बुधवार, 11 मार्च 2015

आस

नहीं रुकतें  हैं मेरे आस 

निरंतर करतें है उपहास 

कहें हैं -रुको गति है जहाँ 

क्या कहा ?

गति है नाम तो रुकना कहाँ ?

असंभव है ,जब तक है श्वास 

नहीं रूकती है गति कभी 

नहीं रुक सकती मेरी आस 

बड़े हैं दुःख ,वेदना यहाँ 

मगर मैं हो जाती निरुपाय 

रुके न आस ,रुके न गति 

तो कैसे रुकूँ ?कहो मैं हाय !

यही है जीवन का अधिवास 

मुझे है किन्तु त्रास में आस !


शकुन