गुरुवार, 24 मई 2012

शक्ति

तू ही  नारायण  तू ही  नारायणी।
तू  ही  शक्ति  तू  ही  ज्योति।

तू  ही  भू  लोक में तू  ही  भुवः!
तू  ही  दिन  रात  में, तू  ही ज्ञान  चित्त में।

तू ही उल्लास  में, तू ही  उत्साह  में।
तू  ही हर्ष में,  तू ही  विषाद  में।
तू  ही प्राण  में, मरण, हरण में।

निद्रा  तोड़ो  चित्त जगा दो।
मुक्त  स्वर  दो , मानस  रस  दो।

एक  काल  मेरा  दो।
अमरत्व, आलोक  दो।

त्रिभुवन  मोहिनी ,चिर  कल्याणी।
विश्व  विजयिनी, पुण्य पियुशिनी।

जगत जननी,  थोड़ी  महक  दो।

हे भय विनाशिनी, निखिल नाथ से मिला दे।
तेरी  आरती का दिया बनूँ, थोड़ी अगन दे।

सर्व व्यापिनी अंतर मन  विकसित कर।
निर्मल कर, उज्जवल कर, आश्रित कर।

चित्त  मेरा आनन्दित, निस्पंदित करो माँ।


बुधवार, 9 मई 2012

यौवन

अति उत्साही, अद्भुत शक्ति से भरा यौवन,
खुशियों  के ज्वार  में ,निर्बंध  बंधन  में,
अपने  ही नियमों में चलता  है यौवन।
बिना  सोचे  भूल  किये  जाना,
परिणाम  की परवाह से बेखबर,
बेखोफ  रहता  है  यौवन।

सीमोल्लंघन, अमर्यादित, चंचल यौवन,
गहरे संकट, ऊँची चढाई, सब  करने  को तत्पर  यौवन।
जीवन-  मृत्यु, झंझा-आंधी सब सहने को राजी यौवन।
बेचैन , विकल , अति  ज्ञानी,
अपनी धुन  में, स्वर्ण हिरन की चाहत में 
रहता  है   यौवन।

कोई न  रोको   कोई  न   बांधो,
मुझे  चाहिए   पूरी  आज़ादी,
मन  की  गति  से  चलता   यौवन।
चंचल  छलांग, उन्मुक्त उड़ान,
कल्पना  के  लोक   में ,
सपन  समंदर  में  विचरता  यौवन।
बाधा, दुःख  से  हाथ  मिलाता,
सबसे  आगे , सबके  संग  में,
सब  विधियों  में  जीवट  यौवन।
मैं हूँ  यौवन !!!