सोमवार, 21 नवंबर 2016

शरद पूर्णिमा

रुद्ध है आराधन का द्वार
सफल होगा कैसे आह्वान ?
मेरे उर का यह सिन्धु अथाह
जगा दी फिर दर्शन की चाह
कौन रोकेगा मेरी राह ?
ह्रदय में चलने दो यह राग
एक पल को तो जागे भाग
वेदना में भी जीवन  आज
 तपूँगी मैं पीडा के बीच
मिटाए कौन मेरा एकांत ?
वेदना के सन्मुख है  पर्व
मुझे दारुण दुःख देता आज
आज है महारास की रात
आज करना है कल्मष दाह
देवता भी देखेंगें आज
पूर्ण होंगे सबके अरमान |
चांदनी थिरक रही मधुबन
जले हैं अम्बर दीप अनंत
चीर कर आज निशा का अंध
चाँद भी उतरा धरती मध्य
उभर आया है आज ये मन्त्र
हो गया जीव आत्म निस्पंद ||

shakuntla mishra