रविवार, 14 जुलाई 2013

पी कहाँ

                                                               पी कहाँ 

बड़ी देर से पपीहा चीख रहा है -पी कहाँ ,पी कहाँ फिर कलम भी चली -
तृप्ति में जीवन न पाया 
प्यास ही तू है ' पपीहे' !
निज क्षितिज में 
नील नभ में 
नापता है रोज सागर 
 ढूढ़ता रहता है नित तू 
पी कहाँ -हैं पी कहाँ !
नाप  पाता यदि मेरी तू 
ह्रदय अंतर मेघमाला 
पी बसा उर है कहाँ ?
खोज मुझमे पी कहाँ 

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