मंगलवार, 10 मई 2022

मेरा शहर

 रोज सुबह मेरा शहर इंतजार करता है

ऐसे इन्सानो  की जो इसे  स्वच्छ रखते हैं 

यहाँ की प्र्कृती  को  सवारतें हैं 

इसे सुंदर व दर्शनीय बनाते हैं |

शहरी नियमों का पालन करतें हैं

ताकि इसका गौरव बना रहे |

मेरे शहर के बीच बहती 

गंगा से निकली गोमती कल कल बहती खुश रहती है 

इसके तट आशीष देते हैं उसको जो इसको साफ रखते हैं |

कभी शाम को आओ देखो आरती के आलोक को 

घंटे , शंख  और मंत्रो की गूंज सुनो देखो  उस अर्घ्य को 

जो सूर्य के ताप को  निचोड़ कर नदी मे विसर्जित कर देता है |

मेरे शहर का इतिहास गौरवशाली रहा है 

आक्रांताओ के खिलाफ हम आक्रोश रखते हैं 

लुटेरी संस्कृति  के खिलाफ हैं हम अपने शहर से प्रेम करतें हैं 

इस शहर मे मेरी पिछली औरअगली पीढ़ी रही है 

इस शहर सुख दुख दोनों दिये हैं ; दुख इतने की मैं पत्तियों की तरह टूटी 

पता नहीं ये शहर मेरे बारे मे क्या सोचता है 

शहर कुछ तू भी बोल 

शकुन्तला मिश्रा














सोमवार, 25 अप्रैल 2022

 एक तुम्हारा होना 

एक तुम्हारा होना क्या से क्या कर देता है 

बेजुबान छत , दीवारों को घर कर देता है |

जुबां तोतली , शब्द अनगढे 

फिर भी सार्थक लगता है 

बोल तुम्हारे बार बार सुनने को जी करता है |

आंखे बोले बैन सुरीले 

हाथ उठा कर सम्झना 

एक तुम्हारा होना सातो सुर भर देता है |

चितवन चंचल ,एक फांक नाक 

धीमी मुस्कान के बीच दो दाँत 

यह छवि तो मेरे  हृदय मे शिव बन रहती है |

शकुन्तला 


रविवार, 3 अप्रैल 2022

तुम आना

जब  मेघ घिरा अंबर हो  

विददुत मुस्कान बिछी हो 

तुम वारिद बन छा जाना 

तुम आना |

मैं श्रान्त पथिक रजनी की 

तुम निद्रा बन जीवन की 

इन पालको पर छा जाना 

तुम आना |

तुम नील कमल मधुवन के 

हिम तन मे बसो हृदय के 

जीवन स्पंद बनाना 

तुम आना |

क्षण क्षण असीम कोलाहल 

सुख दुख के कितने बादल 

वंशी स्वर बन मुसकाना 

तुम आना |

पथ देख रहे मेरे दृग 

भटक न जाए मन विहंग 

साँसो के होते आना 

तुम आना |


शकुन्तला मिश्रा