सोमवार, 18 जनवरी 2010

सफलता के सूत्र - १

बहुत से ऐसे लोग हैं जो जिंदगी को बेमकसद जीते जा रहें हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कुछ नया करने की सोचते ही नहीं हैं। जो जैसा है, उसे वैसा ही रहने देते हैं, हताशा और निराशा में जीवन काट देते हैं। कुछ लोगों को कामयाबी तुक्के से, कुछ लोगों को भाग्य से मिल जाती है।

बहुत कम ऐसे लोग हैं जो अपनी बुद्धि और कर्मठता के बल पर कुछ हासिल करतें हैं। अपने श्रम से जीवन को सफल और कामयाब बनाते हैं। कुछ अलग करते हैं, अपना एक मुकाम बनाते हैं।


यह लेख उन लोगों के लिए है जो भीड़ से अलग दिखना चाहते हैं।


हम अपने जीवन में सफल होने के लिए बहुत तरह से सोचते हैं, परेशान होते हैं। इस भागमभाग में तनाव, चिंता, दुःख आदि घेर लेता है। हम बिना सोचे करते चलते हैं फ़िर सोचते हैं, इतनी मेहनत करते हैं, पर संतुष्टि नही आती, कहीं पर कुछ कम लगता है या खिन्नता रहती है। इसका कारण ये होता है कि हम जानते ही नहीं कि कार्य की कुशलता में कमी कहाँ हुई है।

सफलता का अर्थ है किसी कार्य को कुशलता के साथ पूरा कर देना। जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करना और उसे पाना। एक के बाद एक प्रगति के पथ पर चलते जाना। यह एक ऐसा सफर है जो जीवन भर चलता है। इस सफर में ठहराव आने का मतलब है पीछे रह जाना, जिस समय आप रुक गए समझो वहीँ से आप पीछे जाने लगे।

किसी कार्य को कुशलता पूर्वक सफलता की और ले जाने के लिए उद्देश्य, सिद्धांत, योजना, अभ्यास, धैर्य, साहस और सतत प्रयास की जरुरत होती है। कई बार गलतियाँ भी होती हैं और असफलता भी मिलती है, पर उन गलतियों से सबक लेना चाहिए। गलती को सुधार लेने पर सफलता हाथ आती है, अन्यथा नहीं। जब तक गलतियों को सुधरने का प्रयास नही करेंगे, तब तक सफलता की राह में रुकावट आती रहेगी। कभी कभी सफल न होने पर, यह सोच कर बैठ जाना कि यह नहीं हो रहा- नहीं कर पा रहा, यह सोच कर काम न करना कमजोरी है या काम न करने का बहाना भी हो सकता है।

अयोग्यता, अनुशासन की कमी, ज्ञान का आभाव और भाग्यवादी दृष्टिकोण भी सफलता की राह में बाधक होते हैं, सफल होने के लिए छोटे-छोटे काम को भी धैर्य के साथ मन लगा कर करना चाहिए। कठिनाइयों का सामना साहस के साथ करने से सहायक भी मिल जाते हैं।

यदि कोई हमारी आलोचना करता है तो उसको धैर्य पूर्वक सुनना चाहिए, फ़िर उस पर विचार करना चाहिए। आलोचक यदि सही है, अर्थात वो जो कह रहा है, सच है, तो उसको अपना मित्र समझना चाहिए, और अगर वो अनाप शनाप बोल रहा है तो उसे अनसुना कर देना चाहिए। इस तरह का व्यव्हार करो जैसे तुमने उसे सुना ही नहीं। स्वस्थ आलोचना हमारा मार्ग दर्शन करती है और उसी में से सफलता का सूत्र निकल आता है।

सफल होने के लिए दृढ़ इच्छा का होना जरुरी है क्योंकि सफलता इतनी सहज नही होती की आसानी से मिल जाए। हाँ, हर सफलता के बाद शक्ति, साहस और उत्साह अवश्य बढ़ जाता है।

कभी कभी कुछ ऐसी गलती हो जाती है जिसके कारण मन को सीधे चोट लगती है। कुछ दिनों तक हर तरफ अँधेरा ही दिखता है। कभी कभी जीवन ज्योति बुझने लगती है। ऐसे में ज़रा रुकें, अपनी पिछली सफलताओं को देखें, और देखें कि अतीत में इस प्रकार की उलझनों को आपने किस प्रकार सुलझाया था, उनसे जूझने का कौन सा रास्ता अपनाया था। यह सब सोचिये, फ़िर राह मिल जाएगी, ह्रदय के घाव जल्दी भर जाएंगे, जीवन के प्रति पुनः एक आशा जागेगी।

आशा एक ऐसी ज्योति है जो दुर्गम अन्धकार में भी प्रकाश देती है। यह प्रकाश आपका अपना होता है और इसके सहारे कठिन रास्ते कट जाते हैं। आशा को भगवान् कहा जा सकता है क्योंकि यह हमें विकट परिस्थिति से उबार लेती है।

जब आप किसी दुःख या समस्या से घिर जाएं, तो अपने अतीत में जाकर देखें कि इस तरह की समस्या का सामना पहले आपने किस प्रकार किया था, और आज आप क्या कर सकते हैं। इसे किस प्रकार सुलझा सकते हैं। उस समय आपने कौन सा निर्णय लिया था, और आज आप क्या कर सकते हैं।

कभी कभी ऐसा भी होता है कि हम दूसरों की चालाकियों का शिकार बन जाते हैं, या उनकी धूर्तता भरी बातों में आ जाते हैं। ऐसे में अपने संतुलन को बनाये रखें और विचार करें कि भविष्य में आपका व्यवहार उनके साथ कैसा होना चाहिए। उनके कपट का मन पर गहरा असर भी पड़ सकता है। अपनी कुंठा से मुक्त होने के लिए अपनी भावनाओं को एक कागज पर लिख कर रखें। ऐसा करने से मन में मुक्त भाव आ जाता है। यह भी एक प्रकार का उपचार है, इससे मन के ज़ख्म जल्दी भर जाते हैं, मन शांत होता है।

एक बात बड़ी सावधानी के साथ और ऊँची अवस्था में सोचनी चाहिए कि हमें अपने जीवन को किस प्रकार और कितना अच्छा प्रयोग में लाना है। अपने को किसी ऊँचे आदर्श से जोड़कर देखना चाहिए और मुक्तता का अनुभव करना चाहिए। अपनी नज़र में अपनी ऊंचाई, अपनी प्रतिष्ठा, अपना आदर्श हमेशा बना कर रखना चाहिए।

किसी भी कार्य को पूरी तरह करने के लिए कुशलता के साथ कार्य की निरन्तरता भी आवश्यक होता है। ऐसा नहीं करना चाहिए कि आज किया, फ़िर कुछ दिन आराम करें, फ़िर करें। ऐसा करने से कार्य तो रुकता ही है, वह ठीक तरह से होता भी नहीं क्योंकि एकाग्रता भंग होती है। मन उतना नहीं लगता जितनी उस कार्य को जरुरत होती है, और सफलता भी रुक जाती है, आपके साथी आपसे आगे हो जाते हैं। इसलिए अपने काम को एक रफ़्तार देनी होगी तभी सफलता प्राप्त होगी, आवश्यक समय और प्रयास निरंतर देना होगा।

सफलता कोई ऐसी वस्तु नहीं है कि आपने माँगा या चाहा और आपको मिल गई। इसे तुंरत प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, इसमें लगातार परिश्रम करना होगा। एक कठिन परिश्रमी व्यक्ति ही सफलता पाता है, और अपने कारण पाता है, दूसरों के कारण नहीं। इसीलिए सफल व्यक्ति याद किए जाते हैं।

जीवन को ठीक तरह से जीना भी एक कला है और यह कला जरूर आनी चाहिए, तभी जीवन का आनंद आता है। जीवन को अच्छी तरह जीने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, मानवीय मूल्य, नैतिक मूल्य और नियमों का आदर पूर्वक अनुशासन के साथ पालन करना चाहिए। तब कहीं एक सशक्त चरित्र बनता है, तब आप एक विशेष व्यक्ति जाने जाएंगे। अपने मूल्यों को प्रतिबिम्बित करें, ऐसा जीवन होना चाहिए। आपके आदर्श खोखले न हों, आप उनके प्रति इमानदार हों, और सच्चाई बरतें, तो प्रसन्नता बनी रहेगी। परन्तु यह एक कला है, जो इस तरह के व्यक्तियों के संपर्क में आकर जल्दी सीखी जा सकता है।

अगर आप चाहते हैं कि आप में आत्मविश्वास बढ़े तो किसी को नीचा दिखाने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करके आप अपनी मित्रता का दायरा बढ़ा लेंगे। कोशिश करें कि जिन्होंने आपको कष्ट दिया, उनके लिए भी कठोर भावनाएं न व्यक्त करें। उनके पीठ पीछे भी उनकी निंदा से बचना चाहिए।

अपनी सोच को सकारात्मक रखें पर हर किसी पर भरोसा न करे। ईर्ष्यालु प्रवृत्ति के लोगों से दूर रहे ये आपको लड़ने पर विवश कर देंगे और इस तरह की दाँव-पेंच भरी बातें करेंगे कि आप लोंगो के बीच शर्मिंदा हो सकते हैं। ऐसे लोग मौका खोजते रहते हैं। किसी की निंदा से भी अपने को दूर रखें। सामंजस्य को बढ़ाने की कोशिश करें, एक बेहतर इन्सान बनें, सफलता जरुर मिलेगी।

किसी को अपशब्द कभी न कहें। जब आप क्रोध में हों तो एक गिलास ठंडा पानी पिएँ, सोचें कि आपके क्रोध का कारण क्या है, किस बात पर है, वजह कहाँ है, क्यों है। हो सकता है समाधान भी आपके पास ही हो। अपने क्रोध पर काबू पाने की ताकत हम सब में होती है, केवल संयम पूर्वक काम लेना आना चाहिए।

अक्सर क्रोध में हम अपना ही नुक्सान कर लेते हैं, हम किसी को क्रोध करके नही बदल सकते। हर एक का अपना एक स्वभाव होता है, उसे समझना चाहिए और नकारात्मक प्रभावों से बचना चाहिए ताकि हमारी खुशियाँ हमसे छिन न जाएँ। अपने जीवन पर और अपनी खुशियों पर ग्रहण न आने दें।

ईर्ष्यालु और क्रोधी लोगों को उपेक्षित कर दें अथवा किसी बात का उचित समाधान रख कर हट जाएँ, अपना काम करें। इस प्रकार आप उनके पीड़ादायी व्यवहार से बच सकते हैं। सबसे अच्छा तो यही होगा कि आप उनके सामने आने से बचें और उनको यह भी न पता लगने दें कि आप उनसे दूर रहना चाहते हैं। यह एक सुरक्षा का तरीका है जो आपका बचाव कर देगी।

श्री कृष्ण ने गीता में कहा है- संशयात्मा विनश्यति! अर्थात- जिसमें संशय हो उसका विकास नही होता।

किसी काम को करने के पहले अगर मन में दो तरह के विचार रहते हैं कि करें या न करें, इसे करने लाभ होगा या नहीं, मन की यह स्थिति असफलता की तरफ़ ले जाती है। काम के पूरा होने से पहले फल की कल्पना करना और कामना करना ग़लत है, ऐसा करने से कर्म करने की कुशलता घट जाती है क्योंकि मन संदेह के घेरे में रहता है। पूरी तरह मन को एकाग्र करके कर्म करने से काम तो कुशलता से होता ही है फल भी अवश्य अच्छा आता है।

अपनी आलोचना से न तो डरें न घबराएँ। है तो यह बहुत बहादुरी वाला काम, इसमें अन्दर की ताकत ही काम आती है। तो अपनी आलोचना को साहस के साथ स्वस्थ मन से सुनें और कहीं कमी है तो उसे सुधारें। अपना विश्लेषण ठीक ढंग से करें, सफलता मिलेगी।

आलोचक अगर आपकी गलती की और आपका ध्यान दिलाता है, तो इसे ग़लत न समझें। खुशी से मान लें। उसे धन्यवाद देकर अपने को बदलने की कोशिश करें।

सफलता पाने के लिए उसकी ऊँचाई और अपना स्थान जान लें कि आप कहाँ हैं और अभी कितना जाना होगा। हममें कितनी कुशलता है, क्या कमी है, क्या खूबी है, क्या अच्छा है और क्या ख़राब है। मुझमें क्रोध, ईर्ष्या, अहंकार, अज्ञान, प्रेरणा, संवेदना, विनम्रता, क्या सब कुछ अनुपात में है।

अक्सर जब कोई हमारे बारे में पूछता है तो हम केवल यही बता पाते हैं कि मेरा नाम यह है, मेरा घर यहाँ है, मेरे पिता यह हैं, भाई-बहन, गाँव, शहर का नाम आदि। पर मैं ख़ुद के बारे में कुछ नही बता पाता। जब हम अपने बारे में सब जानेगे तभी सफल होंगे।

जिज्ञासा का भाव और उस पर चर्चा हमें नए आयाम देती है। सोचने का दायरा बड़ा बनाती है और खोज का रास्ता दिखाती है। जिज्ञासा एक नए प्रकार से समाधान करना भी बताती है और यह हमें सफलता की ओर ले जाती है।

हम अक्सर दुखी हो जाते हैं कि हमें अमुक ने परेशान किया या पीड़ा दी, गाली दी। किसी ने यह सब किया और गया। वो गया और हम उसकी बातों को लेकर चिंता में चले जाते हैं, बहुत परेशान हो जाते हैं। कई दिन तक खाना बंद, कुछ भी अच्छा नहीं लगता। पर जरा गहराई में जाकर सोचें तो पाते हैं कि वो व्यक्ति तो बोल कर चला गया, अब हम ख़ुद उसे सोच कर अपनी पीड़ा को बढ़ा रहे हैं और यह पीड़ा जो हम ख़ुद को दे रहे है ये मेरी ही गलती है ऐसे में सुन कर ख़त्म कर देना चाहिए, सोच कर अपना मन ख़राब करना निराधार है। शान्ति से रहना चाहिए, इसमें सफलता का सूत्र है ।

जो बात हमारी चिंता का कारण बन जाती है, वह हो कर वहीँ ख़त्म भी हो जाती है और हम उसे सोच कर बढाते रहते हैं और तरह तरह के विचार करते हैं। इस प्रकार हम अपना नुकसान ख़ुद ही करते हैं, इस अवस्था से बचना चाहिए।

जीवन के घाव चाहे जिसने दिए हों, चाहे जितने गहरे हों, चाहे जैसे हों, अगर जीना है तो उसे भरने के लिए स्वयं प्रयास करना होगा। मैंने लिखा, "अगर जीना है तो", क्योंकि हम घावों के साथ जीवन नही जी सकते। ज़िन्दगी ज़िंदा रह कर ही चलती है, और कोई दूसरा उसे भर नहीं सकता। कोई आपको सांत्वना देगा, समझा देगा, पर घावों पर पट्टी ख़ुद ही करनी होगी। उसे भरना तो हमें ही पड़ेगा। यह तभी भरेगा जब हम इसे भूल जाने की चेष्टा करें, दर्द को छोड़ने की चेष्टा करें, तभी खड़े हो सकेंगे जब हम स्वस्थ हों।

हम अपनी किसी भी परेशानी को तभी दूर कर सकते हैं जब अपनी मदद ख़ुद कर सकें, अपने ही प्रयास से हम अपनी जिंदगी को बदल सकते हैं।

दुनिया में बहुत से लोगों ने अपनी ताकत के सहारे अपनी बेचारगी दूर की है, और एक मिसाल कायम की है। ज़िन्दगी से लड़ना पड़ता है, तभी यह बदलती है, और तकलीफें भी तभी दूर होती हैं जब जीत की ताकत रखते हों।

जीवन में किसी प्रकार की क्षति हुई हो तो आप उसके बोझ को लेकर नहीं जी सकते, इससे धीरे धीरे जीवन ज्योति कम होती जाएगी। दर्द एक प्रकार का रोग है। रोगी आदमी क्या कर सकता है? उसे इलाज की जरुरत होती है ताकि वह स्वस्थ होकर फ़िर से काम करने लगे। इसी प्रकार अपने मन या तन के दर्द का इलाज भी करना होगा। मैं खुश रहूँगा, मैं यह करूँगा, ऐसा सोचकर ख़ुद को विश्वास दिलाना होगा। गौतम बुद्ध ने कहा है- अप्प दीपो भव।

याद रखिये जीवन में अपना विवेक ही अपना सच्चा साथी है। अपनी बुद्धि श्रेष्ठ हो, इसका प्रयत्न हमेशा करना चाहिए क्योंकि बुद्धि के द्वारा सब कुछ जीता जा सकता है और सब कुछ पाया जा सकता है।

जीवन में धैर्य एक आवश्यक गुण है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। उतावलेपन और घबराहट से काम बिगड़ जाता है, धैर्य से काम में कुशलता आती है। धैर्य का सम्बन्ध मन की शान्ति से होता है। आपके पास धैर्य और शान्ति, अगर दोनों है, तो मानिए की आप बहुत सुखी हैं। मन अगर दुखी है तो अमृत भी स्वादहीन है, व्यर्थ लगेगा। किसी प्रकार का तनाव, भय, चिंता हमारी अशांति का कारण बन जाता है। आवश्यकता है एक संकल्प लेने की- हम शांत रहेंगे! एक दिन यह आदत में शामिल हो जाएगा।

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

सफलता के सूत्र

क्रोध-
सफल होने के लिए क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए। कभी-कभी यह बहुत कठिन हो जाता है पर इसका दूर गामी परिणाम अच्छा होता है। यह एक प्रकार की साधना है। कोई आपकी आलोचना करे तो क्रोधित न हों। इसी प्रकार कोई प्रशंसा करे तो खुश भी नही होना चाहिए। दोनों स्थितियों में सहज भाव का प्रदर्शन करना चाहिये, सम दृष्टि रखनी चाहिए।

कुछ लोग कहते हैं कि परिवार की एकता के लिए किसी के बुरे बर्ताव पर ध्यान नही देना चाहिए, पर ये ठीक नही लगता। एक सीमा के बाद किसी का बुरा बर्ताव सहना कठिन लगने लगता है। कुछ लोग कहते हैं- बड़े कुछ भी कहें, उसे आशीर्वाद मानना चाहिए। पर बड़े जब सरेआम अत्याचार करने पर, आरोप और लांछन लगाने पर उतारू हों तो चुप हो कर रहना उनके आरोपों को सही साबित करना है। और अगर कोई द्वेष वश कुछ हानि करे, सामजिक या आर्थिक, परिपक्व अवस्था में होने के बाद भी बार बार दुष्टता पूर्ण बर्ताव किए जा रहा है, तो क्षमा करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में स्वाभिमान की रक्षा नही होती तो एक दिन भयावह स्थिति आ जाती है, और हम उसके शिकार होंगे। इसलिए इसका ख्याल रखना चाहिए कि यह सब एक सीमा तक ही ठीक है। जब सीमा पर होने लगे तब स्वयं को उनके दुर्व्यवहार का पात्र नही बनने देना है।

परिवार हो या रिश्तेदार, किसी को यह हक़ नहीं है कि वो हमेशा नीचा दिखाने का अवसर खोजता रहे। इस विचार से हर कोई सहमत होगा कि अपशब्द कहने का अधिकार किसी को नहीं है। परिवार का ही कोई भी हो, अगर वह सामाजिक लिहाज नहीं रखता, तो ऐसे व्यक्ति से मिलने में भय लगता है।

अपने क्रोध को सकारात्मक तरीके से व्यक्त करें, स्वयं को हीन स्थिति में न आने दें और न ही भयभीत हों। अपनी आंतरिक शक्ति और साहस को बनाये रखें। अपने को स्पष्ट तरीके से पेश करें, अपनी बात स्पष्ट कहें।

अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति के सामने आ जाते हैं जिसकी उपस्थिति में आप असहज हो जाते है, तो उससे अपने को अलग कर लें, वहाँ से हट जाएँ। पर अगर ऐसा सम्भव न हो, तो जब तक जरुरी हो, रुकें, उसके बाद हट जाएँ। किसी नकारात्मक व्यक्ति को अपनी प्रसन्नता नष्ट करने का मौका न दें। आप अपनी योग्यता और श्रेष्ठता की और जाएँ।

दुष्ट लोगों में हमेशा एक असुरक्षा की भावना रहती है, इसलिए वे नीचा दिखाने के कोई मौके नही छोड़ते। जीवन में यह सब झेलना पड़ता है, प्रायः सभी को। पर आपकी अपनी श्रेष्ठता आपको सफल बना देती है।

तनाव-

अगर आप इसमें डूबे हैं तो क्यों? इस क्यों का जवाब आप ख़ुद से पूछिए, कारण खोजिये, फ़िर उपाय खोजिये।

कभी -कभी अचानक न चाहते हुए भी कुछ हो जाता है जो जीवन में तनाव ला देता है। पर सोचिये, क्या हम समय को बाँध सकते है? नहीं!   इसलिए जो परिवर्तन हुआ उसमें सहजता खोज लीजिये। क्या पता आगे इससे भी बड़ी कोई समस्या हमारा इन्तजार कर रही हो या फ़िर आज के दुःख में कल का सुंदर समय छिपा हो। तनाव में आने पर तरह तरह के कुविचार भी आते हैं, और फ़िर छोटी सी बात बहुत बड़ी लगने लगती है। पर इसमें से निकल आने से बड़ी बात भी छोटी हो जाती है। करके देखिये...!

तनाव में हमारी रचनात्मक शक्ति बिल्कुल, बिल्कुल ख़त्म हो जाती है, और हमारे आस-पास जो कुछ हो रहा होता है, सब ठप्प हो जाता है। हम ठहर जाते हैं, जीवन की गतिविधियों पर बुरा असर पड़ता है, और इस प्रकार का वातावरण हम ख़ुद बनाते हैं। सोच कर देखिये...!

तनाव में आकर हम अपना ही नुकसान करते हैं। हर तरफ़ से हमारा चिंतन परिस्थितियों को सुधारने की तरफ़ होना चाहिए। दुःख में बैठे रहने से कुछ नहीं होने वाला। दुखी बैठे रहने वाले की तो ईश्वर भी नहीं मदद कर सकते। जब हम अपनी मदद करेंगे तो ईश्वर हमारा साथ देगा। है तो यह साहस का काम। वो बहादुर है जो संकट से निकलना जानता है, और अगर भविष्य सुखद बनाना है तो यह करना ही पड़ेगा। ख़ुद को ही करना पड़ेगा।

अच्छे जीवन को पाने के लिए पथ में आने वाले काँटे ख़ुद ही हटाने होंगे। इसलिए चिंता सुखद बदलाव की करना चाहिए।

हमारी सफलता में ईश कृपा भी रहती है और कृपा पाने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए। प्रार्थना में बड़ी ताकत होती है। अगर ऐसा न होता तो इसका वजूद न बना रहता। इस अभिव्यक्ति में बड़ी ताकत है, इससे क्षमा की शक्ति बढ़ जाती है, मन शांत होता है और हमारी आंतरिक उर्जा का विकास होता है। कभी-कभी हमारी कामना उसकी ओर से नहीं सुनी जाती। इसका अर्थ यह है की रुको, अभी वक्त नही आया है। हो सकता है कि हमने जो माँगा है, कुछ समय बाद वो हमें इससे बेहतर देना चाहता हो।

कभी तो उसकी तरफ़ से एकदम निषेध हो जाता है, और कभी कामना पूर्ण हो जाती है। उसके निषेध को भी हमें सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए, उसे ईश्वर की सदिच्छा मान कर सहर्ष रहना चाहिए।

एक सफल व्यक्ति के काम करने का तरीका अलग होता है, उसका चिंतन लीक से हटकर होता है। वे यह नही देखते की अमुक ने इसे ऐसे किया है तो हम भी इसी तरह करें। वे उससे बेहतर तरीका खोज लेते हैं। सफल व्यक्ति काम के प्रति गहरी समझ और समर्पण रखते हैं। वे काम के रास्ते में आने वाली रुकावटों के प्रति लापरवाह होते हैं।

काम रूचि वाला हो तो करने में मजा भी आता है। इसलिए जिसमें रूचि हो, उसी काम को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए। कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई कार्य कुशलता से किया जाता है, पर  मनचाहा नतीजा नहीं आता, ऐसे में उसी नतीजे में शुभता खोज लेनी चाहिए।

यदि कोई व्यक्ति हमेशा आपके खिलाफ हो तो इससे भी काम में बाधा आती है, और उसे लेकर अगर आप तनाव में रहते हैं तो उसका तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, और न ही वह सुधरेगा, क्योंकि हो सकता है कि वह ऐसा ही बना हो। कुछ लोग अपने स्वभाव को नहीं छोड़ सकते चाहे आप कुछ भी कर लें। ऐसे में चिंता त्याग कर अपने ताकत बढ़ाएं, अपनी सोच उन्नत करें। दुनिया में हजार ऐसे लोग मिलेंगे, आप किस-किस की चिंता करेंगे? अपनी नकारात्मक सोच को छोड़ देने की आदत बनाएं, अभ्यास करें, जरूर करें। वर्तमान तो सुंदर होगा ही, आनेवाला कल भी सुंदर होगा।

सदगुण और मूल्यों का समावेश इंसान को बेहतर बनाता है, और ऐसा इंसान ही एक सुंदर परिवार बनाता है, परिवार से समाज, फ़िर समाज से देश सुंदर बनता है। सदगुणी इंसान सबको प्रिय लगता है, और जो हमेशा खुश रहता है, उसके आसपास सब कुछ मुस्कुराता हुआ होता है। सदगुण एक सफल व्यक्ति को धारण करता है।

सदगुण व्यक्ति में हीन भावना नहीं आती है। वह विपरीत समय को अनुकूल बना लेता है, और आत्म विश्वास से सकारात्मक बदलाव लाता है।

सफलता पाने के लिए तन और मन दोनों स्वस्थ रहना चाहिए। तन स्वस्थ रहता है पौष्टिक आहार से, मन स्वस्थ रहता है खुश रहने से। आस्था की राह मन को ताकत देती है। मन की ताकत में धर्म का अहम् कार्य होता है। अगर आप धार्मिक हैं तो धैर्य अवश्य होगा, आत्म नियंत्रण होगा। मन में हमेशा एक उर्जा का प्रवाह बना रहेगा, वह कभी ग़लत काम नहीं करेगा। एक धार्मिक व्यक्ति में उसूल होते हैं, जिनके ख़िलाफ़ वह कभी नही जाता और नीतिक जीवन जीता है।

धार्मिक व्यक्ति उस पर भरोसा करता है जो परम शक्तिशाली है इसलिए आस्थावान व्यक्ति अधिक सफल होता है। आस्था व्यक्ति को सहन शील बना देती है। आस्थावान व्यक्ति में कष्ट सहने की बहुत क्षमता होती है। वह किसी भी तकलीफ को चुपचाप पी जाता है। हाय हल्ला नही करता, वह रोता भी है तो अपने इष्ट के सामने। उसकी आस्था उसे दुनिया के सामने नहीं रोने देती। एक धार्मिक मानव अन्य लोगों की अपेक्षा २५% अधिक खुश रहता है और सफल भी।

दुःख, पीड़ा या बाधा को जीवन का हिस्सा मानो, ऐसा संत कहते आए हैं और देखने में भी आता है। जैसे रास्ते में पहाड़, नदी, नाले, कांटे सब आते हैं, पर हम अपना रास्ता बना कर पार कर लेते हैं, इसी प्रकार जीवन पथ में सबकुछ मिलता है, बात होती है अपने विवेक को व्यवहार में लाने की। अपने कौशल और बुद्धि से हम अपना रास्ता बेहतर बना सकते हैं, अपना जीवन सँवारना बहुत कुछ अपने हाथ में होता है। हमें अपने आस-पास कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे।

व्यर्थ के विचार हमारी चिंता के कारण बनते हैं, इनको मन में नहीं आने देना चाहिए और अपने लक्ष्य पर नजर रखना चाहिए, अपनी गति तेज़ करनी होगी ताकि जल्दी रास्ता कट जाए। सजगता भरी नजर रखनी चाहिए, सजग न रहने पर धोखा मिलेगा। आजकल तो बैंक में भी धोखा मिलता है, वहां के कर्मचारी ही आपको ठग लेंगे अगर आप पूर्ण सावधान नही हैं। एक समय ऐसा था जब अंगूठा छाप आदमी भी बेधड़क बैंक जाकर अंगूठा लगाकर रकम जमा कर आता था। आज तो बड़ी सफाई से वहाँ पैसे हड़प लिए जाते हैं। आज बैंक के कर्मचारी ग्राहक की सुविधा से मतलब नहीं रखते, इसलिए अपनी सजगता ही काम आती है।

जीवन में सफल होने के लिए कार्य की कुशलता और लगन मूल मन्त्र होना चाहिए। तनाव के साथ काम करना काम को बिगाड़ देता है। काम कुछ भी हो, कोई भी हो, मन लगा कर करना, सफलता का सूत्र है।

अगर आप खाली हैं तो कुछ काम निकाल लें ताकि मन उलझनों से दूर रहे। जैसे- घर की सफाई, पेड़ पौधों की देख-रेख, पक्षियों को दाना देना, पालतू पशु है तो उसके साथ खेलना, घर की पुरानी और बेकार वस्तुओं को निकालना, और अगर ये भी न करने को हो तो ख़ुद की देख-रेख करना, ख़ुद को सँवारना चाहिए। इससे भी मन खुश हो जाएगा, अपनी देख भाल करना भी एक जरुरी काम है।

अपने को उर्जावान बनाये रखने के लिए सुबह ही अपनी कार्य प्रणाली तय कर लें कि आज क्या-क्या करना है, अपनी कौन सी कमी से मुक्त होना है। आप सोचें कि आज का दिन किस प्रकार आप बहुत अच्छा बना सकते हैं। केवल जी लेना ही पर्याप्त नहीं मानना चाहिए, यह तो सब कर लेते हैं। आप अपने हर काम को उत्सव बना लें, खान-पान, व्यवहार, वार्तालाप, पहनावा सब कुछ। अपने खुश होने का यह अच्छा स्रोत है।

आप अपने इष्ट के ध्यान में डूब जाएं, कुछ देर सुंदर कल्पना में खो जाएं। फ़िर नए-नए आयाम खुलने लगेंगे, आत्म विश्वास बढेगा। अपने बगीचे को सुंदर बनाएं, प्रकृति को जगह दें, आप पुलकित रहेंगे। सुबह की लाली को निहार कर देखिये, सुबह की हवा ताज़ी खुशबू से भरी होती है, इसके साथ रहकर ताजगी आती है, उत्साह आता है। जीवन में सफलता लाने के लिए खुश रहना बहुत आवश्यक है। दुखी मन अपनी योजनाओं को आकर नही दे पाता। खुश रहना है या दुखी रहना है यह बहुत कुछ आपने पर निर्भर है।

जीवन में ऐसा भी होता है कि किसी काम को हम शुरू करते हैं बड़े उत्साह से, पूर्ण सफलता की कामना के साथ, पर पर बीच में बुझ से जाते हैं, उत्साह गिर जाता है, तो ऐसे में अपना काम बंद नही करना चाहिए, उसे अपनी योजना के अनुसार करते रहना चाहिए।

जीवन में उत्साह कायम रखने के लिए भी उपाय करते रहे अपने आस पास के कामयाब लोगो का संग करे ,अच्छी पुस्तके पढ़ें ,प्रसिद्ध विचारों को पढ़े ,उनका संग्रह करे ,प्रेरणा दायक विचारों को लिखकर अपने सामने रखे उनको रोज पढ़े उत्साह वर्धन होगा । धीरे धीरे उसे अपनी चेतना में बसा ले भावनाए स्वतः सकारात्मक होती जायंगी । जीवन की बाधाओं से लड़ने की कुशलता आएगी । अपने आप से वादा करें की खुश रहना है ,कुछ करना है ,मुसीबतों को सहज लेना है ,खुशी को भरना है जीवन सरल हो जायगा ।

एक बात पर गहराई से विचार करें। जब भी कोई कठिन समय आता है तो वह हमें और अधिक ताकत दे जाता है। इस प्रकार कठिनाइयाँ और अधिक सहस बटोरने का अवसर देती हैं। हम और अधिक सीखते जाते हैं, हमारे अनुभव बढ़ते हैं। आपने अनुभव किया होगा जब शुरू में एक छोटी से चोट बहुत तकलीफ दे जाती थी कुछ समय बाद वही चोट मामूली लगने लगती है क्योंकि तब तक हमारे पास और शक्ति आ जाती है ।

ईश्वर हमें रोज मौका देता है जीवन को उन्नत करने का बस यह हमारी बुद्धि पर निर्भर करता है की हम क्या चुनते हैं और कितना लाभ ले पाते हैं ।

जीवन निरंतर एक चुनाव की प्रक्रिया में रहता है यह सुनने में कुछ अजीब लगता है पर आप , पल -पल सोच कर देखे हमेशा हम एक चुनाव की प्रक्रिया से गुजरते हैं ।

जीवन यात्रा में यात्री को यह मालूम होना चाहिए की हम कहाँ से चलें हैं, कहाँ जाना है । कठिनाइया आए तो कैसे उनसे पार होना है हमें कितनी क्षमता है ,दक्षता है ।

समय कभी नही रुकता न किसी के लिए शोक मनाता है यह निरंतर चलता रहता है इसलिए असफल होने पर पुनः प्रयास करें । विश्स्वास के साथ प्रयास करें संशय हमारे काम को कुशलता से नही होने देता ।

हर पत्थर की तकदीर बदल सकती है ,सलीके से उसे तराशा जाए ।

२६ /९ /०९/

सफलता का सूत्र हम एक बच्चे से लेते है -आइये देखे एक बच्चे से हम कैसे सीख सकते है ?

एक बालक हमेशा प्रसन्न रहता है उसे किसी का न भय होता है न शोक वह एक नियम के तहत जीवन में बढ़ता जाता है ।

बछा नही जानता इर्ष्या क्या होती है ,शत्रुता क्या होती है ,वह केवल प्रेम की भाषा जानता है भेद दृष्टि उसमे नही होती बच्चे ग़लत नही बोलते वो हमेशा वही कहते है जो देखते है मुझे याद है हमारा "विकास " कच्छा ६ में पढता था एक बार घर के सामने कुछ बच्चो के साथ कल रहा था कुछ देर बाद आकर कहा माँ मैं उसके साथ नही खेलूँगा क्योकि वो चीट कर रहा है ,तो उस समय उसे पता था की जो है उसके कहना ग़लत है । तो बच्चे झूठ तब बोलते है जब वो बराबर इस तरह के हालत में जीते है ।

उनका कोई बहुत प्यारा खिलौना अगर टूट जाय तो जरा देर में फ़िर खुश हो जाते है भूल जाते है की उनकी कोई प्रिय वास्तु छूट गई ।

बच्चो के निर्मल स्वभाव सबको प्रिय लगते है कुछ बड़े होने पर उनको विशेष देख रेख की जरुरत होती है उनको तराशना पड़ता है प्रकार से ताकि एक कामयाब इंसान बन सके ।

गलती जान बूझ कर हो या अनजाने में उसकी सजा भोगनी पड़ती है ठीक उसी प्रकार जैसे अनजाने में पिया गया जहर भी अपना काम करता ही है । इसलिए कहा है कर्म फल पीछा नही छोड़ता हमारे मनीषियों ने श्रेष्ठ कर्म की बात कही है ताकि जीवन उन्नत हो ।

मनुष्य के अन्दर एक ही अवगुण कभी -कभी उसके पतन का कारण बन जाता है । आज कल एक लफ्ज बहुत सुनने को मिलता है की -सब चलता है ,सब चलता है की धारणा कई समस्या को अनायास जन्म देती है और ग़लत करने में मददगार भी होती है, गलती के प्रति संकोच ख़तम कर देती है ,लोगों के प्रति आदर और अदब ख़तम कर देती है इस लिए यह सोचना बिल्कुल ग़लत है की सब चलता है ।

-अगर आपने ब्यवहार पर ध्यान नही दिया तो यह भी हो सकता है की आप जीवन भर ठगे जाय ।

-एक छोटा आदमी भी आपका अपमान कर सकता है या फ़िर आपको उचित मान नही देगा ।

-अगर आपकी यह धरना है की सब चलता है तो फ़िर आपने अपनी बुद्धि से नही सोचा । आपका कोई विचार स्तर नही है । जब अपना कोई विचार ही नही है तो विकास कैसे होगा ।

-सब चलता है -इस सोच वाले कभी इधर कभी उधर होते रहते है ,हम अपने खिलाफ आवाज भी नही उठा सकते क्यों की आत्मबल होगा ही नही ।

-अच्छा और बुरा दोनों चलने में हम कही के नही रहते । हमारे वसूल ,विचार ,नियम ,सिद्धांत सब ख़तम हो जाते हैं । अगर हम कुछ करना चाहते है तो सब ठीक हो इसके लिए सब कुछ नही चला सकते कुछ अच्छा चलाना पड़ेगा तभी अच्छा होगा ।

-अच्छा हो इसके लिए एक अच्छा रास्ता ,सफलता का रास्ता चुनना होगा "सब चलता है "इससे बहार आना होगा ,उदासीन सोच को बदलना होगा ।

कुछ भी ही जाय हमें हमेशा जीवन का उजला पक्ष ही देखना चाहिए और उसे पाने की भरपूर कोशिश करनी चाहिए हजार गलती करके भी ,और बार बार गिर कर भी परेशां नही होना चाहिए आशा का दीप जला रहना चाहिए प्रकाश जरुर मिलेगा । आज जो विकास हमारे जीवन में है यह हजारो वर्षो की खोज का नतीजा है ख़ुद को विकसित करके ही हम आज यहाँ तक आए हैं ,यमराज से भी नही हारना चाहिए हम नचिकेता की संतान हैं ।

२७/९/२००९

जीवन में सफल होने के लिए दृढ़ बुद्धि होना चाहिए और कोशिश होनी चाहिए की किसी को पीडा दिए बिना अपने विकास का समर्थन करना चाहिए ।

ध्यान दे दृढ़ प्रतिज्ञ होना और हठी होना दोनों में अन्तर है दृढ़ प्रतिज्ञ वो है -जो शांत भाव से सहज रूप से अपने लक्ष्य को अपनी कर्मठता और योग्यता के द्वारा पाने में लगा रहता है दूसरी ओर एक हठी ब्यक्ति अपनी इक्षा पूरी न होने पर दोषारोपण करता है ,चीखता है ,हल्ला मचाता है और अपना काम निकलने के लिए भयभीत भी कर सकता है ।

दृढ़ प्रतिज्ञ व्यक्ति आत्म विश्वाशी होता है वो अपने काम और कर्तव्य का इमानदारी से पालन करता है और सकारात्मक तरीके से कौशल बुद्धि का इस्तेमाल कर के अपनी मंजिल पा लेता है ।

जीवन की सफलता में हमारे परिवार ,रहन सहन ,हमारा स्तर ,और परिवार में बेबाकी का भी गहरा प्रभाव होता है ,अगर परिवार में आपके विचार नही सुने जाते या आप खुल कर कह नही पाते तो जीवन में असंतोष ,अकेला पन बढ़ जाता है । हमारे सोच में दृढ़ता नही आती ।

परिवार का समर्थन हमें एक मजबूत सोच देता है बस हमें कारण सहित अपना समर्थन लेने की कला आनी चाहिए ,अच्छी तरह मालूम होना चाहिए की हमें क्या करना है, हमारे कार्य का परिणाम भी अच्छा हो ।" बन्दर बुद्धि "नही होनी चाहिए ।

जो घबराया सा रहे ,हर क्षण बात को बदले ,सवालो से बचने के लिए ख़ुद को व्यस्त दिखने की कोशिश करे ,आदर्श को झाडे उसे बन्दर बुद्धि कहते हैं ऐसे लोग अपने को प्रमाणित करने के लिए एक के बाद एक गलतियाँ करते जाते है स्थिर नही होते न तन से न मन से ।

ह्रदय को पूर्णतया मुक्त करें अपनी गलती को जानने और मानने में संकोच न करे इससे और अधिक सीख सकेंगे । अपनी कीमत करे ,अपनी इज्जत करें । स्वयं को साक्षी मान कर जीवन को सवारें । आपका आत्मविश्वास बढेगा ।

जीवन में हमेशा शान्ति और स्वास्थ को ऊपर रखे ।

२८/९/०९

जीवन को जीने का ढंग शान्ति और स्वास्थ वर्धक होना चाहिए वरना जीवन में रोग और तनाव कब अपनी जगह बना लेते है पता नही चलता । आप अपने भरपूर प्रयास से जीवन को सुधार सकते है इसके लिए बारीकी से निरिक्षण करना होगा ,मेरा मानना है यह सावधानी जीवन भर चलती रहे तभी सुचारुता बनी रहती है ।

अधिकाँश लोग बड़ी जल्दी निराश हो जाते है पर जीवन की गति को समझने में जल्दी नही करनी चाहिए । अगर कुछ बुरा हो जाय तो कुछ देर शोक मन कर फ़िर आशा का दामन थाम लेना चाहिए । जो ऐसा नही करते तो आप पीछे जाने का रास्ता ख़ुद बना लेते है जरा सोचिये कोई क्यों रुकेगा आपके लिए ,कोई आपके लिए क्यों दुखी हो ,सब आपका साथ छोड़ देंगे इसलिए ठहरो मत समय के साथ चलना सीखो ।

कुछ टूट जाय तो पुनर्निमाण करो ,गिर जाओ तो उठना सीखो थक कर बैठ जाना ठहर जाना है । आशा का पीछा कभी न छोडो ,चलते रहो यही जीवन है ,चलते रहो तभी जीवन

प्रतिदिन दिन आनद में रहो कल को और अच्छा बनाओ ,नित नई जानकारी से जुडो ,रोज पढ़ना चाहिए कुछ लोग मानते हैं एक समय के बाद क्या पढ़ना पुरूष अपने काम तक ,और स्त्रियाँ रसोई तक बहुत हुआ तो सजने -सवरने तक रहती है दुनिया में कहाँ क्या होरहा है कुछ पता नही, नया क्या हुआ मालूम नही । बुद्धि -बंधन है ऐसा करना प्रतिदिन की नई खोज से जुड़े ,नई खुशी खोजे ,जीवन में रस भरे ,जीवन को सुंदर तरीके से जीना सीखे ये बड़ा अनमोल है .

२९/९/०९

जीवन में दुःख और सुख का क्रम चलता ही रहता है यह सब के साथ होता है ,जैसे दिन और रात का चक्र चलता है उसी तरह सुख और दुःख का चक्र भी चलता है । दोनों को सहज भाव से लेना चाहिए ,सुख में तो सब खुश होते ही है पर दुःख में भी शोक न करके उससे निकलने का मार्ग तलाशना चाहिए यह कला जिसे आ गई उसे जीना आ गया शोक करने से शारीरिक और मानसिक दोनों क्षति होती है ।

कभी -कभी अपने कारण भी इस तरह की परिस्थिति बन जाती है की दुःख का कारण बन जाता है ऐसी अवस्था में उस की जड़ में जाय वहाँ समाधान भी मिल जायगा । एक क्रम से समाधान करे ,अपने विवेक को न खोने दे ।

किसी के अपमान को और मान को अपने बुद्धि के तराजू से तौल के देखे ,अपमान के होने पर दुखी न हो मान को भी सहज ही ले । हम किसी के मान के भिखारी न बने पर अपना काम ,अपना उत्तरदायित्व समझे वही हमें मान देगा ।

अपने ज्ञान को बार- बार कसौटी पर कसो और अधिक बढाओ । चिंता और भय को पास न आने दो इनसे जीवन चुकता है ,खुशी नही आती इनसे दूर रहने के उपाय तलाशो ।

३०/९/०९

जीवन में अपनी भूमिका कैसी हो इसके लिए दूर से देखो अर्थात दृष्टा बनकर निष्पक्षता और विवेक के साथ विचार करो की तुम्हारा कार्य क्या होना चाहिए । कल और बेहतर हो इसके लिए काया करना चाहिए ,आज अगर कुछ बुरा हुआ है तो तो ये अचानक नही हुआ इसको पिछले कार्यों से जोड़ कर देखो इसकी पृष्ठभूमि भूत से जरुर जुड़ी होगी ,हर घटना क्रम में एक कारण होता है । इसलिए मैंने बार "विवेक "का जिक्र किया है । आज हम जो भी करेंगे कल उसका परिणाम निकलेगा अब यह इस पर निर्भर करता है की हमने अपनी समझ का कैसा उपयोग किया ।

सजग रहकर ,तर्कपूर्ण दृष्टि रखकर हम आने वाले कल को सुंदर बना सकते हैं यह ८०%अपने हाथ में होता है । विवेक से काम करें तो उदासी ,तनाव ,क्रोध ,अंहकार और अन्य प्रकार की बुराइयों पर विजय मिलती है ,जीवन खुशहाल होता है ।

क्या ही अच्छा होता अगर लोग अपने अच्छे या बुरे वर्ताव का कारण बता दे ,दिल से छल को मिटा दे ,अपने बारे में सब सुनने और कहने की हिम्मत रखे यह एक सफलता की सीधी राह बन सकती है । सब साफ़ होने पर एक नै राह मिलती है ।

अच्छा हो अगर हम ख़ुद को पहचाने और प्रत्येक घटना के दोनों पक्षों पर विचार करें एकदम सहज मन से तो हमें हमेशा कुछ नया मिलता रहेगा ,नजरिया भी बदलेगा ।

अच्छी शक्तियों का साथ पाने के लिए अच्छी संगत करनी होगी। ऐसी तकते दिखती नही पर आप उनका अनुभव कर सकते हैं

२/१०/०९

ज्ञान एक प्रकार की शक्ति है इसे कब, कैसे प्रयोग करे इसका सटीक ज्ञान ही हमारे जीवन की दिशा और दशा दोनों को बदल देता है । हमारे मस्तिष्क में उठते अच्छे और बुरे विचार भी इसमे सहयोग करते हैं । इसलिए कहा है हमेशा विचारों पर नियंत्रण रखना चाहिए ये हमारी सफलता में सहायक होते हैं ।

जीवन में लक्ष्य स्पष्ट हो तथा कार्य और विचार का अच्छा ताल -मेल हो तो सफलता निश्चित होती है हमारा मस्तिष्क असीम क्षमता वाला होता है हम इसका कितना प्रयोग करे यह हम पर निर्भर है ।

जीवन में सामना के बदले सहयोग और अपने काम में हमेशा सृजन को प्रथम रखना चाहिए । हमसे अमुक कार्य नही होगा ऐसा न सोचे । जीवन ख़ुद किनारे लग जायगा यह सम्भव नही ।

आप ख़ुद से पूछें की आप कैसा जीवन जीना चाहते हैं ,जब आप यह जान लेंगे तो आप वह पा लेंगे ।

मंजिल के प्रति स्पष्टता हो तो एक दिन जरुर पहुचेंगे ,ज्ञान एक ऐसा समुद्र है जिसमे जीवन भर विद्यार्थी बने रहना चाहिए । ज्ञान ही हमारा मित्र है ,हमारा मार्ग दर्शक है ज्ञान के बिना मनुष्य की कल्पना नही हो सकती । ग्यानी की दृष्टि ब्यापक होती है वह हर काम में मन लगा लेता है ,वह तनावग्रस्त नही रहता ,निराश भी नही होता ,वह जानता की हमको क्या करना है ,कैसे करना है उसकी बुद्धि सार्थक होती है ,रचनात्मक होती है वह जंगल में भी मंगल खोज लेता है .उसे हर काम में आनंद आता है ,वह हरदम सीखता है जिज्ञासु होता है अपनी योग्यता को बढ़ता रहता है ,तभी तो ज्ञानी ब्यक्ति सम्रद्ध होता है ।

४/१०/०९

सफलता के कुछ सूत्र -

१-हमेशा उर्ध्वगामी बने रहो । २-सुनो ज्यादा बोलो उतना ही जितनी आवश्यकता हो । ३-शांत रहो उचित आराम और काम दोनों जरुरी हैं । ४-कारण और सिद्धांत पर टिके रहो । ५-हमेशा उस विराट को अपने में महसूस करो । ६-याद रखो जन्म गरीबी में हो सकता है पर जीवन भर गरीब रहो ये न होने देना अपने हाथ में है । ७-दुर्जनों का संग उनकी प्रशंशा से सज्जनों की गाली अच्छी है । ८-सबके गुन और अपने अवगुण पर ध्यान दो ।

अच्छी आदतें आती हैं मुश्किल से ,प्रयास से पर उनको अपना कर जीवन सुखद बनता है ,दूसरी तरफ़ बुरी आदते आती है बड़ी आसानी से इतनी आसानी से की पता भी नही चलता पर जीना बड़ा मुश्किल कर देती है अशांति उपहार में मिलता है इसलिए अच्छी आदतों का व्यसन बनालो जीना अच्छा लगेगा ।

अक्टूबर ५/२००९

सफलता के लिए ,जीवन में खुश रहना बहुत आवश्यक है खुश रहने के लिए हम कुछ उपाय यहाँ बता रहे हैं -

१-जीवन में हास्य का पुट भरने के लिए छोटी -छोटी बातों में भी हसने का तरीका मिल जाता है अगर आप निश्छल है ,एक बालक से हसना सीखिए वो कब किस बात पर हंसेगा पता ही नही चलता ।

२-अपने बचपन की शरारतों को हमेशा याद रखिये खुश होने का यह अच्छा स्रोत है ।

३-आस -पास के साथियों से विनोद का कोई मौका न छोडिये ।

४-आशावादी बने रहिये सब अच्छा है और सब अच्छा बनने की कोशिश करे ,सब अच्छा होगा यह सोच हमेशा कायम रखें ।

५-जो काम ख़ुद को अच्छा न लगे उसे न करिए ,प्रतिष्ठा के प्रतिकूल कोई काम न करिए । ढोंग और अंहकार से हमेशा दूर रहिये ।

६ -सफलता अर्जित करते रहें इसमे बड़ी शक्ति होती है ,ख़ुद पर दृढ़ विशस्वास होता " हम इस काम को सफलता पूर्वक कर लेंगे "यह एहसास होना बड़ा सुखद लगता है ।

७- समय -समय पर अपनी क्षमताओं का आकलन करते रहे इससे आत्म बल बढ़ता है ।

८-उत्साही और जिंदादिल लोगों का संग करिए ,व्यर्थ की सांगत से बचिए ,अपनी त्रुटियों से सबक लीजिये ।

९-अपने दिन भर के कार्यों की समीक्षा करिए ख़ुद अपना मार्गदर्शक बनिए ,सभी जानते होंगे एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर उसके सामने अभ्यास किया और श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया । गुरु की प्रतिमा ही उसकी प्रेरणा थी और वह सीख गया ।

११/१०/२००९

जो करता वह ख़ुद को आगे नही रखता वह तो ओरों के द्वारा सराहा जाता है हमारा शास्त्र भी कहता है -असीम को पाना है तो निरर्थक की धारणा को त्याग दो । जो लोग महान हुए हैं उन्होंने कार्य और ज्ञान को पूजा है यश और धन तो स्वयं चला आता है ।

जिन लोगों ने निर्माण किया और जो लोग सफल हुए हैं उनकी शक्तियों का आधार एक अदृश्य और असीम वह शक्ति है जो मानव सीमा से बाहर है । ये है अध्यात्म की शक्ति ,अध्यात्म का अर्थ पूजा से लिया जाता है पर इसकी ब्याख्या को सीमित नही किया जा सकता । यह अद्भुत ताकत है और एक दिन हर इन्सान इसकी शरण में आता है ,मैंने पाया जो जितना सफल है वो उतना ही अध्यात्मिक भी है । आपने देखा होगा अध्यात्मिक शक्ति से बंधा आदमी का दिल बड़ा विशाल होता है वह भेद -भाव नही मानता सम भाव में रहता है उसका हर काम बड़ा होता है ।

सफल ब्यक्ति हर कार्य को गंभीरता से लेता है उसका दिल,दिमाग और काम तीनो का अच्छा ताल -मेल होता है । हम अपनी क्षमता का बहुत छोटा सा हिस्सा अपने विकास पर खर्च करते है ,क्यों की हम क्या कर सकते हैं ये हम कभी नही सोचते एक लकीर पर चल कर जीवन गुजार देते हैं । हम अपनी उर्जा खर्च करते है दूसरो पर प्रभाव जमाने के लिए । अपना गुन ,बुद्धि और दिमागी ताकत को इसमे ज्यादा खर्च करते है ,अपना बड़प्पन दिखाने के लिए हम अपनी पूरी क्षमता लगा देते हैं और दूसरी तरफ़ इसका प्रभाव हम पर भी पड़ता है हम भी यही देखते है की अमुक ने ऐसा किया तो मैं क्यों नही इस व्यर्थ के प्रभाव में हम भी वही करते हैं हासिल कुछ नही होता ।

हम मनुष्य है कार्य तो करना ही पड़ेगा और कारण भी हजारों है पर ध्यान यह देना है की किया हुआ कार्य ब्यर्थ न हो और सार्थक कर्म करे यही तो है कर्म की सफलता ।

सफलता में विकास का सम्बन्ध हो तो जादुई व्यक्तित्व का निर्माण होता है और व्यक्ति महान बन जाता है । हर कोई चाहता है सफल होना अमीर ,गरीब ,गृहस्थ ,व्यापारी और धार्मिक सभी अपने को शिखर पर देखना चाहते है ,अपने कार्य क्षेत्र में सफल होना चाहते हैं । हमारा योग शास्त्र कहता है कुछ नियमो का पालन करो अवश्य विकास होगा ।

यदि हम अपनी सूक्ष्म गतियों पर निगाह रख साके तो कार्य और कारण का विश्लेषण कर सकते हैं और जब यह ज्ञान हमें हो जायगा तो काम बनेगे । हमारी शक्ति तो सूक्ष्म में है -मन में ,बुद्धि में ,विचार में और वो जब नियंत्रित होगा तो कुशलता बढेगी ,इसकी मात्रा इसकी पवित्रता पर होती है की हम कितना पवित्र सोचते है ,एक सदाचारी ही स्वयं पर नियंत्रण रख सकेगा । ऐसा करके हम अनायास ही बहुत सारी कठिनाइयों से स्वतः निकल जाते हैं और असफलताएं टाली जा सकती हैं ।

१२/अक्टूबर /२००९

मानव जीवन में सदाचार और प्रेम की गहरी समझ होनी चाहिए ,नही तो कभी -कभी बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है । जब हम किसी अपने को नही समझ पाते और वो हमसे दूर हो जाता है तब अपनी भूल पर हम केवल पछतावा कर सकते हैं ।

हमें कभी किसी से ग़लत आचरण नही करना चाहिए ,दुश्मन से भी नही ,उससे दूरी बना लो जो आपसे ईर्ष्या करते हैं पर अपना सदाचार न बदलो । अपने आचरण पर ऊँगली उठाने का मौका किसी को न दो इससे आपका अभिमान बना रहेगा ,कोई आप से दूरी नही बनाएगा लोग आपसे मित्रता चाहेंगे ।

नर हो न निराश करो मन को

मनुष्य को हार से ,दुःख से घबराना या निराश नही होना चाहिए यहाँ कोई ऐसा नही है जो सब तरह से पूर्ण हो पर जीवन में सफलता और पूर्णता को प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना ही चाहिए । हम आपको अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहिम लिंकन का उदाहरन अवश्य देना चाहते हैं -अब्राहिम लिंकन का वास्तविक जीवन असफलताओं से भरा था । उन्हें सौ में से निन्न्यांवे बार असफलता का मुख देखना पड़ा था पर उन्होंने जीवन में हिम्मत नही हारी अपना काम साहस और धैर्य के साथ करते रहे । उन्होंने जिस भी काम में हाथ डाला असफलता ही मिली । उनका जीवन निर्वाह ,रोज की जरूरते मुश्किल से पूरी होती थी । इन सब परेशानियों के बीच लिंकन ने वकालत भी की पर कोर्ट में बैठने पर उन्हें मुक़दमे ही नही मिले यहाँ भी असफल हुए ,शादी की वह औरत भी उनका साथ नही निभा सकी । सोचिये कोई साधारण आदमी इतनी हिम्मत रख सकता है ?

लिंकन बहुत इमानदार और साहस के धनी व्यक्ति थे उनके पिता एक छोटे से किसान थे । लिंकन ने अपने साहस के बल पर कठिन समय की बेडियों को काट दिया और जीवन के शिखर पर पहुंचे अपने विचार की विशालता के आधार पर उन्होंने राष्ट्र का निर्माण किया और विश्व इतिहास में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करा लिया । हम ऐसे चरित्र से बहुत कुछ सीख सकते है ।

स्वामी विवेकानंद को आज कौन जानता हिंदू धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए उन्होंने कितनी कठिन तपस्या की कभी कभी तो कई दिन भूखो रहना पड़ा । पूरे भारत भ्रमण के समय उनका अदम्य साहस ही उनको श्रेष्ठ कर दिया । उनकी विचार शक्ति इतनी प्रबल थी की शिकागो के धर्म सभा में स्वामी जी ने भारत वर्ष की अध्यात्मिक शक्ति को श्रेष्ठ मन गया ।

कबीर एक जुलाहे थे ,निरक्षर थे पर अपने विचारो की उत्तमता के कारण संत बने लोग बड़े आदर से उनको याद करते हैं । उनके उदाहरन इतने गूढ़ होते की लोग आर्श्चय करते । हमने अपने अन्दर कभी देखा ही नही ,जाना ही नही की हम क्या हैं ,क्या चाहते हैं ,क्या करसकते हैं अपने चुने हुए पथ पर विश्श्वास के साथ चलो हार न मानो सफल होगे । निराशा से छुटकारा पाने के कुछ उपाय -

१-जो व्यक्ति हर वक्त निराशा जनक बातें करे ,संकुचित सोच रखता हो उसकी संगत से बचें ।

2-कोई कार्य जो आप करना चाहते हैं और उसमे आप किसी की सलाह चाहते हैं तो उस कार्य से सम्बंधित जानकारी जिसके पास हो उसकी ही सलाह लेनी चाहिए ।

३-जिसका मनोबल हमेशा गिरा रहेगा वह किसी को क्या देगा ,ऐसे लोगों से दूर रहे ।

४ -'मैं यह काम कर सकता हूँ "यह विश्स्वास हमेशा कायम रखिये

५ - असफलता से घबराने पर काम बिगड़ जाता है ,गलती होने पर सीखो कैसे सुधार होगा ,उठो फ़िर से करो ।

६ -किसी की निराशा भरी टिप्पणी पर उदास मत हो उसे भूल जाओ ।

७ अपना मस्तिष्क हमेशा सुंदर विचारो से भरा हुआ रखो नकारात्मक विचार को मत आने दो । दैनिक जीवन में हमारे आस पास ही इतना कुछ होता है की हम उससे ही सीख सकते हैं ।

८ -हम अपनी दृष्टि सम रख सके इसके लिए अच्छा साहित्य पढ़े ,संगीत बहुत अच्छा माध्यम है ,संगत अच्छी बनायें । थोड़े दिनों में ये सब आदत में शुमार हो जायगा । सार्थक बदलाव आने लगेगा ।

९ -अपने द्वारा किए जाने वाले प्रत्येक कार्य को सम्मान दे । किसी काम को छोटा या बड़ा न समझे सब काम मनोयोग से करें

१० -प्रसन्न रहने के लिए कुछ करे अपनी पसंद का खेल या कोई भी काम जो आपको खुशी दे ।

११ -याद रखिये समय को पहिया कहा है जो निरंतर चलता ही रहता है इस चाल में सब आता है दुःख आने पर सुख की आशा न छोडिये ।

१२ -महापुरुषों की जीवनी पढिये हिम्मत आती है धैर्य का साथ कभी मत छोडिये असंभव भी सम्भव हो जायगा ।

सोच को सार्थक बनाएं

आप जानते हैं ? जिसकी सोच जितनी सकारात्मक होती है उसका आत्मबल उतना ही अधिक होता है । जो नकारात्मक तरीके से सोचते हैं वे कायर होते है ,निराशा से भरे होते है ,उनका कार्य भी ठीक ढंग से नही होता ,बात भी निराशा से भरी होती है । दूसरी और सकारात्मक तरीके से सोचने वालो का कार्य सफल तो होता ही है उनके मित्र भी अधिक होते है क्यों की जब लोग देखते हैं की इसका कार्य सफल है तो सब उससे जुड़ना चाहते हैं । निराश रहने वाला धीरे -धीरे उसी तरफ़ बढ़ता जाता है क्योंकि उसके विचारों की श्रृंखला नकारात्मक ही बनती जाती है ,वह एक बात से उठती है फ़िर उधेड़ बुन के साथ कई बात होती जाती है नतीजा बुरा होता है । हम इसी में फंसे रह जाते है गहरी निराशा में डूब जाते हैं ।

निराशा जनक सोच हमें बहुत दुःख देती है ,खुश नही रहने देती । सोच का दायरा भी सीमित होता है इसलिए हमेशा सकारात्मक सोच रखना अच्छा है । तनाव और बीमारी भी दूर रहेगी । उत्तम और व्यवस्थित तरीका अपनाइए जीवन को जीने का यही सही मार्ग है । बेहतर सोच ,कार्य क्षमता हमारे उद्देश्य को पूरा करती है ।

हमारी बुद्धि परिपक्व हो इसके लिए बचपन से किया हुआ व्यवहार भी भूमिका निभाता है । अक्सर जब छोटे बच्चे गलती करते है तो बड़े उन्हें बहुत डाटते है ,सजा देते है ,खेल में हार जाने पर या फेल हो जाने पर बहुत बुरा बर्ताव करते है ऐसा होने पर बच्चे के कोमल मन पर असर पड़ता है वह डरता है कुछ गलत नहो जाय उसकी निर्णय क्षमता कमजोर हो जाती है । यह नही करना चाहिए बालक के अच्छे काम को जरुर प्रोत्साहित करे ग़लत होने पर भी उसको प्रेम से समझाएं ,हार होने पर उत्साह वर्धन करे उससे कहे की की कोई बात नही इस बार जीतोगे । उसे समझाए की हार -जीत ,गिरना -उठना जीवन की सहज प्रक्रिया है ,उसे समझाईये की हमेशा अच्छी तरह अपना काम करना चाहिए सफलता मिलेगी ।

जीवन में असफलता का दुःख थोडी देर मना कर पुनः अपने काम को करना चाहिए किसी भ्रम का शिकार भी नही होना चाहिए । भ्रम हमें कठिनाई में दाल देता है । विषय की जानकारी ठीक तरह से होनी चाहिए कार्य की तीव्रता ,निर्णय की तीव्रता और स्वभाव की आक्रामकता हमें असफल बनाती है । इसके विपरीत कार्य करने की सही समझ ,तरीका सफल बना देता है हमें ।

१४ /अक्टूबर /२००९

अपनी क्षमता का सटीक उपयोग सामान्य आदमी को भी बड़ा बना देता है । कालिदास की कथा तो सब जानते हैं वे इतने मूर्ख थे की जिस डाल पर बैठे थे उसी को काट रहे थे पर विद्वान् पत्नी की संगत ने उनको महान रचनाकार बना दिया ।

हमारे दैनिक जीवन में ही कितनी जटिलताएं आती है हम उनको ही अगर विवेक से सुलझा सके तो भी हमारी मेधा का सही उपयोग हो । हानि होने पर हारे नही लाभ होने पर आगे बढे । जब आप अपनी प्रगति के लिए व्याकुल होते हैं तो उपाय भी मिल जाता है । जब आप निष्क्रिय होते है तो खुले हुए द्वार भी बंद हो जाते हैं । जब समय आएगा तो यह काम हो जायगा -यह सोचना अवसर को खोना है ।कुछ रचनात्मक करने के लिए हर समय शुभ होता है । समझदारी इसमे है की जो कार्य हम करने जा रहे है उसका परिणाम क्या होगा । परिणाम पर जरुर विचार करें एक उदहारण देती हूँ -एक व्यापारी थोडी सी पूंजी लगाकर छोटा सा काम शुरू करता है वह बड़े परिश्रम से बरसों वह मेंहनत करके कुछ बढ़ता है इसी तरह धीरे -धीरे अपनी स्थिति को मजबूत बनता है ,अब देखना है की उसने जो सोचा वह सार्थक हुआ उसका श्रम और विवेक पूर्ण सोच दोनों ठीक था । काम का परिणाम अच्छा निकला । इसने दूर की सोची होगी वह लक्ष्य की तरफ़ बढ़ता रहा एक दिन सफल हो गया ।

सक्रिय बने रहे

जीवन में खाली कभी नही बैठना चाहिए ,जब आप सबकुछ अपना मानोगे तो प्यार बढेगा और जब प्रेम होता है तो हम उसे सवारते हैं ,कोई चीज बिगड़ने नही देते यह एहसास ख़ुद अपने अन्दर आ जाता है यही एहसास हमें सक्रिय बना देता है

निष्क्रियता जब आ जाती है तो सफलता दूर चली जाती है । आलसी और कामचोर व्यक्ति निष्क्रिय हो जाता है ऐसा आदमी अपनी राह ख़ुद रोकता है । उसमे साहस और विश्वास की कमी होती है । एक कहावत है -हजारो मील की यात्रा एक नन्हे कदम से होती है ।

मैंने अनुभव किया है एक हँसता और खुशमिजाज आदमी अचानक किसी घटना के कारण बुझ जाता है ,गहन अन्धकार में डूब जाता है ,निष्क्रिय हो जाता है वह दुखी हो जाता है ,पर सोच कर देखे इससे कुछ नही होता गहन दुःख में भी धैर्य और साहस नही खोना चाहिए जीवन तो नही रुकेगा आप निष्क्रिय होगे तो किसी का कुछ नही जायगा ,अपना ही सब गड़बड़ होगा इसलिए जो हो गया उसका शोक कुछ देर मना कर जीवन को आगे ले चलो । यही है सक्रियता ।

कुछ लोगों में काम को लेकर एक लापरवाह स्थिति रहती है ये भी एक प्रकार की निष्क्रियता ही है । काम के प्रति लगाव नही होगा तो सफलता नही मिलेगी और निष्क्रियता बढ़ जाती है ,उदासी घर कर जाती है उदास आदमी अपनी शक्ति से अनभिग्य रहता है और अपनी जबाबदेही से भागते है । ऐसा देखा गया है की उदासीन व्यक्ति मौत के मुख में भी चले जाते है । रोम का बादशाह नीरो -उदासीनता के जूनून में एक ऊँची पहाडी पर चढ़ गया जब उसका ख़ूबसूरत शहर रोम धू -धू कर जल रहा था वह चैन से उस ऊँची पहाडी से जलते हुए रोम को देख रहा था । वह पता नही किन विचारों में खोया था ।

व्यर्थ के विवाद और उलझनों से बाहर निकल कर विवेकशील बनना चाहिए जीवन इसी से सार्थक होता है और शान्ति भी रहती है । ख़ुद को अगर फिजूल के झंझटों में डालोगे तो जीवन तो बेकार जायगा ही अंत में हाथ कुछ भी नही आएगा । केवल उच्च कर्म ही जीवन को प्रतिष्ठा देता है ।

अन्य अनेक गुन हो पर विवेक न हो तो सही और ग़लत का निर्णय नही हो पाता ,भ्रम की स्थिति रहती है और अभीष्ट की प्राप्ति नही होती । इसलिए भ्रम से बाहर आकर आगे का मार्ग साफ़ -सुथरा बनाओ ,यह गुण अगर मनुष्य में नही है तो वह भटकाव की स्थिति में रहता है ।

सत्य को अपनाना भी विवेक और साहस का काम है ,यह एक ऐसा गुण है जो सबको नही मिलता और जिसको मिलता उसका निराला सवभाव होता है । विवेक ही सत्य को खोज पाता है । यथार्थ को ले कर व्यर्थ को छोड़ देता है ,आज आप असफल हो सकते है पर विवेक दृष्टि जागृत हो तो परिवर्तन जरुर होगा । आप अनुभवी लोगो से सीख कर सफल हो जायंगे ।

बुद्धि को हमेशा सक्रीय बनाये रखे कुछ रचनात्मक सोचे ,कुछ सृजन की सोचे ,समय को व्यर्थ न जाने दे यह बहुत कीमती है ,अमूल्य है । हम कर सकते है इस सोच के साथ रहेंगे तो सक्रियता बनी रहेगी । हर चीज सुंदर है ,महत्वपूर्ण है उसमे रूचि को स्थान दो जीवन भी सुंदर बनेगा । अगर आप बाथरूम की सफाई कर रहे है तो उसे भी खुश होकर करे यह भी एक जरुरी काम है यह सोचे फ़िर वह स्थान भी अच्छा दिखेगा । छोटी छोटी बातें एक दिन सफल जीवन का हिस्सा बन जाती हैं ।

साहस और सत्य संकल्प से सफलता मिलती है

अगर आप में कोई अवगुण है जो आपकी सफलता में बाधक है तो खोज कर उसे दूर करें । उसे छिपाने की ,दबाने की कोशिश न करे आज आदमी जीवन की तैयारी में सही राह से भटक गया है उसे अपनी कमी नही दिखती । वह जीवन की सुन्दरता से ,प्रकृति की सुन्दरता से ,छोटी -छोटी खुशियों से दूर होता जा रहा है एक प्रकार से बनावटी और दिखावे का जीवन अपनाता जा रहा है ।

परिस्थिति का सामना साहस से करे ,और सच्चाई को नजर अंदाज न करे । आप उदास है ,चिंता में हैं तो विवेक पूर्ण निर्णय लेने के लिए विचार -विमर्श करिए । एक कागज़ पर अपने नकारात्मक भावों को लिखिए ,पढिये और उसे कैसे सुलझाएं इस पर विचार करिए संदेह मिट जायगा ,रह मिल जायगी ।

अपनी कुशलता को बढ़ने के उपाय सीखे ,अगर कही काम करते है तो छुट्टी के दिन अपनी कुशलता को बढ़ने का कार्य करें । अपने आस -पास का वातावरण सुंदर ,स्वच्छ व् महकता हुआ रखें ।

२२/१०/२००९/

अपनी कमी को छुपाने से एक दिन वह बड़ी समस्या बन सकती है । आत्म संयम का गुण भी सत्य से आता है इसलिए भ्रम में न जी कर और किसी की बात में न आकर सत्य का वरण करें अपनी वेवेक शक्ति से कर्म को करना विजय पाने का अस्त्र है । मन पर संयम ,कर्म में निष्ठां ,स्वभाव में अनुकूलता सफलता की तरफ़ ले जाती है ।

हमारे शास्त्र कहते हैं की कर्म से बढ़ कर कुछ नही है और यह करना ही पड़ेगा कोई भी जीव कर्म किए बिना रह नही सकता । जहाँ पहुचना कुछ लोगों के लिए स्वप्न होता है वहां श्रेष्ठ कर्म के द्वारा आदमी पहुँच जाता है और उसका यह श्रेष्ठ कर्म आलसी लोगों के लिए चमत्कार होता है । निष्क्रिय लोग उसके इस कर्म को सहज नही लेते । आज के समय में जब हर व्यक्ति प्रतियोगी है तो कर्म की श्रेष्ठता का महत्व बढ़ जाता है ,मन को शांत और संयमित करने के लिए अध्यात्म ही सर्वश्रेष्ठ साधन है इससे स्वनुशाशन आता है । एक धार्मिक और अध्यात्मिक व्यक्ति अनुशाशन में रहता है ,बुद्धी को धारण करता है और कुछ रचनात्मक करता है ।

सफलता का कोई एक क्षेत्र नही होता यह अपनी इक्षा पर निर्भर है की आपकी नजर में सफलता क्या है कोई यश और सम्मान में सफल होना चाहता है ,कोई धन और पद में ,कोई विद्या और बुद्धि को श्रेष्ठ मानता है परन्तु सफलता कई प्रकार से हो तभी जीवन पूर्ण होता है । धन हो यश हो विद्या हो ,साहस ,आत्मबल और प्रतिष्ठा हो इन सब को मिला कर एक सफल व्यक्ति बनता है । पूर्ण रूप से सब कुछ तो सब में नही होता पर जो गुण नही है उसे उभारने के लिए विवेक और सम्यक कर्म का गुण बढ़ाना चाहिए । विवेक के बिना संकल्प नही लिया जा सकता अविवेकी बल भी किसी काम का नही है और बुद्धि तो विवेक के बिना शून्य है । अविवेकी बुद्धि बंधन है ।

२३/१०/२००९

हमें एक नही हजार ऐसे लोगों के प्रमाण मिलेंगे जो साधन विहीन होते हुए अपने पुरुषार्थ के बल पर उन्नती के शिखर पर पहुंचे । टाटा समूह के संस्थापक -जमशेद जी टाटा को प्रायः सभी जानते है पर बहुत कम लोग जानते है की वे एक गरीब पुरोहित परिवार में जन्मे थे । अभावो में पले टाटा जी ने पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने साथियों की एक टीम तैयार की और कपड़े का एक छोटा सा कारखाना खोला कठिन परिश्रम और उन्नति करने की दृढ़ इक्षा ने उनको शिखर पर पहुँचा दिया वे सफलतम ब्यक्तियों में गिने गए । आशा का प्रकाश ,विवेक पूर्ण संकल्प और कठिन परिश्रम आदमी को अवश्य सफल बना देता है इसमे कोई दुविधा नही है ।

कार्य के प्रति पूरी निष्ठां एवं रूचि वही ले जायगी जहा हम जाना चाहते हैं । कार्य को विवेक के साथ करना उसके परिणाम पर पैनी समझ और साहस के साथ संकल्प को साकार करना ,कुशलता से करना ये सब अगर आपने किया तो सफलता आपके पीछे -पीछे चली आएगी । और अगर कार्य करने से पहले ही निराश होंगे तो कुछ नही कर सकेंगे । आशा और साहस ईश्वर का रूप है इसका साथ कभी नही छोड़ना ।

किसी भी कार्य को जब हम शुरू करते है और पूर्णता पाते है तो -शुरू से पूरा के बीच का जो समय होता है इसमे बहुत तरह की कठिनाइयाँ आती हैं ,पग -पग पर कांटे मिलते हैं ,बाधा मिलती है लेकिन संकल्प को पूरा करने की तीव्र इक्षा तमाम कठिनाइयों को पार करने में मदद करती है । जिनका संकल्प दृढ़ होता है उनको कोई बाधा नही रोक सकती । जीवन के मार्ग में कांटे तो आते ही हैं ,सफलता इतनी आसानी से नही मिलती । सफलता का मार्ग अगर इतना आसन होता तो उसकी कद्र कौन करता तब तो हर कोई इसे पा लेता फ़िर सफल व्यक्ति आदर्श कैसे माना जाता ,न ही कोई उसे पूज्य मानता । जो दुर्लभ है ,जिसे कुछ ख़ास लोग ही पाते है वही है सफलता । साधारण और बुद्धिहीन इसे नही पा सकते ।

सफलता संघर्ष से मिलती है ,कठिन श्रम और संघर्ष का दूसरा पहलु है सफलता और आनंद । जब तक कठिनाई नही आती तब तक कार्य कुशलता और चैतन्यता की परीक्षा नही होती । हम नही जान पाते की की हम क्या कर सकते हैं । मुसीबतों की ज्वाला मैं अपनी बहुत सी कमजोरियां भी जल जाती हैं । हम साहसी और धैर्य वान बन जाते हैं बुद्धि में और कार्य में तीव्रता आ जाती है ,चेतना में उछाल आ जाता है सुप्त शक्तियाँ जागृत हो जाती है ।

यदि हम इतिहास में देखे तो जितने भी महापुरुष हुए हैं उनके जीवन से कष्टों और कठिनाइयों को निकाल दे तो वे एक साधारण मनुष्य मात्र बन कर रह जायेंगें । राणाप्रताप के जीवन से यदि उनके संघर्ष को निकाल दे तो क्या बचेगा उनको महान बनाये राजा तो उस समय भी बहुत थे कितने राजाओं को कोई नही जानता । उनको महापुरुष बनाने का श्रेय उनकी कठिनाइयों को जाता है ,उनकी वीरता ,उनकी हिम्मत उनको महापुरुष बनाती है ।

शिवा जी की बहादुरी ,राजा हरिश्चंद्र का सत्य प्रेम ,दधिची की तपस्या एक इतिहास रचती है । सफलता की मंजिल पर पग -पग चल कर ही पहुँचा जा सकता है । लड़ता -सहता ,चोटें खाता ,परिश्रम करता आदमी ही एक दिन सफल होता है । सफल होने के लिए क्रोध ,घुटन ,उबन ,निराशा ,हताशा को त्यागना ही होगा । सफलता पाना एक तपस्या है इसमे अडिग रहना पड़ता है तभी आदमी रक्षित होता है ।

कठिनाइयाँ सोचने में ,देखने में बड़ी लगती हैं परन्तु जब आप उसे करने या उनसे पार होने का संकल्प कर लेते है तो सफलता मिल जाती है तब वो डर एक भ्रम साबित होता है ।

सफलता पाने के लिए एक वृत्ति बनानी चाहिए जैसी वृत्ति होगी वैसा ही विचार बनता जाता है । अगर आपकी वृत्ति है की यह काम मुझे करना है तो उसे कैसे करे यह खोज आपके मन में रहेगी । संकल्प से लेकर काम के पूरा करने तक जो जो आपने सोचा उस काम को सफल बनाने के लिए यही है वृत्ति । अगर आपने सोच लिया की यह काम नही कर पाऊंगा तो यह भी सोचेंगे की इसको करने में ये बाधा है ,मैं नही पार कर पाऊंगा क्योंकि मुझे नही आता फ़िर इसी प्रकार की सोच बढती जायगी । इसलिए वृत्ति सही होनी चाहिए ।

क्रोध लालच ,आलस्य ,अंहकार की वृत्ति नही होनी चाहिए । अगर कुछ कमी है अपने में तो उसे सुधारा जा सकता है । मस्तिष्क की मरम्मत की जा सकती है ,अपनी कमी को दूर करें । अपने चित्त को बदलें ,अपना दृष्टिकोण सकारात्मक बनाएं । आप क्या करना चाहते है क्यों नही हो पारहा है उसे करने की वृत्ति बना ले सोच बदलेगी फ़िर प्रयास बढेगा और आप सफल होंगे । अन्तः करण ,मानसिकता ,दृष्टि ,श्रम ,साधन ,योग्यता ,अध्ययन सब कुछ बदलने वाले अनुभवी लोग मिल जायेंगे उनसे सीखना चाहिए ।

भाव की उच्चतम अवस्था भक्ती बन जाती है ,भक्ती में बड़ी ताकत होती है सच्चा मन ही भक्ती है । भाव की क्रोधित अवस्था नारकीय बन जाती है इसमे विवेक मर जाता है । भाव पवित्र होंगे तो सब साध्य बनेगा । कठिन श्रम भी सहज हो जाता है । कुछ बड़ा करने में घबराहट नही होती ,भय भाग जाता है ,आत्म विश्स्वास दृढ़ हो जाता है फ़िर तो हम सफल ही होंगे ।

समय को नियोजित करें

एक स्वस्थ व्यक्ति ही सफल जीवन जी सकता है और स्वस्थ रहने के लिए समय से आहार और व्यायाम करना होगा । सफल व्यक्तियों ने समय की कीमत की है । अपना एक एक क्षण किस तरह बिताना है ,कब क्या करना है यह सब निर्धारित किया है । अपने भोजन शयन ,व्यायाम का समय नियोजित किया है

सुबह दिनचर्या शुरू करे अपने स्वास्थ से । कुछ योग और व्यायाम से अपने शरीर को सुगठित करें ,प्रणायाम और स्सुबह की सैर भी लाभ कारी है । खान -पान का पोषक होना शरीर को चुस्त और दुरुस्त रखता है । यह सब हर एक को करना चाहिए । हर व्यक्ति अपने को खुश और उर्जावान बना सकता है । स्वस्थ व्यक्ति जरुरत पड़ने पर क्षमता युक्त प्रदर्शन कर सकता है । समझिये की सफलता का प्रथम सोपान यही है ।

अगर आपका स्वास्थ ठीक नही है खान पान तथा दिनचर्या समय से नही है तो लक्ष्य से दूरी बढेगी । असमय किसी काम को करके जैसे -अगर आप सोचते हैं की यह काम करले फ़िर भोजन कर लेंगे तो इससे आप अपना लक्ष्य जल्दी हासिल कर लेंगे यह जरुरी नही है । काम में एक निर्धारित कुशलता और समय का उचित उपयोग आपको लक्ष्य तक ले जायगा । समय का ध्यान न रखने पर कार्य क्षमता प्रभावित होगी । किसी सफल व्यक्ति को अपना आदर्श बनाये उससे सीख सकते है ,अपनी कल्पना को साकार रूप देने के लिए यह सब करना होगा ।

स्वस्थ शरीर के साथ स्वस्थ मन का होना भी जरुरी है । अपने कार्य स्थल पर आफिस हो या घर साफ़ रखना चाहिए । व्यर्थ में कागजो का अम्बार न रखे जो कागज़ काम के है उन्हें ठीक से लगा दे जो बेकार हो गए हैं उनको फेक दे । बिना वजह कागज जो पड़े रहते है वे तनाव का कारण बनते है और उनमे से कोई काम का कागज खोजने में भी समय लगता है तब मन की खिन्नता बढ़ती है । जब आप अपने आस पास सब साफ़ और महकता हुआ रखते है तब आप भी खुश रहते है और जब इसे आप अपना लेते है तब यह सब आपकी आदत में शुमार हो जाता है फ़िर आप अनायास ही इसके आदि हो जाते है फ़िर आप साफ़ किए बिना नही रह सकते । यह आदत एक दिन आपकी सफलता की राह आसान कर देती है ।

किसी भी कार्य को जब आप खीचते है तो उसमे रूचि कम होती जाती है ,उसकी उपयोगिता भी घट जाती है । कार्य को लंबा न खीचें यह न सोचें की कल कर लेंगे यह तो छोटा सा कार्य है चाहे जब कर लेंगे यह सोच अगर बन गई तो एक दिन निरर्थक कार्यों का ढेर लग जायगा और झंझट बढेगा इसलिए रोज के छोटे छोटे काम १०-१५ मिनट का समय देकर करते चलें तो ठोस धरातल पर रहेंगे ।

महान पुरुषों को देंखे उनके एक -एक क्षण का हिसाब रहता है कब क्या करना है सब निर्धारित होता है । मैं यहाँ आपको एक उदहारण देती हूँ -बेंजामिन फ्रेंकलिन एक किताब की दुकान चलाते थे एक दिन एक ग्राहक ने किसी किताब का मूल्य पूछा उन्होंने बताया एक डालर । वह ग्राहक मोल -तोल करने लगा कुछ समय इसमे बीता तब फ्रेंकलिन ने कहा अब इसका मूल्य डेढ़ डालर हो गया ग्राहक ने पूछा ऐसा क्यों -फ्रेंकलिन ने कहा अब इसमे मेरे समय की कीमत भी जुड़ गई है और अगर आप बार बार समय खराब करेंगे तो पुस्तक का मूल्य उसी तरह बढ़ता जायगा । फ़िर उस ग्राहक ने आग्रह पूर्वक पुस्तक का उचित मूल्य देकर ले लिया । इसलिए समय की कीमत करो यह बड़ी कीमती चीज है व्यर्थ ही समय को बरबाद न करो ।

समय को कीमती धन मानिए । सफलता आपकी मित्र बनेगी !!

समय पर अपनी पैनी निगाह रखिये याद रखिये -अवसर को योग्य मनुष्य की तलाश रहती है । कुछ लोग ऐसे ही समय को जाने देते है फ़िर बहाने बनाते हैं । एक अवसर अगर निकल जाय तो निराश और हताश न होकर दूसरे की तलाश में रहना चाहिए । अवसर रोज मिलता है दृढ़ता पूर्वक इसकी तैयारी करो और सफल बनो । अपनी सूझ -बूझ का पूरा उपयोग करो अपनी दृष्टि व्यापक हो तो अवसर का भरपूर लाभ मिलता है ।

समय पैसे से अधिक कीमती है पैसा अगर चला गया तो आप फ़िर से पा सकते है पर जो समय चला गया तो नही पा सकते । हर एक समय जब भी आप काम करना चाहे महत्व पूर्ण है । इसलिए कोई अवसर न खोये और सफल होने का रास्ता बनाये ।

कर्मठ व्यक्ती चार दिन के कार्य को दो दिन में भी कर सकते हैं उसी जगह एक आलसी व्यक्ति बड़ी मुश्किल से हाय -हाय करके वही काम करने में ८ दिन भी लगा सकता है । यह काम कल कर लेंगे रोज रोज यह कहना रोग बन जाता है काम को टालने की वेवजह आदत बन जाती मैंने कई ऐसे लोगों को देखा है जो बैठ गए तो दो घंटे से पहले हिल नही सकते उनके लिए सर घुमाना भी एक काम होता है । ऐसे लोग बड़ी तकलीफ देते हैं ख़ुद को तो नही पर अपने आस -पास और घर के लोग इनसे परेशान रहते है और काम करने वाले के लिए ये मजाक के पात्र होते है । ऐसे लोग अपनी लापरवाही के कारण अपना जीवन बरबाद करते हैं और इनको पता भी नही होता । इनके जबाव भी इसी तरह के होते है की -अभी करते है ,अभी आते हैं इनका अभी दो घंटे से कम का नही होता ये काम की गंभीरता को नही समझते हैं अपनी चाल में हाथी की मस्ती कायम रखते हैं । पर अगर सोच ले की यह सब छोड़ना है ख़ुद को बदलना है तो निश्चित ही बदलाव होगा और सफल भी होंगे ।

आवश्यकता है समय को नियोजित करने की और दृढ़ निश्चय की । एक अनगढ़ पत्थर को एक जानकर उठाता है अपनी कल्पना के अनुरूप उसे काट कर एक आकर देता है वह कला कही जाती है वह आकर बाहर से नही वह तो उस पत्थर में ही था बस उसको संकल्प शक्ति से एक रूप दिया कलाकार ने । इसी प्रकार दृढ़ इक्षा शक्ति रचना करती है । अगर आप शुरू ही न करे तो रचना कैसे होगी मूर्ती बिना परिश्रम किए कैसे बनेगी । पुरुषार्थ को जागृत किया जा सकता है । अतः काम को खिचिये मत ,निष्क्रियता ऐसा दीमक है जो खाता तो है पर दीखता नही । इसलिए कर्मठ बने और सफलता पाये ।

व्यर्थ की निराशा को मन से निकाल दे आशावान बने ,आशा में बड़ी शक्ति है ,तेज है ,बल है ,जीवन है । अपने काम में जब तक आप ख़ुद रुची नही लेंगे तब तक कोई दूसरा उसे पूरा नही करेगा । आप निश्चेष्ट होंगे तो बुरी स्थिति का शिकार बनेंगे ।

जीवन में बुरे प्रसंग आते ही रहते हैं ,हानि और दुर्घटनाओं की भी कमी नही है । यह सब के साथ होता है आप साहस के साथ उसका सामना करके जीत सकते हैं । अनेक ऐसे उदहारण है जब अकेले व्यक्ति ने यह साबित कर दिया की वे सब कुछ कर सकते हैं । इक्षा शक्ति ईश्वर प्रदत्त है पर उसकी दिशा निर्धारित करना अपने हाथ में है अतः इसे सही दिशा दे । आपकी सक्रियता असंभव को सम्भव बना सकती है । बुद्धिमान और ऊँची सोच वालो को अपना मित्र बनाये । डरपोक ,दब्बू ,मंद बुद्धि ,ईर्ष्यालु और आलसी लोगों से दूर रहे यह हितकर होता है । बहुत से लोग अपने को मित्र तो कहते है पर समय आने पर धोखा देते हैं ऐसे लोगों से सावधान रहे और अपने महत्वपूर्ण कामों में इनको शामिल न करें ।

साहसी ,बुद्धिमान एवं विश्स्वासी लोगों से ही मित्रता करें एक अच्छा मित्र आपका सबसे बड़ा सहायक बन सकता है

आप अपने कर्म को श्रेष्ठ बनाइये सफलता आपकी प्रतीक्षा में हैं । किसी को भी नही पता होता की उसका भविष्य क्या होगा लेकिन वह अपने सुनहरे भविष्य के लिए समुचित प्रयास कर सकता है और सफल तो तभी होगा जब वह कोशिश करेगा । बैठे बैठे तो कुछ होगा नही अपना कर्म ही तो मनुष्य को इज्जत ,शोहरत ,कामयाबी और अच्छी सम्मान जनक जिंदगी देता है ।

अवसर जब भी मिले तभी काम शुरू कर देना चाहिए अच्छा समय बुलाना पड़ता है उसके इंतजार में बैठे रहना समझदारी नही है । आज का युग कर्म प्रधान है तो अगर सफलता चाहिए उठो और कल्याण कारी कर्म करो ताकि शुभ परिणाम मिले ।

आप सबकी जाने दीजिये समाज ,देश और दुनिया बाद में देखना चाहिए पहले स्वयं से पहल करें अपनी बुद्धि ,अपना घर ,अपना आस -पास यही से श्रेष्ठता की शुरुआत करे उसके बाद सब होता चलेगा ।

अपने भाग्य के निर्माता बनिए

बिना आपके प्रयास किए आपका भाग्य नही बदल सकता । एक बात सुनिश्चित है की अपने कर्मों के द्बारा ही भाग्य बदलता है । जैसा आपका प्रयास होगा ,जैसा आपका कर्म होगा उसी प्रकार किस्मत का निर्धारण होगा । जो आदमी कुछ नही करेगा वो कैसे कल्पना कर सकता है की उसे क्या बनना है । कर्म हीनता ही व्यक्ति को अभागा बना देती है । आलसी व्यक्ति के अन्दर स्वत: कई प्रकार की बुराईया आ जातीं हैं वह ख़ुद को असहाय समझने लगता है ।

कई बार व्यक्ति निजी स्वार्थ या ईर्ष्या वश कई ऐसे कार्य कर देता है जो उसकी बदनामी का कारण बनता है । वह अपयश का भागी बनता है । ऐसे कार्य को ही निकृष्ट कर्म कहते हैं । कर्म करने से पहले उसके परिणाम और अगर कुछ बुरा हुआ तो उससे निपटने के क्या उपाय होंगे इस सब पर विचार करके ही काम को करना चहिये । कुछ लोग तुरत परिणाम की अपेक्षा करने लगते है लंबा इन्तजार करना पड़ेगा इसलिए बीच में ही काम को रोक देते हैं । संघर्ष से घबराते है पर जैसा आपका काम होगा उसी के अनुरूप आपको फल भी मिलेगा ।

कभी -कभी परिस्थिति वश देर हो सकती पर अच्छे काम का सुखद परिणाम ही आएगा । यही बात भगवान् कृष्ण ने गीता में कही है -कर्म पर आपका अधिकार है फल पर नही । अर्थात आप जब चाहें श्रेष्ठ कर्म कर सकतें हैं परन्तु उसका फल आप अपने अनुसार नही पा सकते यह काम ईश्वर का है इसलिए आप केवल कर्म करिए कर्म के अनुसार ईश्वर आपको फल देगा इन्तजार करिए । आपके श्रेष्ठ कर्म का श्रेष्ठ फल मिलेगा निम्न कार्य का फल भी उसी प्रकार होगा । जरुर मिलेगा ।

साहस का काम करने वालों के लिए खतरा बना रहता है लेकिन काम को करने वाले इसी में अपना काम करते हैं और खतरों से सावधान रहते हैं वे काम में सावधानी का ख्याल रखते हैं ।

कुछ काम ऐसे होते है जिसमे गलती होने के आसार बने रहते है जैसे बिजली का काम या कोई सामान तो अगर उसको करने में गलती हो जाय तो यह न सोचिये की गलती हो गई आपका भाग्य ख़राब था या अन्य कुछ पुनः करिए और सावधानी बढ़ा लीजिये । हम अपने जीवन में भी अपनी बुद्धि और विवेक का साथ लेकर बहुत कुछ कर सकतें हैं अगर साधनी से काम नही करेंगे तो डूबना तय है ।

ईश्वर की सर्व श्रेष्ठ रचना है मनुष्य इसलिए जो कुछ श्रेष्ठ है वो सब पाने का अधिकार मनुष्य को है । उसे श्रेष्ठता पूर्वक जीवन को जीना चाहिए । अपने व्यवहार ,विचार बुद्धि कौशल ,रहन -सहन सब श्रेष्ठ बनाना चाहिए ।

मनुष्य अगर ऊपर न उठा ,ऊँचा न सोचा ,मानव संवेदना उसमे न आई .तो वह असफल ही कहा जायगा । दृढ़ बुद्धि ही कार्य करने की प्रेरणा देती है ,प्रतिकूलता में भी धैर्य खोने नही देती । क्या छोटा क्या बड़ा ,क्या कठिन ,क्या सरल चाहे जैसा भी कार्य हो दृढ़ बुद्धि वाला घबराता नही । वह केवल अपने काम में लगा रहता है ।

हर मनुष्य पूर्णता प्राप्त कर सकता है और आज का आदमी तो प्रकृति पर भी विजय पा लिया है ,कोई कार्य उसके लिए असम्भव नही है फ़िर भी अगर आप कुछ करने से घबरातें है तो इसमे आपकी कमी है । भय और भ्रम से बाहर निकल कर निडर होकर सफलता की ओर कदम बढ़ाये ।

मनोबल ऊँचा रखना चाहिए शारीरिक बल से अधिक काम करता है मनो बल । मनोबल अगर गिरा हो तो शरीर का बल क्षीण हो जाता है । ऊँचे मनो बल वाला मृत्यु को भी मित्र की तरह अपनाता है ।

आपने देखा होगा कुछ लोग लंबे तगडे ,स्वस्थ और बलशाली दीखते हैं पर किसी काम को इतनी सुगमता से नही कर पाते जितना की एक दुर्बल आदमी बताइए क्या बात होती है जो एक ही काम को एक दुर्बल आदमी आसानी से संपन्न कर लेता है और एक तगड़ा दिखने वाला आदमी नही कर पाता । यहाँ मनोयोग की कमी होती है ,मनोबल की कमी होती है ।

चन्द्र गुप्त मौर्य को कौन नही जानता एक मुर नाम की दासी के पुत्र थे । चाणक्य जैसे गुरु की संगत और उनका मार्ग दर्शन पाकर चन्द्र गुप्त अपने साहसिक कार्यों से महान सेनापति बना और पूरे भारत को एक सूत्र में पिरो कर अखंड भारत पर शासन किया । मनुष्य अपने मन की शक्ति को केंद्रित करके असंभव भी संभव कर लेता है । पुष्ट मनोबल आत्म विश्वास को बढाता है । ऊँचे मनोबल वाला आदमी सबको अपनी तरफ़ मोड़ लेता है । उसमे एक ऐसा आकर्षण होता है की लोग उसका पूरा भरोसा करते हैं और उसकी इक्षा अनुसार चलने लगते हैं ।

मनोबल ऐसी ताकत है जो हमारे दिमाग और शरीर दोनों को प्रभावित करता है । हमारे विचारो को प्रभावी बनाता है जीवन पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है । हमारी गति विधियां ठोस होती है जीवन में सुखकारी परिवर्तन आता है इस लिए अपना मनोबल स्वस्थ रखें भाग्य को सवारें और सफल बने ।

महात्मा बुद्ध और गांधी जैसे महापुरुष अपनी प्रचंड मनोशक्ति के कारण ही उर्ध्व दिशा में बढे । निर्बल मन के लोग अवश हो कर बहते चले जाते हैं । दुर्बल स्थिति का लाभ प्रबल मन वाले उठाते हैं । दुर्बल मन वाले अनौचित्य कार्य भी करते हैं । दुर्बल मन वाले अपनी मनोस्थिति में परिवर्तन कर सकतें हैं । दृढ़ इक्षा करें तो दुर्बल मन वाले भी सबल बन सकते हैं । आपने देखा होगा ऐसे लोगों को जो जवान होकर भी इतने थके हुए लगते हैं की लगता है वर्षों पहले हँसे होगे ।दूसरी तरफ़ कुछ ऐसे लोग भी मिल जायंगे जो ७०-७५ के होकर भी उर्जावान लगते हैं। उनके कार्य भी युवाओं से ज्यादा जल्दी संपन्न होतें हैं और काम के समय बीच में उनको रुकना नही आता । ऐसे लोगों का अवचेतन मन केवल दृढ़ इक्षा करता है इसी कारण मन थकता नही जवान रहता है । ऐसे लोग एक काम करके दूसरे लक्ष्य पर नजर रखते है खाली नही बैठना चाहते । जिसने यह सोचा की मैंने काम कर लिया तो अवचेतन मन में एक प्रकार का दबाव बनता है की अब रुको बहुत किया वह ख़ुद को थका महसूस करता है यही है बूढा मन । इसके विपरीत जो सोचता अभी तो बहुत करना है एक ऊंचाई पर अपना लक्ष्य बनाता और काम करना ही अपना शौक बनाता है वह है जवान मन ।

एक मन सोचता है काम हो गया अब आराम करें । एक मन अपनी कर्मठता से नए -नए रास्ते बनाता चलता है सफलता के ।

अगर आपकी सामाजिक स्थिति अच्छी है तो आपके पास अवसर अधिक रहेंगे । अच्छे लोगों की संगत से स्वर्णिम अवसर आते हैं । भाग्यशाली जिनको आप मानते है उनमे साहस भी बहुत होता है शायद ही कोई डरपोक भाग्यशाली हुआ हो । इस प्रकार साहस और कर्मठता से भाग्य के रास्ते खुलते है । हो सकता है आपका सामाजिक दायरा बहुत कम हो पर आप मित्रों की टीम बना कर भी काम कर सकतें है बहुत से ऐसे लोग है जो ख़ुद तो अर्थाभाव में थे पर विश्वसनीय मित्रों की टीम बना कर बहुत बड़ा काम कर डाले हैं

जीवन में बहुत कुछ होता है जो नही होना चाहिए था पर हम उसे मात्र एक घटना समझ कर भूल जाते है । बहुत कुछ हम महत्व हीन समझ कर छोड़ देते हैं या भूल जातें हैं और बाद में यही हमारे दुःख का कारण बनता है । हम अपनी ही कमियों के कारण असफल होते हैं लेकिन सफलता की ज्योति असफलता में ही छिपी रहती है । भय ,क्रोध ,असफलता आदि बुराईयाँ हम दूर कर सकते हैं । बार -बार कोशिश करें अपनी कमी दूर करने की पर कुछ काम ऐसे होतें हैं जो बार बार नही होते इसमे अगर गलती हो जाय तो कौन पार करे । फ़िर तो अपना धीरज ही काम आता है ।

आत्म विश्स्वास का अर्थ है अपने पर विश्स्वास करना । अपनी क्षमता का सही आकलन यह एक नैसर्गिक क्षमता है जो सब को नही मिलती । किसी -किसी में कुछ ऐसा गुण रहता है जो वो नही जानता इसलिए अपने भीतर झाँक कर देखे ,अपना आकलन करें । एक बहुत साधारण और अनपढ़ के पुत्र अब्राहिम लिंकन संसार के महान व्यक्ति बने ।

सही निर्णय करना सबल मन का परिचायक है । करें या न करें यह सोचने वाले दुर्बल मन के होते हैं । संयम और स्वस्थ चिंतन से इसे बढाया जा सकता है ।

कुछ सार्थक करते रहे खाली समय न जाने दे । कुछ अर्जित करते रहें ताकि किसी से कुछ माँगने की जरुरत न पड़े ।

१०० बार गिर कर भी उठो । आशा का दामन न छोडो । मन की दुर्बलता से लडो सीखो । अपनी प्रसुप्त क्षमता को जगाओ । अपने सोच की सार्थकता सिद्ध करो ।

आपकी सोच सार्थक है ,पवित्र है ,कल्याण कारी और उन्नत है तो दृढ़ इक्षा के साथ उसे पूरा करे जरुर पूरा होगा ।

दृढ़ संकल्प को कोई रोक नही सकता । उसे पूरा करने का प्रयास भर पूर होना चाहिए । जिस प्रकार सोते हुए सिंह के मुख में पशु अपने आप नही चले जाते उसे भोजन पाने के लिए प्रयास करना पड़ता है । उसी प्रकार किसी संकल्प को पूरा करने के लिए प्रयास की आवश्यकता होती है ।

कोई भी उपलब्धि हो सबका आधार होता है श्रम । श्रम के बिना कुछ नही हो सकता । कल्पना और आकांक्षा होनी चाहिए पर वह पूरा तभी होगा जब उस पर कुशलता के साथ परिश्रम हो ।

इंसान कुछ भी न होता अगर इसने संकल्प पूर्वक श्रम न किया होता ।मनुष्य ने अपनी आवश्यकता के अनुसार नित नई खोज करता रहा तभी आज मानव श्रेष्ठ कहलाया । वह चंद्रमा पर जा रहा है और चंद्रमा पर बसने के स्वप्न को साकार करने के चेष्टा में लगा है ।

एक बात मैं कहना चाहती हूँ की -स्वप्न भी अपनी सीमा के अन्दर हो तभी साकार होते है । जैसे एक कम पढ़ा -लिखा अगर सोचे की मैं जिला अधिकारी बन जाऊ तो यह असम्भव होगा ,एक लंगडा क्रिकेट का खिलाडी नही बन सकता । इसलिए इच्छाए अपने सामर्थ्य के अनुरूप होनी चाहिए ताकि हम उन्हें पूरा कर सके ।

अपने पाठको से अनुरोध है की मानव जीवन तभी श्रेष्ठ है जब वह सफल हो । सफलता की कोई एक परिभाषा नही होती इसके कई आयाम होते है और हर एक के जीवन में इसकी प्राथमिकता भी अलग होती है पर एक बात अटल है की सफलता बिना श्रम ,संघर्ष के नही मिलती और जब मिलती है तो बड़ी सुखद होती है । सफलता से इन्सान ख़ुद को पहचान पाता है । अपने व्यक्तित्व का निर्माता बन जाता है ।

अपनी शक्ति पर भरोसा करें । प्रतिकूलताओं में धैर्य से काम ले ,बचकानी हरकतें जैसे झूठी शान दिखाना ,ढोंग करना ,अपनी असलियत छिपाना ,बनावटीपन होना ,इतर कर चलना ये सब हरकतें आपके व्यक्तित्व को खराब करती है । इसलिए इनसे दूर रहिये । जो लोग बिना वजह झूठ बोलते है या छल करते हैं उनका कोई विश्स्वास नही करता । ऐसे लोगों से सतर्क रहे । परिश्रम और आत्म विश्स्वास से जीवन सफल बनाइये और खुशिया पाइए । अपना पथ स्वयं बनाना पड़ता है ।

जब तक हो सके ,जितना हो सके सक्रीय बने रहे । कुछ लोग दुःख की स्थिति आने पर बहुत जल्दी अपनी पूर्व स्थिति में चले आतें है । अपनी सक्रियता बनाये रखने के लिए यह जरुरी है । दुःख की अवस्था में बैठे रहने से कुछ नही होगा । सक्रियता ,स्फूर्ति ,प्रफुल्लता ,उत्साह ,उमंग बने रहने से काम करने की ताकत रहती है और स्वास्थ भी अच्छा रहता है । मानसिक धरातल पुष्ट होने पर ही सफल हो सकते हैं ।

खुश रहने से उर्जा बनी रहती है । इसलिए किसी भी बात पर तुरत उत्तेजित न हो ,क्रोधित न हो । अपनी दिन चर्या ईश नमन से शुरू करें । प्रति कूलता धैर्य बोध कराती है इसमे सफलता छिपी होती है । बहुत शांत ,धैर्य वान और धीर व्यक्ति को सफलता अपना मित्र बनाती है ।

एक व्यक्ति जब कहता है मैं यह काम नही कर पाऊंगा तो या तो वो करना नही चाहता या फ़िर उसे करना नही आता नही आता तो सीखा जा सकता है ।

दृष्टि सकारात्मक हो तो हर स्थिति को अनुकूल बनाया जा सकता है ।

कुछ लोगों की आदत होती है केवल कमियों को ही देखतें हैं । ये लोग अपनी कमी के लिए भी दूसरों को ही दोषी मानते है । इनको हर जगह ,हर किसी में कमी दिखती है । इनकी संगत में उर्जावान व्यक्ति भी निराश हो जाता है

निराशावादी व्यक्ति अपने को बदल सकता है । अपनी सोच को सकारात्मक बना कर ,हर किसी में अच्छाई खोजें किसी की खुशी में खुश हो ,सबके लिए अच्छा सोचें । किसी की निंदा न करें । अपने शौक को जरुर पूरा करें । अच्छा और समझ दार व्यक्ति ,सभी के लिए सभ्य रहेगा ,वह धैर्यवान होगा ।

मनुष्य की ख़ास शक्ति -मनुष्य जीवन का सबसे ख़ास पहलु यह है की इंसान अपने आपको बदल सकता है । अपनी अंदरूनी ताकत से जिंदगी को बेहतर बना सकता है ।

-निर्णय से पहले परिणाम पर ब्यापकता विचार करिए । हमारी जीत में अथवा सफलता में हमारे नजरिये का बहुत असर होता है । एक ग़लत निर्णय कभी -कभी बहुत दुःख देता है ।

-मौके हमें हर रोज मिलते हैं ,जरुरत है हमें ख़ुद को पहचाने की । वक्त पर सही फ़ैसला न ले पाने पर बाद में पछताना पड़ता है ।

-एक सफल व्यक्ति में सकारात्मक सोच ,नैतिक मूल्य ,अच्छा चरित्र और श्रम शीलता होगी । ये सारे गुण मिल कर एक सफल व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं ।

-एक अच्छा इंसान अच्छा दिमाग भी रखता है । वह जो होता है वही दिखता भी है अपने को बढ़ कर नही बताता।

-सफलता के लिए इतने मजबूत बन जाइए की कोई आपकी शान्ति भंग न कर सके । हमेशा अच्छी सेहत ,खुशी और समृद्धि के लिए सोचे ।

-अपने को बेहतर बनाने में इतना वक्त लगाओ की व्यर्थ के कामों के लिए वक्त न रहे । इतने ऊपर उठो की चिंता छू न सके ।

-बीते दिनों की गलतियों को भूल जाना अच्छा रहेगा क्योंकि उन्हें याद करके दुःख ही मिलेगा और कुछ नही । हमारा आज भी ख़राब होगा । सब भूल कर आगे बढ़ कर कामयाबी का रास्ता खोजें ।

-बेमकसद जीवन जीने से अच्छा है कुछ करते रहना , सार्थकता ही अमरत्व है ।

-हमारी सफलता में हमारे व्यवहार का असर बहुत होता है । किसी को सुनना ,समझना फ़िर मित्रवत कुशलता के साथ रहना चाहिए । आजकल के बच्चे न तो अनुशाषित हैं ,न श्रम करते हैं समझ और धैर्य का होना तो दूर की बात है । बहुत पढेलिखे भी अपराध कर बैठते हैं ।

-अज्ञानी और बेवकूफ लोगों में एक गजब का विश्वास होता है वे अपराध करके भी उसके खौफ से बेख़ौफ़ रहते हैं। उनसे कौन सर फोड़े । ऐसे लोगों को दूर से प्रणाम करके अपना काम करना ठीक होता है ।

-हमारा स्वाभिमान बना रहे ,सोच उर्जावान हो ,इसके लिए रोज ख़ुद को नया करें । रोज सीखना होगा । अपना सोचने का तरीका बेहतर बनाना होगा । एक उदहारण -दो भाई थे बिभु और विकास । एक दिन विभु अपनी गाड़ी धो रहे थे ,एक सज्जन ने पूछा कब लिए ?विभु ने कहा भाई ने दिया -तो उन्होंने कहा काश मैं भी ले पाता । उसने ये नही कहा की- काश मेरा भी ऐसा भाई होता . मुझे बुरा लगा की आज के लोग किस तरह से सोचते हैं ,इतनी छोटी सोच क्यों हो गई है ।

-काम को देख कर और संगत को देखकर किसी आदमी के स्तर को जाना जा सकता है । एक शराबी शराब को बुरा नही मानता ,तमाम कशीदे पढता है शराब के पक्ष में ,और जो लोग नही पीते उनको वो इस नजर से देखता है जैसे वो इनसे छोटा हो । पीने को वो अपना बड़प्पन मानते हैं तुर्रा ये की जितना तुम बचाते हो उतना मैं पिजाता हूँ

क्या ऐसे लोग शिक्षित कहे जा सकते हैं ?एक शराबी अपने घर को तो बरबाद करता ही है आस पास के लोग भी त्रस्त रहते है ,नशे में गाड़ी चलाने वाले कितनो की जान ले लेते हैं । एक दिन ख़ुद भी किसी भयंकर बीमारी का शिकार होते हैं और असमय मृत्यु को प्राप्त होते है । नशे में हिंसा और अपराध तो करता ही है ।

-आज महिलायें सुरक्षित नही हैं । अश्लीलता और यौन अपराध में दूनी गति से वृद्धि हो रही है । आज नैतिक मूल्य और सादगी मजाक का कारण बन जाता है । दिखावे पर शिक्षा और सादगी दबी जा रही है ।आज पुराने मूल्यों में छिपे रहस्य को कोई समझना नही चाहता युवकों ने मनमानी को आजादी समझ लिया है इसी आजादी में वे ग़लत काम करते हैं । ये कैसी शिक्षा है जो लोगों को प्रकाश और अन्धकार में भेद नही बता पाती है ।

-सफल होने के लिए अपने को जाग्रत करना पड़ता है एक उदहारण दे आपको -

एक माँ अपने बच्चे के लिए कुछ भी करना पड़े करती है ,अपने बच्चे की देख भाल में वो अपना ख्याल नही रखती पर इसको लेकर उसके मन में कोई गिला नही रहती वह बड़ी खुशी से इस काम को करती है दिन रात कुछ नही बाधक बनते उसके इस काम में ,जानते हैं क्यों ? क्यों की उसे अपने इस काम में मन लगा होता है उसकी पूर्ण रूचि रहती है इसमे । इसी प्रकार जिस काम में रूचि होगी उसमे सफलता भी मिलेगी ही । तो रूचि पूर्ण काम भी आपको सफल बना देगा । बुनियादी मूल्यों को न छोड़े । मैं फ़िर एक बार लिखती हूँ की १०० बार गिर कर भी न हारे ,जब तक प्राण रहे तब तक न हारे । दृष्टि को लक्ष्य पर केंद्रित करें । जय होगी ,जीत होगी ,सफलता मिलेगी

आइये अब हम जाने की कुछ लोग बहुत मेहनत करके भी क्यों नही लक्ष्य पाते -

आपने देखा होगा कुछ लोग एक के बाद एक बाधा को आसानी से पार करते हुए चले जाते हैं जब की कुछ लोग संघर्ष ही करते रह जाते हैं ।कही नही पहुँच पाते जो लोग ,कोल्हू के बैल की तरह गोल -गोल घूमते रह जाते हैं और आंखों के सामने से जीवन बीत जाता है । पहले हम उनकी चर्चा करेंगे जो लोग सफलता को चूमते चले जाते हैं -

-जो लोग स्वस्थ और प्रसन्न रहते हैं उनके पास समाधान भी होता है और ऐसे व्यक्ति सबको अच्छे लगते हैं ।

-हमेशा अच्छी चीजों की खोज में रहें अपने काम में तत्पर रहे ,अपनी गलती विनम्रता पूर्वक स्वीकार कर ले अपने काम में कुशलता बढ़ाने का प्रयत्न करतें रहे ।

अपने वचन के प्रति सचेत रहे अपना लक्ष्य स्पष्ट रखे । जो लोग अपने बुनियादी मूल्यों को नही छोड़ते उन पर लोग भरोसा करते हैं ,समाज में उनको मान मिलता है ।

-असफल होने पर निराश न हो । १००बार गलती होने पर भी प्रयास न छोड़े । हार न माने हमारे ऋषियों ने चीटी को भी अपना गुरु माना और निरंतर चलते रहना अपने वजन से अधिक भार उठाने की क्षमता चीटियों से सीखा।

-संघर्ष से ही कुशलता बढती है । कठिनाइया एक नया सबक देती हैं -महाकवि काली दास और व्यकरण के रचयिता पाणिनि ये दोनो महा मूर्ख कहे जाते थे । समय की ठोकरों ने इनकी चेतना को जगाया और महान कवि बना दिया । कामयाबी इनको तकदीर से नही मिली । जीवन के अपमान और ठोकरों के घाव ने इनकी चेतना को जागृत किया ,ठोकरें इनकी प्रेरणा बन गई । अगर आप ठान ले तो जरुर सफल होंगे ।

-एक आदमी जो पाता है वही खा जाता है उसके खाने पीने का कोई नियम नही है सेहत का ख्याल न रख कर जो पसंद है वो खाता है ,एक दिन मोटा होकर बीमारी का शिकार हो जाता है । कोई नशा करता है यह जानते हुए की नशा करना हानिकारक है फ़िर भी करता है ,एक व्यक्ति जो निरर्थक संवाद करता है ,झगडा -झंझट करता है ,अपने अहंकार में रहता है ये सारे लोग अपने जीवन में कठिनाइयों को ख़ुद बुलाते है ऐसे लोग अपने में सुधर करके अपना जीवन सवार सकते हैं । सफल बन सकते हैं ।

जीवन के कोई भी महत्व पूर्ण फैसले जल्दबाजी में न करें ,पूरे हालत को समझ कर निर्णय लेना चाहिए ।

-कई बार ऐसे मौके भी आते हैं जब अपने जमीर के खिलाफ जा कर भी काम करना पड़ता है ऐसे में अपना धीरज नही खोना और सही वक्त का इन्तजार करना चाहिए । यह अपनी सूझ पर निर्भर करता है की आप इससे कैसे निकले ,अपने क्षमता को परखने का यही मौका होता है ।

-प्रबल इक्षा ही आपको सफल बनाती है आप तब कई प्रकार से सोचने लगते हैं उन्ही में आपको हल मिल जाता है।

-जीवन में कुछ मूल्य अवश्य होने चाहिए ,अपने पैसे का नाजायज इस्ते माल न करे क्यों की इससे कभी आपको दुःख मिल सकता है ।

जीवन में हारना नही है यह भाव एक सुरक्षात्मक आवरण में रखता है । हमें जीतना है यह भाव हमें मुकाबले के लिए तैयार करता है । अपनी शक्ति को पहचानने का मौका देता है । कठिन श्रम से ही जीत हासिल होती है ।

सफल होना अचानक नही होता इसकी पृष्ठभूमि तैयार करनी पड़ती है । दिल ,दिमाग ,आँख ,कान ,श्रम सब कुछ लगाना पड़ता है । आलोचना भी होती है पर दृढ़ रकार अपना काम करना चाहिए ।

कुछ लोग क्यों असफल रह जाते हैं -

-कठिन श्रम करके भी सफलता का स्वाद न मिले तो विचार करे कही आप में निम्न कमियां तो नही हैं

१-क्या आप बहुत जल्द अपने सफलता को पाना चाह रहे हैं ।

२- कही आपके काम करने के तरीके में गलती तो नही है कोई बाधा जिसे आप नजरअंदाज कर रहे हों ।

३- श्रम में कमी या अरुचि तो नही है ।

४-अगर आपका काम योजना बद्ध नही है तो रुकावट आएगा और आर्थिक नुकसान भी होगा ।

५-दृढ़ता की कमी ,गलती के प्रति सावधान न होना ,या विरोध न प्रकट करना भी असफलता का कारण होता है ।

६- सफलता का एक बहुत छोटा सा सूत्र है -कुछ किए बिना ,कुछ नही पा सकते । श्रम करने से बचना असफलता का कारण होता है ।

७- भाग्य के भरोसे बैठे रहना ,अपनी कोशिश न करना ,अपने विचार से न सोचना ।

८- सफलता न कोई देता है ,न कही मिलती है इसे पाने के लिए जिन्दगी को सही राह पर ले जाना पड़ता है । असफलता के लाख बहाने होते हैं जैसे -यह मेरे नसीब में नही था ,मेरी किस्मत ख़राब है ,अब मेरी उमर अधिक हो गई है ,मुझे चालाकी नही आती आदि -आदि ।

उसने सारा दिन काम किया और सारी रात काम किया ,उसने खेलना छोड़ा

और मौज मस्ती छोड़ी ,उसने ज्ञान के ग्रन्थ पढ़े और नई बातें सीखी ,वह आगे बढ़ता गया

पाने के लिए सफलता जरा सी ,दिल में विश्वास और हिम्मत लिए वह आगे बढ़ा

और जब वह सफल हुआ ,लोगों ने उसे भाग्यशाली कहा ॥ अज्ञात

सफलता का एक अहम् पहलु है प्रेरणा ,बिना प्रेरित हुए कोई कुछ नही कर सकता । प्रेरणा के लिए संगत ,परिवेश और अपनी इक्षा का होना आवश्यक है । हम अपनी प्रेरणा शक्ति को कैसे बढ़ा सकतें हैं ,जगा सकते हैं इस पर चर्चा करतें हैं -

प्रेरणा को बढ़ाने के लिए - आप बहुत अच्छे हैं ,बुद्धिमान हैं फ़िर भी रोज अपने को परखिये ,और बेहतर बनने की कोशिश करिए (रोज ख़ुद को जाचने ने गलतियों की संभावना बहुत कम हो जाती है ,हम ठीक है यह सोच कर हम लापरवाह हो जाने पर काम ग़लत हो जाता है )।

अगर किसी से पूछें की अमुक काम आप किस प्रकार करतें हैं तो वह आपको बहुत से उपाय बतायेगा ,अगर आप पूछें की कैसे रहना चाहिए तो वह बहुत से तरीके बतायेगा अब अगर आप उससे पूछे की क्या आप ये सब करते है तो वह रुक कर सोचने लगेगा । इसकी वजह है प्रेरणा का अभाव । प्रेरणा तब आती है जब हम अपनी जिम्मेदारी महसूस करे । जब हम यह समझ ले की सब काम हमको कुशलता पूर्वक करना है । जब जिम्मेदारी स्वीकार कर लेंगे तो काम करने का नजरिया भी बदलेगा । तब हमें यह चिंता रहेगी की काम की जबाव देही मेरी होगी इसलिए काम ठीक से करने की प्रेरणा मिलेगी ।

जब हमारे फैसले सही होते हैं तो खुशी मिलती है और सार्थक जीवन की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती हैंजब प्रेरणा जगती हैं तो तब रास्ता मिल जाता हैं । प्रेरणा बड़ी शक्तिशाली चीज हैं किसी काम को हम तब कुशलता के साथ संपन्न कर पाते हैं जब प्रबल प्रेरक शक्ती होती हैं ।

काम करने में ख़ुद की याद न रहना ,इसके पीछे प्रेरणा ही होती हैं । प्रेरणा के बिना काम नही कर सकते

प्रेरणा शक्ति बढ़ाइ जा सकती है । कोई अगर किसी ख़ास लक्ष्य के प्रति समर्पित हो तो प्रेरणा शक्ति बढ़ा कर एक दिन वो सफलता के ऊँचे पायदान पर पहुँच जाता है । जैसे क्रिकेट जगत में सचिन और सिने जगत में अमिताभ। सचिन एक लंबे समय से टिके हैं और नई -नई उचाईयां छूते जा रहे हैं । आज सचिन हमारे देश का गौरव और नवजवानों की प्रेरणा बन चुके हैं । सचिन में ऊँचे दर्जे की प्रेरणा ,आदर्श और लगन तीनो है ।

सिने जगत में अमिताभ को कौन नही जानता । अमिताभ ने अपने समय के कलाकारों को पीछे छोड़ दिया है । आज भी लोग उनके दीवाने हैं । नए नए रोल में अमिताभ आज भी सक्रीय हैं अपनी प्रेरणा शक्ति के कारण ही वो आज भी लोकप्रिय और आकर्षक हैं ।

प्रेरणा के स्रोत - जब ख़ुद पर विश्वास हो तो काम करने की प्रेरणा मिलती है । क्यों की हम जानते हंत की यह काम हम कर लेंगे ,जब काम की लगन लगे तो लक्ष्य का इन्तजार रहता है काम करने की प्रेरणा मिलती है ।

अपनी क्षमता का वास्तविक रूप प्रकट करें दिखावा न करे ।जब आप सोचते हैं की मैं हार नही मानुगा तो इसके पीछे प्रेरणा शक्ती ही काम करती है

अन्तः प्रेरणा ही हमको अपनी जिम्मेदारी को खुशी -खुशी पूरा करने की शक्ती देती है । आप जिसे बहुत प्यार करतें हैं चाहे वो कोई भी रिश्ते में उसके लिए आप अपनी जान की परवाह भी नही करते यह बताने के लिए की हम तुम्हे बहुत प्यार करतें हैं -आप कुछ भी करने को ,त्यागने को तत्पर रहतें हैं । पूरी दुनिया में इस तरह की तमाम घटनाएं हुई है ,होती रहेंगी ।अगर हमारे किसी काम से हमारे प्रिय को पीड़ा या तकलीफ होती है तो हम अपने काम ,अपने नजरिये को भी बदल देतें हैं । कभी अगर किसी दुःख के जिम्मेदार हम ख़ुद को मान लेतें हैं तो जीवन भर इस दुःख से हम दुखी रहते हैं । हमारी प्रेरणा बेहतरी के हर प्रयास को करने की शक्ति जगाती है ।

भय ,कठिनाई और अपमान में भी प्रेरणा ही है । उत्साह ,खुशी और सफलता भी प्रेरणा से ही मिलती है

सफलता का एहसास ,आत्मसमान ,दृढ़ विश्वास ये सब आंतरिक प्रेरणा है । लोग हमें सम्मान दे ,हमसे जुड़े ,हमारे काम को सराहें यह सोच कर काम करना यह सब आंतरिक प्रेरणा है । सबसे बड़ी बात होती है जिम्मेदारी का एहसास ,यही एहसास आपके व्यक्तित्व और उत्साह को बढाता है । मुझे सफल होना है जब यह इक्षा होती है तो अपनी जिम्मेदारी का एहसास भी बढ़ जाता है ,सम्मान पाने की इक्षा उत्साह को बढाता है । यह दोनों एक सिक्के के दो पहलू है । दोनों मिलकर काम करने की शक्ती को बढाते हैं । कुछ लोग बहुत उदास ,निराश और हताश रहतें हैं ,अपने आपको छोटे से दायरे में रखतें हैं । इस प्रकार आदमी प्रेरणा हीन हो जाता हैं इनसे दूर रहना चाहिए ।

अपनी उंची और अच्छी सोच के कारण काम करने के दृढ़ संकल्प के कारण ,स्वाभिमान के कारण सफलता हासिल होती है । यह सब कायम रहे इसलिए प्रेरणा चाहिए ।

ऊँचे दर्जे का आत्मसम्मान जिसके पास है वह अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझता है । वह समाज से अपने सम्मान को किसी भी कीमत पर खोने नही देता । प्रेरणा से बिंधा हुआ मन हमेशा एक आशा का दीप जलाये रखता है ,हर स्थिति में समान रहता है ।

आत्म सम्मान से परिपूर्ण व्यक्ति दूसरों की भावनाओं और जरूरतों का भी ख्याल रखता है उसके अन्दर एक प्रकार की सेवा भावना सब के लिए होती है ।

आत्म सम्मान कैसे बढाए ?

आत्म सम्मान बढ़ाने के लिए कुछ नया करें कुछ अलग करें ,कुछ ऐसा करें जो सम्मान जनक को । एक दिन मैंने दूरदर्शन पर देखा चीन के किसान जो तरबूजे की खेती करतें हैं । जब तरबूजे छोटे रहते हैं तो किसान उनको एक विशेष आकार के जार में रख देतें हैं जिस आकर -प्रकार का जार होता है उसी प्रकार का -जैसे कोई तिकोना कोई गोल कोई आयताकार तरबूज बन जाता है । एक विशेष आकर के तरबूज की कीमत अधिक होती है ।

इसी तरह हम अपने भाग्य को ,अपने स्वभिमान को अपनी कल्पना के अनुरूप बना सकतें हैं । बस एक ख़ास सोच की जरुरत होती है । जो मौलिक हो ,जिसका परिणाम अच्छा हो ।

किसी में आत्म सम्मान है ऐसे पहचाने -

- पर निंदक और गपोड़ी न हो ।

-अहंकार और दूसरों को नीचा दिखाना ,व्यर्थ की बातों का बड़ा विवाद बना लेना ,अपनी असफलता के कारणों पर गौर न करके बहाने खोजना ये सब नही होना चाहिए ।

-अपनी सकारात्मक आलोचना को खुशी से स्वीकार करलेना ।

-सबके साथ व्यवहार में अदब और सलीका कायम रखे ,गंदे एवं भद्दे मजाक न करें । अपने वचन के प्रती प्रतिबद्ध रहे ।

-संतुलन का होना जरुरी होता है । बिना सामर्थ्य का चाँद को खरीदने की बात न करें । डींगे हांकना या गप्प करना असंतुलित दिमाग की निशानी है ।

-दिशाहीन नजरिया न रखें स्वाभिमानी व्यक्ती अपने देश ,समाज और मनुष्यता को कुछ देकर जाते हैं ।

-अगर कोई इंसान भीतर से अशांत है तो वह किसी को शांत नही रहने देगा । इसलिए दूसरों को कुछ देने के लिए पहले अपने पास होना चाहिए ।

अपने पास सफलता का मन्त्र हो तो अपने मित्र भी बनेगे ,सम्मान भी मिलेगा और अपना आत्मविश्वास भी बढ़ता है । सफलता और व्यक्तित्व की पहली नीव घर से पड़ती है । घर का वातावरण इसमे विशेष भूमिका निभाता है। घर के लोग सज्जन और विनम्र होगे तो बच्चे भी वही सीखेंगे । इसलिए बच्चों के पालन पोषण और उचित देख -भाल की जरुरत होती है । उनकी रुची को दिशा देना उनको तराशना अभिभावक का काम होता है । अच्छे माता -पिता बनाना बहुत बड़ी बात होती है । एक कुशल अभिभावक जिन बच्चों को मिले वे अपनी आने वाली पीढ़ियों को एक उदहारण पेश करतें हैं । किसी भी घर -परिवार में एक पूर्ण सफल आदमी का होना विरासत है ।

माता पिता अपने बच्चों को बताएं -

-की हर चीज मूल्यवान होती है ,एक फेक देने वाली चीज भी किसी काम आ सकती है और कुछ नही तो कबाड़ में जाकर वो एक नया रूप ले कर हमारे सामने आती है । इसलिए कोई चीज बेकार नही होती ।

-बच्चे को बताएं की वह अपने काम को ख़ुद करे जैसे -अपनी किताबे ठीक से रखे ,स्कूल से आकर अपनी ड्रेस जूते ,मोज़े ,बस्ता सब यथा स्थान रखें । अपनी सफाई पर ध्यान दे ।

-उसे बताएं की सच बोलना अच्छी बात है । ईमानदारी आत्मबल बढ़ाती है और इससे सम्मान मिलता है ।

-उसे बताएं की झूठ बोलने से तिरस्कार मिलता है ,इसलिए झूठ नही बोलना चाहिए ।

-बच्चों को ऐसे खेल देना चाहिए जिसमे दिमागी कसरत हो सके

-बच्चोंकी संगत कैसी है इसका ध्यान हर अभिभावक को देना चाहिए । उसके क्रिया कलाप पर ध्यान दे अपने घर के वातावरण पर और अनुशाशन पर अवश्य ध्यान दे ।

-बच्चे का खान पान स्वस्थ हो ताकि वह स्वस्थ और प्रसन्न रहे । तभी वह अपने हर काम को कुशलता से कर पायेगा ।

-उसे यह भी बताइये की दूसरों की मदद करना अच्छी बात होती है । उसे अपने देश और सार्वजनिक संपत्ति से प्यार करना सिखाइए । एक अच्छे नागरिक के क्या गुन होने चाहिए उसे यश कैसे मिलेगा यह भी बताइये ।

-उसे आजादी के सही मायने बताइये ,अनुशासन में रह कर आजादी खुशी देती है ,यह भी बताइये ताकि आजादी की आड़ में वह गलतियाँ न करें ।

-बच्चे को अच्छे काम के लिए प्रोत्साहन जरुर दीजिये कुछ अच्छा करने पर शाबाशी या कोई उपहार भी दे ऐसा करने पर आपके बच्चे का आत्मबल बढेगा । वह ख़ुद पर भरोसा करना सीखेगा ।

बच्चे की नीव अगर मजबूत रहती है तो वह कुशल व्यक्तित्व का मालिक बनता है । वह बचपन का सीखा हुआ जीवन भर नही भूलता है ।

स्वभानी लोग दूसरो की तुलना या मुकाबला नही करते वे व्यर्थ समय जाया नही करते ,वे तो निरंतर अपनी क्षमता को बढ़ाने में लगे रहते है । फ़िर धीरे -धीरे एक दिन सफलता के ऊँचे पायदान पर पहुँच जाते हैं । वे अपने काम की गिनती नही करते एक के बाद एक करते जाते हैं । अपनी क्षमता और कुशलता में निखार लाते जाते है ,ख़ुद से मुकाबला करतें हैं ।

अच्छे माता -पिता अपने बच्चो को अनुशासन में रखतें हैं । आइये जाने की अनुशासन और आजादी किसे कहते हैं ?

आजादी वो है जो अनुशासन में रह कर आनंद देती है और अनुशासन विहीन आजादी दुःख का कारण बनती है । कई बार अनुशासन में रहना कष्टकर लगता है पर उसमे दूरदर्शिता छिपी होती है । सड़क पर अगर ट्राफिक नियमो का पालन न हो तो क्या होगा ? सोचिये जब सब आजाद होंगे तो मनमानी बढ़ेगी और तब ....दुर्घटना होगी। इसलिए अनुशासन जरुरी है ताकि व्यवस्था बने और सबको सामान अवसर मिले । अनुशासन में रहकर कुशलता की पहचान होती है । अनुशासन में कभी -कभी लचीला रुख अपना ले पर एकदम से छोड़ देना खतरनाक होगा । अनुशासन हमें एक बेहतर इंसान बनाता है ।

जब आप दूसरों के लिए अच्छे बन जाते हैं तो ख़ुद के लिए और भी बेहतर बन जाते हैं ।

बेंजामिन फ्रेंकलिन

बेहतर इंसान वो है जो हमेशा एक आशा का दीप जला कर रखता है की -मैं सब कुछ ठीक कर लूँगा । इस तरह की सोच को अपने अन्दर जिन्दा रखना सहस का काम है ।

सबकुछ से मतलब अपने आस -पास ,परिवार ,घर ,समाज और ख़ुद ,इनमे जहा कही कुछ भी ठीक न लगे उसे सुधारना अपनी जिम्मेदारी समझे । कुछ लोग सोचते है कही कुछ हो मुझे क्या ,जिसे यह करना है करे या न करे उसकी मर्जी ,मैं ग़लत हूँ तो मैं भोगूँगा आपको क्या ऐसी सोच ख़ुद गरजी और लापरवाही को दर्शाती है । एक अच्छा इंसान अपने देश ,समाज ,गाँव- घर ,शहर के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझता है और पूरा करता है ।

-अगर कुछ लोग रचना न किए होते ,कुछ लोगों ने अपनी जिम्मेदारी न समझी होती तो हम आज यहाँ न होते । एक अपराधी ,एक चोर सरे आम अपना काम करके चला जाता है और हम लोग देखते रह जाते हैं ,यह निष्क्रियता समाज का बहुत नुक्सान करती है । हम शरीर से उपस्थित होकर भी मूक दर्शक बने रहते हैं । इसी लिए आज इंसानी तकलीफें ज्यादा हैं ।

सफलता पाने के लिए कर्मठ होने के साथ -साथ आशावादी सोच ,भय और भ्रम से दूर ,लक्ष्य का निर्धारण स्पष्ट हो ,समय बद्ध होना ,स्वस्थ होना ,उत्साहित रहना ,नैतिक मूल्य होना यह सब गुण होने चाहिए ।

सार्थकता सिद्ध करना सफलता की पहचान है । कभी -कभी जल्दबाजी में या नासमझी में अथवा अनजाने में अगर किसी को ग़लत वचन देदें या कोई ऐसा वचन देदें जो हमारे मूल्यों के ख़िलाफ़ हो तो इस पर जब हमारी नजर पड़े तो इसपर फ़िर से विचार करें और किसी जोखिम में पड़ने से अच्छा है अपने वचन को तोड़ दे ।

वचन बद्धता अपने उसूलों के ख़िलाफ़ जाकर नही होनी चाहिए क्योंकि इसे निभाना संकट मोल लेना है । घर परिवार भी संकटों में पड़ता है और जिन्दगी विखर जाती है । नुक्सान और तनाव भी होता । समाज से शर्मिंदगी अलग से उठानी पड़ती है । हालात के मुताबिक सब बदल जाता है । इसलिए वचन देते समय गौर करें ।

यह सोच कर कभी दुखी न हों की हमने तो अच्छा किया पर उसने मेरे साथ बुरा किया । आप वही करें जो सही हो।

हर रोज ख़ुद से सवाल करें -क्या मैं अपने जीवन में सार्थकता के करीब पहुँच रहा हूँ । क्या मैं अपना आस -पास सुंदर बना रहा हूँ । अगर नही तो मैंने आज के दिन को बेकार कर दिया ।

जिन्दगी में एक उद्देश्य खोजें ,उसे सार्थक बनायें ।

एक मनो वैज्ञानिक प्रश्न -अगर आप भरे गिलास को देखतें हैं तो आपकी नजर कहाँ जाती है उसके भरेपन पर या खालीपन पर ? अगर आपकी नजर उसके भरेपन पर है तो आप आशावादी हैं । अनुसंधानों से यह जाना गया है की आशावादी व्यक्ति अधिक प्रसन्न व् स्वस्थ रहते हैं । आशावान लोग ही आत्मनियंत्रण कर पातें हैं । कही कुछ गड़बड़ होने पर तेजी से समाधान खोज पाते हैं । आशावान ब्यक्ति वास्तविकता को पहचान लेतें हैं ।

सकारात्मक चिंतन असाध्य रोग को भी ठीक कर देता है बीमारी को रोक देता है प्रसन्न रहना मन की एक अवस्था है । यही बाद में स्वभाव बन जाता है । यह अपने दृष्टि कोण पर निर्भर करता की हम आशावादी बने या निराशाजन्य कुंठाओं में डूबे रहे । प्रसन्न रहने के कुछ सूत्र -

अपने अन्दर से निराशा का भाव निकल दे ।

अच्छे लोगों से मेल बढ़ाएं ।

अपने प्रत्येक काम को पूर्णता की कसौटी पर मत कसिये क्यों की कोई पूर्ण नही होता ।

अपनी आलोचना से घबराइये मत । आत्मविश्लेषण करिए और अपनी कमियों को दूर कीजिये ।

अभी किसी के कहने पर अनवश्यक तनाव या कोई धारणा न बनाइए ।

अपनी गलतियों का कीर्तन न गाइए ,अपनी सफलताओं को भी प्रकट करते रहिये इससे उत्साह बना रहेगा ।

कुछ बुरा होने पर उस को मत सोचिये ये विचार आपको पीछे धकेलने वाले हैं ,कोशिश करिए फ़िर से कामयाब होने की ,अपने आपको बार -बार मौका दे । सफलता पाएं ।

जीवन में सफलता पाने के लिए एक लक्ष्य अपना कर उस का चिंतन -मनन करो ,उसे अपना जीवन बना लो अपनी सम्पूर्ण शक्ति को लगा दो अन्य विचार त्याग दो । दृढ़ता के साथ उसे पूरा करने की इक्षा करो । दृढ़ता में बड़ी ताकत होती है । प्रबल इक्षा शक्ति सफलता जरुर देगी ।

मैंने अपना यह लेख सफलता की ओर उन युवा भाई बहनों को समर्पित किया जो कुछ करना चाहतें हैं । अपने जीवन को सवारना चाहतें हैं । पूर्ण बनना चाहतें हैं । अपने समाज और परिवार के लिए उदहारण बनना चाहतें हैं उनको सहर्ष समर्पित है ।

शकुन

श्रीमद् भगवत गीता

ईश्वर की वाणीमय मूर्ति है भगवत गीता!  इसका अध्ययन हमारी मृत्यु को सँवारता है।


श्रीगीता कृष्ण की वांग्मय मूर्ति है! भगवान् वाणी के रूप में गीता के श्लोकों में बसते हैं। भगवान् ने महाभारत युद्ध से पहले, जब अर्जुन को मोह व्याप्त हो गया था, तब गीता का उपदेश दिया था। यह उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में दिया था भगवान् ने। भागवत में कहा गया है- श्री कृष्ण ने जब गीता उपदेश दिया, तो इसे अर्जुन के सिवा और कोई नही सुन सका। दोनों ओर की सेनाएं सम्मोहित सी खड़ी रहीं। अर्जुन ने गीता का उपदेश प्रभु से सुना और तमाम तरह की शंकाओं का समाधान भगवान से पाया। अर्जुन ने भगवान् का विराट रूप भी देखा। अर्जुन डर गए, बोले- हे वासुदेव, मैं आपको पहचान नहीं पाया, मुझे क्षमा कर दीजिये। मैंने आपको अपना सखा कहा और आपको साधारण मनुष्य समझता रहा।

श्री कृष्ण ने कहा जब युद्ध भूमि में आ गये हैं तो शत्रु को पराजित करना महत्वपूर्ण है। अर्जुन का मोह भंग हुआ और ''देवदत्त'',  जो उनके शंख का नाम था, उससे चुनौती भरा निनाद किया।

पांडवो ने वर्षों दुर्योधन का अत्याचार सहा। शान्ति के लिए बहुत प्रयास भी किया। १३ वर्ष तक वनवास किया ताकि युद्ध न हो। त्याग की अन्तिम सीमा तक गए पर युद्ध न टला। पांडवो ने अपनी रक्षा, न्याय और धर्म की रक्षा के लिए युद्ध किया। दुर्योधन के अत्याचारों के प्रतिवाद में यह धर्मयुद्ध हुआ।

कुरुक्षेत्र में कौरव और पांडव की सेनायें आमने सामने खड़ी हैं। श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी हैं। अर्जुन ने कहा- केशव! रथ को एक बार दोनों सेनाओं के मध्य ले चलिए। श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए रथ को आगे बढ़ा दिया।

अर्जुन ने देखा- पितामह, आचार्य द्रोण और अन्य बंधु-बांधव युद्ध के मैदान में हैं। अर्जुन का मन शिथिल हो गया। कैसे करूँगा मैं इनसे युद्ध। मैं इनका वध नहीं कर सकता। नहीं चाहिए मुझे रक्त में डूबा हुआ राज्य। इससे अच्छा है वन में रहना, भिक्षा पर जीवन निर्वाह कर लेना। मैं युद्घ नही करूँगा।

भगवान् बोले- अर्जुन तुम क्या समझते थे की ये युद्ध नहीं करेंगे? और इस युद्ध में दोनों ओर के लोग मरेंगे। जो मरेंगे इस युद्ध में उनको तुम नही मार रहे हो, यह भावी है। तुम नहीं मारोगे तब भी ये मरेंगे ।

अर्जुन अपने तपोबल से समाधि की अवस्था तक पहुँच गए थे, इसके बावजूद मोह मुक्त नहीं  हो पाए। युद्ध क्षेत्र में आते ही उनका मन संसार के मोह में बाँध गया। अर्जुन अपने पितामह, गुरु, भाई और पुत्र मोह में बंध गए।

दूसरी और दुर्योधन- वह केवल युद्ध चाहता था। उसे पूरा भरोसा था कि वह युद्ध में जीत हासिल कर लेगा। वह अहंकार में चूर कर्ण, पितामह और द्रोण जैसे श्रेष्ठ योद्धाओं के रहते अपनी जीत निश्चित माने था। उसे सबसे प्रिय था हस्तिनापुर का राज वैभव। उस राज्य के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था, किसी को भी मरवा सकता था। उसे अपने सम्बन्धियों का मोह नहीं था।

अर्जुन ने युद्ध के भयावह परिणाम की कल्पना करके युद्ध को न करने का निर्णय लिया।

केशव मैं युद्ध नही करूँगा। अपने गुरुओं को मारने का पाप मैं नहीं करूँगा। मैं यह महाविनाश नहीं कर सकता। श्री कृष्ण ने कहा- अर्जुन क्या तुम बाण नही चलाओगे तो यह महाविनाश रुक जायगा? क्या तब लोग नहीं मरेंगे? क्या दुर्योधन युद्ध नहीं करेगा?

हे अर्जुन ! आततायी अपने पाप से मरता है। किसी के मारने से नहीं। देहधारी की मृत्यु उसके शरीर में ही रहती है। जो मरता है, वह शरीर है। आत्मा का संघटन नही होता, और न ही विघटन होता है। आत्मा पञ्च भूतों से परे है, इसलिए उसका विघटन संभव नहीं है। आत्मा अमर है। शरीर एक पुष्प के समान खिलता है और मुरझा जाता है। अगर कोई नहीं भी तोड़ता तो भी यह टहनी से गिर जाता है।

हे अर्जुन, जिसने जन्म लिया है उसका मरना भी तय है। जो मरता है, उसका पुनर्जन्म निश्चित है। आत्मा पुराना शरीर त्याग कर उसी प्रकार नया शरीर धारण करती है जिस प्रकार शरीर पुराना वस्त्र त्याग कर नया वस्त्र धारण करता है। असत की सत्ता नही होती।

अर्जुन बोले- मैं क्या करूँ केशव? यह शरीर वस्त्र ही सही किंतु जिनको मैं जीवित देखना चाहता हूँ उनका वध मैं कैसे करूँ? मैं युद्ध नही करूँगा केशव।

श्री कृष्ण ने कहा- यह युद्ध तुम्हारी इच्छा से नहीं रुकेगा। तुम कर्म को करो, प्रकृति के नियम के अनुसार फल प्राप्त होगा। प्रकृति अपने नियम किसी व्यक्ति के लिए नहीं बनाती। वह तो समष्टि के लिए है।

अर्जुन -मैं क्या करूँ केशव?

श्री कृष्ण- स्वधर्म! तुम अपना स्वधर्म करो। अन्याय और अधर्म का विरोध करो। अर्जुन, तुम क्षत्रिय हो, भिक्षा मांग कर जीवन यापन करना तुम्हारा स्वधर्म नहीं है। और अपने स्वधर्म के विरूद्व कार्य तुम नहीं कर सकोगे। तुम्हे शासन करना होगा, समाज को अनुशासन में लाना होगा। दुष्टों का दलन करना होगा, यही तुम्हारा कर्म और धर्म है। तुम युद्ध के मैदान से अपने शत्रुओं को पीठ दिखा कर नही भाग सकते। तुम अगर युद्ध नहीं करोगे तो वे तुमसे युद्ध करेंगे।  अतः तुम युद्घ से नही बच सकते। अर्जुन, तुम अपने मोह के कारण कह रहे हो कि युद्घ करने से श्रेष्ठ है भीख माँगना। क्या तुम्हारा क्षत्रिय तेज यह सहन कर पायेगा? क्या तुम अपनी प्रकृति के विरूद्व जा पाओगे? धनञ्जय, यह अधर्म है।

श्री कृष्ण बोले- अर्जुन, यह शरीर प्रकृति का यंत्र है। मधुमक्खी पुष्पों के रस से मधु बनाती है, गाय हरी घास को दूध में परिणत कर देती है, मनुष्य अपने भोजन से रक्त, मल और मांस बनाता है। क्या यह सब करना उसके अपने वश में है? नहीं, यह काम प्रकृति करती है। इसलिए कहता हूँ, स्वधर्म पर टिक कर निष्काम कर्म करो अपने स्वरूप को पहचानो! आत्मस्थ हो।

अर्जुन आज श्री कृष्ण का दिव्य रूप देख रहे थे। ये वे कृष्ण नही थे जो उनका रथ हाँक रहे थे। अर्जुन हाथ जोड़ कर खड़े हो गए, बोले- केशव, मैंने सदा आपका मार्ग दर्शन पाया है। प्रकृति मुझसे क्या करवाना चाहती है, मैं नही जानता। किंतु मैं अपने पितामह और गुरु पर बाण कैसे चलाऊँ?

श्री कृष्ण बोले- मैंने राजसूय यज्ञ में जरासंध का वध अन्याय और अत्याचार को समाप्त करने के लिए किया था। मैं इस धरती पर धर्म की स्थापना के लिए आया हूँ। तुम इस युद्ध से पीछे नही हट सकते हो। अधर्म कोई भी करे, वह सजा का भागी है।

अर्जुन बोले- मेरे पितामह अधर्मी नहीं हैं। दुर्योधन अधर्मी है।

श्री कृष्ण- तो तुम दुर्योधन का वध करो।

अर्जुन- मार्ग में पितामह खड़े हैं।

श्री कृष्ण- पितामह नहीं... भीष्म!  भीष्म का वध किए बिना यदि दुर्योधन नहीं मारा जा सकता तो पहले किसे दण्डित होना चाहिए?

श्री कृष्ण मुस्कुराए, बोले जीवन का सत्य यही है धनंजय। जब अधर्म के विरूद्व शस्त्र उठाओगे तो सबसे पहले तुम्हारे परिजन ही तुम्हारा हाथ पकड़ेंगे। अर्जुन, तुम मनुष्य की दृष्टि से देख रहे हो इसलिए मोह में पड़े हो। तुम सम्पूर्ण की दृष्टि से देखो, ईश्वर की दृष्टि से देखो। ईश्वर से जो सम्बन्ध तुम्हारा है, वही सम्बन्ध पितामह का भी है। तुम दोनों ईश्वर के हो। प्रकृति ईश्वर की शक्ति है। प्रकृति भेद या व्यक्ति सम्बन्ध नहीं रखती।

अर्जुन! मोह के कारण तुम्हें अपना धर्म नही दिख रहा है। तुम्हारी दृष्टि में भेद आ गया है। आसक्ति किसी को सत्य के दर्शन नहीं करने देती। तुम्हें स्वधर्म के लिए आसक्ति को त्यागना होगा।

अर्जुन बोले- मैं आपका शिष्य हूँ केशव। किंतु मैं पितामह का पौत्र भी हूँ। उनके प्रति भी मेरा धर्म है।

अर्जुन ने देखा श्री कृष्ण के चेहरे का तेज सूर्य से अधिक था जो उसके लिए असह्य होता जा रहा था। आकाश के सूर्य से अधिक प्रखर था श्री कृष्ण का तेज।

कृष्ण की वाणी जैसे मेघों की गर्जना सी लग रही थी। बोले- अर्जुन! ऐसा कोई काल नहीं था जब तुम नहीं थे या मैं नहीं था। तुम मोह के कारण अपना स्वरूप भूल गए हो।

श्री कृष्ण का स्वरूप बड़ा विशाल लग रहा था। उनका अद्भुत रूप देख कर अर्जुन विस्मित थे। वे अपलक भगवान् को निहारते ही रहे, अपनी सुध भूल गए।

भगवान् बोले- अर्जुन तुम्हे विस्मृत हो गया है पर मुझे याद है। इस शरीर में मैं ही आत्मा के रूप में स्थित हूँ। समस्त भोग भोगते हुए भी मैं मुक्त हूँ। मैं यह शरीर नही हूँ।

अर्जुन ने डरते हुए पूछा- मैं कौन हूँ केशव?

कृष्ण बोले -तुम भी वही हो जो मैं हूँ। तुम पर मोह का आवरण है। तुम अपना आत्मभाव भूल गए हो इसलिए तुम अपना स्वरूप नहीं देख पा रहे हो। तुम या मैं नहीं, यह युद्ध प्रकृति करवा रही है। प्रकृति ही प्रकृति के विरुद्ध लड़ रही है। कोई किसी को नहीं मार रहा है। जो मार रहा है वह भी मैं हूँ, जो मर रहा है वह भी मैं ही हूँ। आत्मवान अर्जुन- अपने धर्म को न भूलो।

यहाँ श्री कृष्ण ने अर्जुन को आत्मवान कहा है, जिसका भाव यह है कि अर्जुन अपने क्षत्रिय स्वभाव, अपने धर्म, अपने गुण को न छोड़ो नहीं तो निरात्मा कहे जाओगे" अर्जुन मोह में पड़ कर अपने व्यक्तित्व को नकार रहे थे, युद्ध के क्षेत्र को छोड़ने को तैयार थे।

अर्जुन व्याकुल स्वर में बोले- केशव! मेरे अपने युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। मैं यहाँ आपके साथ हूँ। मेरे शत्रु क्या सोचेंगे? मैं सारे धर्म- क्षत्रिय धर्म, भाई का धर्म, शिष्य का धर्म, पिता, पौत्र का धर्म सब एक साथ कैसे निभाऊँ?

भगवान् का स्वर असाधारण हो उठा, जैसे लगा ब्रम्हादेश है- "अर्जुन तू सब धर्मों को त्याग कर केवल मेरी शरण में आ जा, मैं तुझे समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा।"

अर्जुन चेतना के दिव्य सागर में तैर रहे थे- क्या वह मात्र दृष्टा हैं? करता कोई और है? यह क्या घटित हो रहा है?.... अर्जुन को लगा जैसे उनके चारों ओर कृष्ण ही कृष्ण हैं। श्री कृष्ण का अद्भुत रूप देख कर नर श्रेष्ठ अर्जुन डर गए, काँपते हुए पूछे- आप कौन हैं?


श्री कृष्ण हँसे, लगा जैसे बिजली चमकी हो, आकाश इन्द्रधनुषी हो गया। बोले- "मैं ही हूँ, मैं ही महाकाल हूँ, सब मुझसे ही प्रकट हुआ है और मुझमें ही विलीन हो जाएगा।"

अर्जुन ने देखा कि उनके चारों तरफ का संसार विचित्र सा हो गया है। कृष्ण मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे। अर्जुन का अस्तित्व उनमें समाता जा रहा था। श्री कृष्ण एक प्रकाशपुंज में परिणत हो गए थे, जैसे सहस्रों  सूर्य एक साथ आकाश पर उदित हो गए थे। सूर्य, वायु, जल, वनस्पति, जीवजन्तु, वृक्ष तथा पूरा ब्रम्हांड उनमें ही समाहित है। उनके सहस्रों मुख प्रकट हो गए थे। बड़ी-बड़ी सेनाएं उनमें समाती जा रही थीं। एक तरफ़ लोग लड़ मर रहे थे, दूसरी तरफ़ लोग जन्म ले रहे थे, पृथ्वी का पूरा सृष्टि  चक्र भगवान् के मुख में था, उसमें अर्जुन ने अपने सगे-सम्बन्धियों को भी देखा- भीष्म, द्रोण, दुर्योधन सबको देखा। अर्जुन ने अपने नेत्र बंद कर लिए, जब आँखे खोली तो सब यथावत पाया। भगवान् ने अपनी माया समेट ली।

रथ पर बैठे कृष्ण मुस्कुरा रहे थे। यह क्या था केशव- अर्जुन ने पूछा!
सृष्टि का सत्य- श्री कृष्ण ने कहा!

अब अर्जुन युद्ध के लिए प्रस्तुत थे। वह अपना क्षत्रिय धर्म और कर्तव्य समझ गए। अर्जुन आत्मवान हो उठे, गांडीव धारण किया। आत्मस्थ अर्जुन को दिव्य अनुभूति हुई। श्री कृष्ण चले रथ को लेकर रणभूमि में। बोले- "पार्थ! आकस्मात प्राप्त स्वर्ग के खुले हुए द्वार की भांति ऐसा युद्ध भाग्यशाली क्षत्रिय को ही प्राप्त होता है।"

जब चारों ओर घोर अँधेरा हो और दूर-दूर तक कोई आशा की किरण न दिखाई पड़ रही हो, गहरा विषाद छाया हो, तो विषाद को आह्लाद में बदलने का काम करती है गीता। गीता की दिव्यता और अलौकिकता संसार में और कहीं नहीं है। आशा का जमागाता सूर्य है गीता। विषाद को योग बनाती है गीता। जब अर्जुन विषाद में डूब कर अपने स्वधर्म से विमुख होने जा रहे  थे, तब गीता ने उन्हें ज्ञान दिया।

गीता कहती है- मृत्यु तो शरीर की होती है, जीव की नहीं। जब शरीर मरता है तो जीव निकल जाता है, जीव भटकता रहता है जब तक वह पुनः नया शरीर नहीं पा जाता। शरीर रुपी वस्त्र पहन कर जीव फ़िर जन्म लेता है। इस प्रकार इस जीव के न जाने कितने जन्म हो चुके हैं और कितने सम्बन्धी बन चुके हैं। शरीर रूपी वस्त्र पहन कर यह जीव फ़िर सुख-दुःख की चिंता में पड़ जाता है। इस शरीर में रहकर ही सुख, आह्लाद, मोक्ष और खशी की राह दिखाती है गीता।

शरीर की यात्रा तो बिना कुछ किए भी चलती है और वह जन्म से मरण तक की यात्रा करती है। पर जीव की यात्रा लम्बी चलती है और इसके रिश्ते भी बदलते रहते हैं। संसार के रिश्ते नाते निभाने चाहिए, हँस कर सब करना चाहिए। पर एक बात हम भूल जातें हैं कि इस जीव का सच्चा रिश्ता तो ईश्वर से है। जीवन के सारे रिश्ते उन्ही से हैं, हमारे भीतर जो बसता है हम उससे ही कितनी दूर रहते हैं। हमारे भीतर जो प्राण है वो कौन है? हमारी आंखों में जो प्रकाश है वो कौन है? हमारे कानो में जो श्रवण हैं वो कौन है? उसे पहचानो। इस जीवन यात्रा का सच्चा साथी वही है- ईश्वर!

भगवान् कहतें हैं-

  • ज्ञान श्रेष्ठ है पाप के सागर को ज्ञान की नौका से ही पार पाया जा सकता है।
  • कर्म को तपस्या बना लो, यही कर्म योग है। ज्ञान के द्वारा अच्छे और बुरे की पहचान करो और कर्म की उच्चा अवस्था को पा लो। कर्म शुभ फल देगा।
  • जो शक्तियाँ समाज की शत्रु हैं उनको ख़तम करना कल्याण का काम है।
  • हे पार्थ, निष्काम कर्म स्वयं को दूषित नही करता।
  • अपने आस-पास की सुगंध और दुर्गन्ध को लेने के लिए इन्द्रियां विवश होतीं हैं इसलिए अपनी चेतना को जागृत करो। राग, ध्वनि और कोलाहल को कान जरुर सुनेंगे, आँखे क्या देखें, मुख क्या कहे अपने ज्ञान के द्वारा निश्चित करो।
  • हम समाज में रहते हैं इसलिए हमारे कर्म अनुकरणीय होने चाहिए।
  • काम, क्रोध, लोभ, मोह, वासना! ये सब पाप कर्म करवटें हैं इसलिए इनसे दूर रहो।
  • निष्काम कर्म के मार्ग पर चल कर भी जीवन जिया जा सकता है, यह हमें श्री कृष्ण ने गीता में बताया है।
  • शरीर का सत्य है मृत्यु, इसलिए इसका शोक नहीं करना चाहिए, अपने धर्म का पालन करना चाहिए।
"ॐ नमो नारायण"

गीता हमारा रक्षा कवच है-

मोह, रात्रि, घोर कष्ट में, दुःख में, निराशा में, हताशा में, गहन अन्धकार में जब आस-पास कोई रोशनी  न दिख रही हो, ऐसे वक्त में यह ईश्वरीय ज्ञान हमें आशा और उत्साह देता है। गीता हमें शुद्ध ज्ञान से अवगत कराती है, पुनर्जीवन देती है।

विद्वानों की बुद्धि, बलवानों का बल, तेजवान व्यक्तियों का तेज- यह सब ईश्वर कि कृपा से होता है। समस्त चराचर में ईश्वर ही बीज रूप में व्याप्त है। आपने देखा होगा कितने पेड़-पौधे अनायास ही उग जाते हैं। जानतें है कैसे? कोई पक्षी अशुचि पूर्ण तरीके से कोई बीज गिरा देता है और एक दिन वह विशाल वृक्ष का रूप ले लेता है। कौन कहता है, किसकी व्यवस्था है यह?

कलकत्ता के "बोटानिकल गार्डेन" में एक वट वृक्ष है। बहुत विशाल है वह। उसके नीचे लाखों लोग छाया पातें हैं। मीलों तक फैली हैं इस वृक्ष कि भुजाएं। इसका वर्णन नहीं है कि किसने लगाया। हाँ, अब उसकी देखभाल कि जाती है। कभी किसी पक्षी ने अशुचि पूर्ण तरीके से बीज गिरा दिया और वृक्ष बन गया।

हमारा निवास स्थान जहा हैं वहां भी तीन पीपल के विशाल वृक्ष थे। पर उसे लगाया किसी ने नहीं था । वह इतने जैयद (बड़े) थे कि उनसे पार होकर सूर्य कि किरणें हमारे घर तक नहीं आ पाती थीं। बाद में बहुत कोशिश करके इनको कटवाया। यही है भगवान् का बीज रूप। आजकल "एन डी टीवी इमैजिन" पर एक प्रोग्राम आता है- राज़ पिछले जन्म का। उसमें किसी तरीके से आदमी को उसके पिछले जन्म में ले जाते हैं। एक डाक्टर हैं जो यह करतीं हैं, ६० मिनट के बाद आदमी अपने पिछले जन्म को देखता है। वह बेहोशी कि हालत में दिखता है और अपने पिछले जन्म को देखता है। उसमे दुःख-सुख और अपने कर्मो को देखकर वह अपने वर्तमान को जोड़ता है। जब वह जागता है तो सब सच मानता है।

यही बात हजारों साल पहले ही श्री कृष्ण ने गीता के माध्यम से हम मानुषों को बताई कि कर्म का फल नहीं त्याग सकते। यह भोगना ही पड़ेगा। फल तो मिलेगा ही, बस कर्म का ध्यान रखो। महर्षि भृगु ने भी पिछले जन्म की विवेचना के आधार पर आज के दुःख सुख को जोड़ा है। महर्षि भृगु ने कुल १० करोड़ कुण्डलियाँ बनाई हैं। उनकी संहिता नालंदा में रखी थी। मुग़ल काल में मुहम्मद गोरी ने जब आक्रमण किया तो नालंदा का पुस्तकालय जला दिया गया था, तो उसमे "भृगु संहिता" का एक बड़ा भाग जल गया। आज हमारे पास बची हुई लिपि ही है। भृगु संहिता कुल ११ खंड में थी। भृगु के पुत्र "शुक्राचार्य" थे। कहतें हैं उनके पास मृत संजीवनी विद्या थी, जिसके कारण दैत्य इतने बलवान हो गए थे। शुक्राचार्य दैत्यों के गुरु थे। भृगु संहिता के अनुसार भी जिनके पास कोई ऐसा दुःख है जो नहीं समझ पाते कि क्यों है, उसका कारण उनका पूर्व कर्म होता।

तो बात हो रही है गीता-अमृत की। अर्जुन जब मोह निशा में भटक कर अपने धर्म को, कर्तव्य को भूल रहे थे, तब भगवान् ने उन्हें गीता का ज्ञान देकर उनके क्षत्रिय धर्म को जगाया था। अर्जुन विजयी हुए और धर्मराज्य की स्थापना हुई।