मंगलवार, 1 जनवरी 2013

नए साल में


काश ! की ऐसा हो जाए 
मैं जिस मोहन की राधा हूँ 
इस साल मुझे वो मिल जाए !
मेरे जीवन की वंशी को 
उसकी मंजिल मिल जाए !
दिन भर आँखों में  खुशियाँ हों 
रातें नीदों से भारी हों !
हूँ भीगी , धुली  खड़ी  अब तक 
मैं कब तक पंथ निहारूं ?
मर के फिर मैं मरती हूँ 
मैं हारी हूँ तुम जीते हो !
पर इक आधार जरुरी है 
जीवन में प्यार जरुरी है !
प्रिये तुम मेरा  विश्वास  बनो 
अपनी  दासी के श्याम बनो !
पथरीले फैले सूने में 
मैं होती जब अपने मन में !
दो आँखे तकती हैं ऐसे 
अम्बर भी हँसता है मुझपे !
प्रिय तुम तो अन्तर्यामी हो 
सारी जगती के स्वामी हो 
इक बार दरश गर हो जाये 
अम्बर भी धरा पर आ जाये !
मेरे अनंत सूने मन में 
अंतर के हर इक रग -रग में 
तेरी ही ज्योति  समां जाये 
तू मैं और मैं तू हो जाये 
ये साल मेरा ही हो जाये !