शुक्रवार, 24 जून 2011

मेरा गाँव

मेरे गाँव की प्राकृतिक सुन्दरता -


 
मुझे मेरे गाँव की सुन्दरता नहीं भूलती । बचपन में हिरनों की तरह दौड़ -दौड़ कर अपने कच्चे घर ,बाग़ ,तालाब,हरियाली सब बहुत याद आता है।

लिपा -पुता घर आँगन /तुलसी का चौरा जिस पर गोधुली में जलता दीपक, सोंधी खुशबू /कोने से चढ़ी हुई बेला की बेल जो शाम होते ही अपनी महक से चित्त को प्रफुल्ल करती।

दूर तक खुले आसमान, चिड़ियों का उड़ता हुआ झुण्ड, गोधुली के सिन्दूरी आसमान।


पेड़ों के पीछे बड़े से तालाब में जाता हुआ अद्भुत रंग लिए सूरज, गाय के पीछे घर आता उसका बछड़ा।

दादी माँ का स्नेह - अपने आँचल में बंधी कुछ मेवा मिठाई जो अलग से खिलाती थी, अपने पास बुला कर बातें करती।

अपने बाबा की नजर में मैं उनकी सबसे अच्छी पोती थी। पूरे गाँव में मेरी तारीफ़ करते, बहाने खोजते मुझे अच्छा कहने का।


मेरे गाँव का बड़ा सा तालाब /उसमे खिली कमलिनी जिसे मैं बड़े प्यार से देखा करती थी /कभी जब बादल घुमड़ कर आते और बड़ी तेजी से चलते तो लगता मेरा घर अगर थोडा ऊँचा होता तो मैं इनको छू लेती ।

पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर बैठी चिड़िया मेरे छोटे होने का अहसास दिलाती /पिंजरे में बंद मिट्ठू मुझे अपना लगता /वो कहता राम -राम बोलो ।

घर से ४० या ५० कदम की दूरी पर /बगीचे में बना दो कमरे आँगन के साथ ,आँगन में उतरी महुआ की डाली जो अपनी खुशबू से भरी थी /आँगन में लगा नीबू और अगस्त का पेड़ ।

आम के बगीचे में तेज हवा / अनगिनत आम को बगीचे में बिछा देती तो लगता बड़ी कीमती बस्तु मेरे बगीचे में है।

वह दिन बड़ी ख़ुशी का होता /एक -एक आम उठाना उसे टोकरी में भरना /बड़ा आनंद देता ।

मेरे गाँव की चांदनी सबसे उजली /बागों में आँगन में /फूलों में पत्तों में /सब जगह जाती

बड़े तालाब में जिसे हम सब सागर कहते थे उसमे अपना मुख देख कर जाती /अपने रूप को देख कर निहाल होती।

जाने कब बीता बचपन /एक दिन लगा हम अब बड़े हो गए /फिर अचानक एक दिन !

बाबा जी की छड़ी /उनका खडाऊं देखता रहा बिस्तर पर पड़े बाबा जी को ।

तुलसी ,गंगा जल और बाबा जी /पंडित ,अग्नि और आंसू /प्रकृति के नियम ।

इनमे होती प्राणों से प्राणों की बात नमन के साथ ।