शनिवार, 13 जून 2015

एक था मन

देखना चाहूँ सब संसार 

प्राणो को प्लावित कर अपार !
सब काल वहन  कर लूँ  खुद पर ,
तैर कर जा पहुंचूं उस पार !
करुणा की धार बहाऊँगी ,
पाषाण की कारा तोड़ूँगी !
फूलों की गंध वसा लूंगी ,
रवि की किरणों पर दौडूँगी !
शिखर -शिखर को चूमूंगी ,
सारी  वसुंधरा डोलूँगी !
निज ह्रदय की बातें कह दूँगी ,
हर प्राण -गान में मैं हूँगी !
इतना सुख साध मेरे मन में ,
तारे जितने नभ मंडल में !
सब एक माला में गुथूगी ,
यौवन का वेग है प्राणो में !
आशा असीम है इस मन में ,
भावों के गीत भरे मन में !