कण -कण सुंदरता विहरी
शीतल निर्मल विभावरी
नवल चुम्बित निर्जन वन
कली -कली उभरा मन
आया वसंत सजन !
प्रियतम परिणय बेला
धरती अम्बर डोला
लगा सुमिलन मेला
निर्जन न हो अकेला
मुक्त नव प्रसंग सजन !
नस -नस उमंग भरा
पूरित हुई है धरा
पुलकित अम्बर ने वरा
चपला सुरभि से भरा
सजल सकल अंग सजन !
युवा है वसंत काल
पहने कलियों कि माल
भरी है रंगों से थाल
ता ता थई थई कि तान
परिमल हर साज सजन !
स्वर्ग तो यही है सजन !