मंगलवार, 20 जनवरी 2015

आज .......

आज क्यों सूना क्षतिज है
अलसाई सी प्रतिध्वनियाँ
फिरे  बावरी  पगली सी
ठंडी है तपन इस बस्ती की
 क्यों की इंधन है दृग जल का
साँसों का नित आना- जाना
ज्वाला सी लगे अनल की
 जलती हैं सुप्त ब्यथाएँ -
क्यों सुने कोई ये कथाएं ?
खुद कहती हूँ खुद सुनती हूँ
फुर्सत में अश्रु की स्याही से
चुपके -चुपके कुछ लिखती हूँ !
ये राह तुम्ही ने दिखाई थी
इस राह पे मैं चल आई ,
तुम से ही उपदेशित हूँ
फिर आज क्यों धीर विकल हूँ
मृत्यु में भी जीवन है
इस रंग में ह्रदय रंग जाए
ये डीप मेरा जल जाए !

शकुन्तला मिश्रा