बुधवार, 30 जुलाई 2014

एक साँझ ........

साँझ समय !

पीताभ अम्बर ,
दुर्जय सा दृश्य  दिखाता है !
निरभ्र ,शांत 
दिगंत प्रसार 
ज्यों अनंत को निगल जाता है !
पंक्षियों की कतार 
अनुशाषित उड़ान 
शांत निर्धूम निज नीड़ों को जाता है !
आती निशा 
निद्रित दिशा 
ज्यों ब्रम्हलीन हुआ जाता है !
अधीर मन 
आकुल क्षण 
रात भर को विश्राम को जाता है !

शकुंतला 

सोमवार, 21 जुलाई 2014

बोगन बेलिया

  मुझे सुन्दर वास्तु फूल ,पौधे ,घर ,बात ,बात, तहजीब ,कलम ,किताब पूरी प्रकृति में कही भी दिखे सुंदरता मैं उसे देखकर खुश होती हूँ !मुझे सुबह और शाम भी कभी कभी अद्भुत सुन्दर लगती है !
मगन मन निहारती हूँ !
हम कही जा रहे थे सड़क के किनारे एक चारदीवारी से लगा बोगन बेलिया सुन्दर  फूलों के गुच्छों से भरा हुआ था !हरी पत्तियों के बीच सुन्दर रानी रंग के गुच्छे ,ताजा फूलों से लदे देखा तो मन वही अटक गया ,लगा जैसे जीवन ही रूप बदल कर खिला है !
मन वही अटक गया !
मई सोचने लगी मैंने भी बोगनबेलिया लगाया है उसको रोज पानी देती हूँ ,साफ़ रखती हूँ समय पर खाद  भी देती हूँ पर वह अब तक नहीं खिला ,शायद इसलिए कि वह गमले लगा है ,पर फिर भी खिलता तो छोटे गुच्छे ही सही ,पर वो तो यूँ ही खड़ा है !केवल हरी पत्तियों को लादे हुए !
काश !की मेरे घर में ये पेड़ होता तो मैं कितना खुश होती ,सुबह शाम बस इसको ही निहारती !आदि -आदि विचारों में पड़ी थी !पर तभी खुद से एक प्रश्न पूछा -मैं हरदम इस चक्कर में क्यों रहती  हूँ की हर अच्छी व्
सुन्दर वस्तु मेरे घर में हो ,मेरे पास हो ?
हम इतने  स्वार्थी कैसे हो जातें हैं हम मनुष्य जीवन भर इसी प्रयास में रहतें हैं की सारी अच्छाई ,समृद्धि ,सुंदरता मेरे ही पास हो !
आज जो वस्तु हमें बहुत सुन्दर लगती है हम उसे पा लेते हैं कुछ दिन बाद वही पुरानी लगती है मन भर जाता है फिर हमें कोई दूसरी चीज अच्छी लगती है ,हम उसे ले आतें हैं !
हमारा चंचल और स्वार्थी मन  नई  सुंदरता की तलाश में होता है !और ये हम बड़ो में तो होता ही है बच्चों में भी होता है ,और कभी -कभी यह झगडे का कारण भी बनती हैं !
देश के स्तर पर भी ये सब होता है यही कारण है की हमारा कश्मीर जो हमारा स्वर्ग है वो हमारे पड़ोसी की जलन का कारण है !
मैं बोगनबेलिया से चल कर कश्मीर आ गई खैर मैं अपनी सोच से बाहर आई !
मैंने अपनी लालसा पर काबू किया कि ये गुच्छे मेरी चारदीवारी पर नहीं है तो क्या ये जहां खिले है वहां भी बहुत सुन्दर है अाखिर इनकी सुंदरता पर केवल मेरा ही हक़ तो नहीं है, इसे देखकर खुश होना केवल मेरा हक़ नहीं हो सकता !कभी नहीं !इसकी  सुंदरता ,इसका रूप सबका है ये यहाँ रहकर हर आने -जाने वालों को ख़ुशी बाँट रहा है !और खुश रहना ही इंसान का सहज स्वभाव है !
इसलिए तुम यही खिलो और अधिक अच्छे से खिलो ताकि सब सब खुश हो तुम्हे निहार कर !

शकुंतला मिश्रा -३०/७/२०१४







chlo aaj ....

चलो आज बारिश से बूंदे चुरा ले ,
ज़माने के ग़म  सारे उसमे डूबा दें !
अम्बर की छतरी को मंडप बना के
नवल राग ,रंगों की धरती से चुन के
चलो आज जीवन में खुशिया मना  लें !
बहा देंगे अबके बरस ,सारे गम को
नदी ज्यों चले है समंदर मिलन को
पपीहे ने छेड़ा तरंगित सुरों को ,
चलो आज हम इक नए सुर में गए ले !
चलो आज बारिश से बूंदें चुरा ले !
२१/७ /१९१४