रविवार, 14 जुलाई 2013

yamini

मुखरित है प्रतिश्वास
मधुर है यामिनी की यह रात

शून्य नभ में गुंजन है आज
प्रकम्पित है सारे नक्षत्र

सुनाते युगों -युगों की बात
सजनी !अन्तर्हित पुलक है आज

विरह कल का बंदी है आज
भाव सब  रंगे रंगीले आज

तिमिर में दीवाली है आज
बनी बंदिनी भी स्वामिनी आज

नियति है कुशल चितेरा आज
भरा यह जीवन पात्र है आज !

बुद्ध पूर्णिमा पर ,भगवान् बुद्ध को समर्पितहै 





पी कहाँ

                                                               पी कहाँ 

बड़ी देर से पपीहा चीख रहा है -पी कहाँ ,पी कहाँ फिर कलम भी चली -
तृप्ति में जीवन न पाया 
प्यास ही तू है ' पपीहे' !
निज क्षितिज में 
नील नभ में 
नापता है रोज सागर 
 ढूढ़ता रहता है नित तू 
पी कहाँ -हैं पी कहाँ !
नाप  पाता यदि मेरी तू 
ह्रदय अंतर मेघमाला 
पी बसा उर है कहाँ ?
खोज मुझमे पी कहाँ 

बुधवार, 3 जुलाई 2013

Jan-gan-man (history)

                                          जन गन मन 

जय हिन्द -आज मैं अपने पाठको को इतिहास के एक ऐसे पन्ने पर ले जाना चाहती हूँ जिसे मैं बताये बिना रह नहीं पा रही ! तो चलतें है सन १९ ११  में 

१९११ में  भारत की राजधानी  बंगाल हुआ करती थी !सन्-१ ९ ० ५ में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए कलकत्ता से हटाकर राजधानी को  दिल्ली ले गए और १९११ में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया !

पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लैंड  के राजा को भारत में आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाय !

इंग्लैंड का  राजा  जार्ज पंचम १९११ में भारत  आया !

रविन्द्र नाथ टैगोर पर दबाव  बनाया गया की तुम्हे एक गीत 'जार्ज 'के स्वागत में लिखना होगा ! टैगोर का परिवार अंग्रेजो के करीब भी हुआ करता था ! टैगोर  परिवार के लोग ईस्ट इंडिया  कंपनी के लिए काम करता था ! उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर कलकत्ता के  ईस्ट इंडिया कम्पनी के निदेशक (डायरेक्टर )रहे  बहुत दिनों तक !उनके परिवार का बहुत पैसा कंपनी में लगा हुआ था ! रविन्द्र् नाथ की बहुत सहानु भूति  थी अंग्रेजो के लिए !

रवीन्द्र नाथ ने मन से या बेमन से जो गीत लिखे उसके बोल हैं _'जन गन मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता ' इस गीत के शब्दों में जार्ज पंचम का गुण गान है !यह गीत उनके स्वागत में गया गया ! गीत का अर्थ समझने पर पता चलेगा की इसमें अंग्रेजो की खुशामद है ! इस गीत का अर्थ है -भारत के नागरिक ,भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है !हे अधिनायक (सुपर हीरो )तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो !तुम्हारी जय हो !जय हो !जय हो !

तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध ,गुजरात ,मराठा  अर्थात  महाराष्ट्र ,द्रविड़ ,उडीसा और बंगाल तथा नदियाँ जैसे यमुना गंगा ये सभी हर्षित हैं ,खुश हैं !

तुम्हारा नाम लेकर हम जागतें हैं और तुम्हारे नाम का आशीष चाहतें हैं !तुम्हारी गाथा गातें हैं ,हे भारत भाग्य विधाता तुम्हारी जय हो ! जय हो !जय हो !

इस प्रकार जार्ज के स्वागत में  गाया गया ,जब वो इंग्लॅण्ड गये तो उन्होंने इस गीत का हिंदी में अनुवाद कराया क्यों की भारत में ,उनके  सम्मान में गाये गीत का वो अर्थ समझना चाहते थे जब जार्ज ने इंग्लिश में इसका अनुवाद सुना तो  बोला -इतना सम्मान तो मुझे मेरे देश में भी नहीं मिला !जार्ज बहुत खुश हुआ !

 उसने आदेश दिया की जिसने मेरे सम्मान में ये गीत लिखा है उसे यहाँ बुलाया जाय रवीन्द्र नाथ टैगोर इंग्लॅण्ड गए ,जार्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार का अध्यक्ष था !

जार्ज ने रवीन्द्र को नोबल पुरस्कार देने का फिसला लिया !रवीन्द्र ने मना कर दिया क्योंकि गांघी जी ने उनको इस गीत के लिए बहुत फटकार  लगाई थी इसलिए !

टैगोर ने कहा आप मुझे पुरस्कार देना चाहतें हैं तो मेरी रचना  गीतांजलि पर दे ,इस गीत के नाम पर नहीं ! यही प्रचारित किया जाय की मुझे जो नोबल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि  नामक रचना के लिए दिया गया है !जार्ज पंचम मान गए और रवीन्द्र नाथ को  सन्-१९१३ में गीतांजलि के लिए नोबल पुरस्कार दिया गया !

१९१९  में जब  जलियाँ वाला काण्ड हुआ तब रवीन्द्र नाथ की सहानुभूति ख़तम हुई गांघी जी ने गली की भाषा में उनको एक पात्र लिखा की -अब भी अगर तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत पर्दा न उतरा तो कब उतरेगा तुम इतने चाटुकार कैसे हो गए ,गांघी जी टैगोर से मिले और उनको  डांटा की -अंग्रेजो की अंध भक्त हो तब जाकर टैगोर ने  जलियाँ वाला बाग़ हत्याकांड की निंदा की !

१९१९ से पहले अंग्रेजी  हुकूमत के पक्ष में रबीन्द्र नाथ लेख लिखा करते थे अब वे विरोध में लिखने लगे ! टैगोर के  बहनोई   सुरेन्द्र नाथ लन्दन में रहते थे और  आई .सी .एस  आफिसर थे अपने बहनोई को टैगोर ने एक  पत्र लिखा की -'जन गन मन 'गीत अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डाल कर  लिखाया गया है ,इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है इस गीत को न गाया  जाय तो अच्छा हो !

चिट्ठी के अंत में लिखा -इस चट्ठी को किसी को न दिखाना इसे मैं अपने  तक ही रखना चाहता हूँ !जब मेरी  मृत्यु हो जाय तो सबको  बता देना 

७ अगस्त १९४१ को रवीन्द्र नाथ की मृत्यु के बाद सुरेन्द्र नाथ ने इस  पत्र को सार्वजनिक किया और कहा की इस गीत को न  गाया जाय !

१९४१  कांग्रेस पार्टी उभर रही थी लेकिन वह दो खेमो में   बट गई थी !एक खेमा बाल गंगा धर तिलक का और दूसरा खेमा मोती लाल नेहरु का समर्थक था ! सरकार  बनाने को लेकर मतभेद था दोनों में ! मोती लाल नेहरु चाहते थे की स्वतंत्र भारत की  सरकार  अंग्रेजो के साथ मिलकर बने बाल गंगा धर तिलक कहते थे ऐसा करना भारत के लोगों को धोखा देना है !
बालगंगा धर तिलक (कोएलिशन गवर्नमेंट )संयोजक  सरकार  के खिलाफ थे इस कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया !कांग्रेस के दो भाग हो गए  ! एक नरम दल, एक गरम दल ! गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे  क्रांतिकारी वे हर जगह -वन्दे मातरम्  गाया  करते थे ! 

नरम दल वाले मोती लाल नेहरु अंग्रेजो के साथ रहा करते थे उनकी बैठकों में शामिल होते थे उनको सुनते थे  समझौते  करते थे उनको जन-गन-मन  गीत पसंद था ! इस समय  गांघी जी कांग्रेस की सदस्यता से स्तीफा दे चुके थे !

नरम दल अंग्रेजो का समर्थक था और अंग्रेजो को वन्दे मातरम् पसंद नहीं था तो अंग्रेजो के कहने पर नरम दल वालों ने यह हवा उड़ाई की -मुसलमानों को वन्देमातरम नहीं गाना चाहिए  क्योकि  इसमें बुतपरस्ती  है !  आप जानतें है की मुसलमान मूर्ती पूजा नहीं करते !

उस समय मुस्लिम लीग भी बन गयी थी जिसके प्रमुख थे मुहम्मद अली जिन्ना ! उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया !जिन्ना देखने को भारतीय थे पर मन वचन और कर्म से अंग्रेज थे ! उन्होंने भी अंग्रेजो के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्देमातरम गाने से मन किया ! 

१९४७  जब भारत स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीती कर डाली !संविधान सभा में ३ १ ९ सांसदों में से ३१८ ने वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने की सहमती दी ! बस एक संसद ने नहीं दी वो थे जवाहरलाल जिन्होंने बंकिम चन्द्र की वन्देमातरम को राष्ट्रगान मानने से  इनकार किया !उनका तर्क था इस गान से मुसलमानों  के दिल को चोट पहुँचती है !

दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं अंग्रेजो  के दिल को चोट पहुँचती थी ! अब इस झगडे का  फैसला  कौन करे तो ये पहुंचे गांघी जी के पास  !  गाँधी  जी ने कहा -जन  गन  मन गीत के पक्ष में मैं भी नहीं हूँ और तुम (जवाहर लाल नेहरु )वन्दे मातरम् के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत लिखा जाय !

तीसरा विकल्प बना-  विजयी विश्व तिरंगा प्यारा !झंडा ऊँचा रहे हमारा !

लेकिन नेहरु जी इस पर भी तैयार नहीं हुए !उनका तर्क था की यह गीत आर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन आर्केस्ट्रा पर बज सकता है !

उस समय बात ताल गई गाँधी जी की  मृत्यु के बाद नेहरु ने जन गन मन को  राष्ट्र गीत घोषित   कर दिया ! नेहरु अंग्रजो के दिल को चोट पहुँचाना नहीं चाहते थे !अंग्रेजो की भक्ति में गया गया गीत राष्ट्र गान के रूप में  भारतवासियों पर थोप दिया गया !

वन्दे मातरम् पीछे हो गया  वी वी सी  ने एक सर्वे किया उसमे ९ ९ %लोगों ने वन्देमातरम को पसंद किया !दुनिया का दूसरा लोकप्रिय गीत है वन्देमातरम !लोग कहतें हैं इसके ले में एक जज्बा है !

मेरे देश वासी गाने के भाव को देखे इतिहास को जाने फिर यह तय करें की उनको क्या गाना है !अपने आत्म सम्मान की रक्षा खुद करें !

इतना लम्बा पात्र पढने के लिए मैं आपकी आभरी हूँ आप ओरों को भी यह बताएं जन गन मन का यह रोचक इतिहास !

जय हिन्द !

जय जवान !!