के पथ पर चल कर सुंदर बनाओ।


संसार में ईश्वर ने सुविधा की व्यवस्था की है, हम उसके बनाये इस घर को संवार कर स्वर्ग बना सकते हैं। उसने हमारे लिए समय निश्चित कर रखा है, जब तक रहो, बनाओ। यही सत्य है।


"श्री कृष्ण को, वासुदेव के पुत्र को, जिनका नाम हरि है, जिसको प्रणाम करते ही क्लेश का नाश हो जाता है", उन गोविन्द को नमन!


श्री कृष्ण ने भागवत में उद्धव को बताया है- अपने सम्पूर्ण विकास के लिए पाँच देवो की आराधना करनी चाहिए। गौरी पुत्र गणेश की, महादेव की, विष्णु की, सूर्य भगवान् की और पांचवी माँ दुर्गा की। स्वयं श्री राम और कृष्ण ने माँ भगवती की पूजा की है। अब अगर आप शैव हैं तो केन्द्र में देवाधिदेव "शिव" को, अगर आप वैष्णव हैं तो केन्द्र में "नारायण" को बिठाइए। बाकी चारों देवो को दरबारी बनाइये, इसे पंचायतन कहते है।


हमारे समाज में माँ का स्थान सबसे ऊँचा है। एक ऋषि ने कहा है- कोमलता में जिसका ह्रदय गुलाब की कलियों से भी कोमल है, जो दया का सागर है, पवित्रता में जो यज्ञ की महक के सामान, कर्तव्य में कठोर है, वही माँ है। यह अनोखी और अद्भुत कृति है। इसलिए देवों ने इनकी पूजा की। जो काम कोई नही कर सका, उसे जगत जननी ने किया। तीन रूपों में आदि काल से इनकी पूजा होती आ रही है- महा सरस्वती, महा काली, महा लक्ष्मी। माँ के ये तीनों रूप हमारे जीवन को पूर्णता प्रदान करते हैं। देवी पूजा शक्ति है और नारायण पूजा आत्मा। श्री गणेश विघ्न का नाश करते हैं। पाँच देवों की पूजा नित्य कर्म में शामिल करने से जीवन शुद्ध हो जाता है, रक्षा होती है, विवेक बढ़ता है, मन बलवान होता है, इन्द्रियाँ शुभ चिंतन करती हैं। दुनिया का सबसे बड़ा दुःख- दरिद्रता मिट जाती है।


भगवान् कहते हैं - जिसने अंत समय में मेरा नाम लिया, मैं उसका भी उधार नही रखता चाहे वह राक्षस ही हो, उसे भी तारता हूँ। प्रभु कहते है- यदि कोई तेरी निंदा करता है तो भी विचलित न हो। यह विश्व मुझसे ही निकला है, मैं ही सब में हूँ। मानव जन्म पुनीत है। शुद्ध प्रेम और ज्ञान इस शरीर से ही पाया जा सकता है। मृत्यु का ग्रास बनने से पहले अमरता को प्राप्त कर। गुरु की कृपा अनुकूल वायु है, ईश प्राप्ति लक्ष्य। प्रतिकूलता में भी चित्त की सम वृत्ति बनाए रख। विप्र और संत का अपमान कभी न करो। दानशीलता को ह्रदय में स्थान दो। जो कुछ भी सार्थक है, उसे पकड़ो, यही वैराग्य है। जीवन को बुद्धि के स्तर पर जियो, मन के नही। जीवन जब हर प्रकार से दोष रहित हो जाए व शुद्ध हो जाए, वही मुक्ति है। भक्ति अकाल मृत्यु हरती है। यह भाव की उच्चता है, प्रकाश है, जो ईश्वर का पथ है।


श्री कृष्ण शरणम् मम्।


हम अक्सर सुनते हैं कि धर्म, सत्संग और इससे सम्बंधित बातें सिर्फ़ सुनाने और सुनने में अच्छी लगती हैं, बाहर की दुनिया में इसे हम नही ला सकते, सब बेकार है। पर ऐसा नहीं है, हमें गंभीरता से विचार करना होगा, दृढ़ता के साथ अपने आदर्श से जुड़ना होगा। हमें यह सोचना चाहिए कि हम सर्वशक्तिमान से जुड़े हैं, वो हमें शक्ति देगा। हम क्यों किसी से झुके या गलत का समर्थन करें? शान्ति से सोचें, आप आनंद से भर जायेंगे और दूसरो को भी आनंद दे पायेंगे। धीरे- धीरे बदलाव होगा, जरूर होगा। आज जिस तरह का जीवन हम जी रहे है उसमें भौतिक सुख तो पा जाते है पर दूसरे क्षण फ़िर अशांति घेर लेती है। स्थाई सुख और शान्ति पाना है तो सर्व से जुड़ना ही होगा।


महर्षि व्यास ने देखा की किस तरह पुण्य क्षीण हो जाने पर आत्मा तरह तरह के दुःख पाती है। आत्मा हम सभी जीवों में है और वो, जो हम सब को निर्देशित करता है वो परम आत्मा है। आत्मा भी कई तरह की होती है, अच्छी और बुरी भी होती है और सब अपने प्रारब्ध के अनुसार भोग करती हैं। वो बीज है और हम सब उसके द्बारा लगाए फल। हम उसकी रचना हैं, वो हमारा रचयिता। आदमी सदियों से तलाश रहा है, उसकी तलाश परमात्मा पर जाकर रूकती है। वो न्यायाधीश है, अगर हमें कुछ चाहिए तो पहले अर्जी दो, उसके धाम में जाओ, प्रतीक्षा करो, न्याय मिलेगा। लोग कहते हैं- भगवान् हर जगह है, वो हर जगह नहीं है, पर वो हर जगह जा सकता अवश्य है, जहाँ पुकारोगे वो आएगा। उनका भी धाम है, वहां जाकर मिलो। जैसे किसी बड़े आदमी से उसके घर जाकर मिलो, अपनी बात कहो, तो वो सुनता है और कहीं राह चलते मिल जाए और आप कुछ कहो तो अपना कष्ट सुना कर मदद मांगो तो वो बात नही होती। घर जाकर मिलो तो परमात्मा खुश होते हैं, हमारा कल्याण होता है। नारायण!

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