शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

एक था मन

एक था मन !
बड़ी ऊँची उड़ान वाला !!
सब कुछ पाने की चाहत से भरा !
सब कुछ जीने की चाहत से भरा !!
एक था मन !
जीवन के ताप से अनजान !
नियति के चक्र से अनजान !!
एक था मन !
हर चुनौती देख लेंगे !
जंगे जीवन जीत लेंगे !!
सोचता था मन !
तय था खुशियाँ घर लायेंगें !
जी भर कर इसमें डूबेंगें !!
सोचता था मन !
पर रिश्तों से धोखा खाया !
साए में था धूप तपाया !!
छला गया तू -मन !
तेरी बुद्धि बुद्धू ठहरी !
फर्क समझ की थी न गहरी !!
चकित रह गया- मन !
दुनियां के जंगल में तूने !
नैतिकता को चला था छूने !
भटक गया तू -मन !
समय के पहिये पर थर्राया !
अडिग रहा ,फिर मुस्काया !!
धर्य वान तू -मन !
मन तू हार कभी न मान !
तिलकित कर तू अपनी शान !!
ज्योतिर्मय तू -मन !
आस भरा अनंत आसमा !
देख तारों का समां !!
सोचता क्या मन !
ठहरा वक़्त है किसका !
छोड़ सब -जिया है जिसका !!
नवांकुर हो तू -मन !
आशा का इक वृक्ष लगाकर !
नित नव कर्मो से सिंचित कर !!
महक उठेगा मन !
एक था मन !
एक था मन !!