सोमवार, 13 अगस्त 2012

मेघ

                                     
हिया हर्षा /पानी बरसा !
हुलसी हरी घास
झूमी मालती
फूटी नयी कोपले
वसुधा की  गोंद भरी !
वेदना गई चातक की !
सुरमई बादलों में ,कशीदा बिजली का
बरसे घन घनघोर, झांझर बाजे घन की !
सावन की आगवानी ,दामिनी दमकी !
नदियाँ युवान हुई   बोलीं -याद रहेगा ये मिलन !
गगन से  चाँद तारों ने देखा !
मैंने की दुआ तुम मेरे भारत में बसो !
तरलता से ,विरलता से , समृद्धी से ,सम्बन्ध से
सदा बहो ,सत्य बहो ,यही बसों ,जीवन रेखा सी !
नदियों तुम मेरे भारत में बसों ,भारत में रहो !!





शनिवार, 11 अगस्त 2012

तुम भी जी लो

                                                    
         

खिली कमलिनी  ,शरद चांदनी ,
अनकिये  क्षणों को, तुम भी  जी लो !

सोचा  था नहीं  देखेंगे ,पीछे  पलट  के ;
पर   नकारों  के  सहारे  कब  चला  जीवन !

साधना  रूकती  नहीं ,आलोक  भी  छिपता नहीं ;
झर गई  शाख  ही ,पर  माँग  है  रूकती  नहीं  !

सजाओ  भारत माँ को
रिद्घ  करो नदी और वन को ,
साफ़ रखो  हवा ,पानी को ,
तब  सिद्ध  करो मृत्युंजय  को !