नहीं रुकतें हैं मेरे आस
निरंतर करतें है उपहास
कहें हैं -रुको गति है जहाँ
क्या कहा ?
गति है नाम तो रुकना कहाँ ?
असंभव है ,जब तक है श्वास
नहीं रूकती है गति कभी
नहीं रुक सकती मेरी आस
बड़े हैं दुःख ,वेदना यहाँ
मगर मैं हो जाती निरुपाय
रुके न आस ,रुके न गति
तो कैसे रुकूँ ?कहो मैं हाय !
यही है जीवन का अधिवास
मुझे है किन्तु त्रास में आस !
शकुन
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