शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

vasant aaya

कण -कण सुंदरता विहरी 
शीतल निर्मल विभावरी 
नवल चुम्बित निर्जन वन 
कली -कली  उभरा मन 
आया वसंत सजन !
प्रियतम परिणय बेला 
धरती अम्बर डोला 
लगा सुमिलन मेला 
निर्जन न हो अकेला 
मुक्त नव प्रसंग सजन !
नस -नस उमंग भरा 
पूरित हुई है धरा 
पुलकित अम्बर ने वरा 
चपला सुरभि से भरा
सजल सकल अंग सजन !
युवा है वसंत काल 
पहने कलियों कि माल 
भरी है रंगों से थाल 
ता ता थई थई कि तान 
परिमल हर साज सजन !
स्वर्ग तो यही है सजन !