पी कहाँ
बड़ी देर से पपीहा चीख रहा है -पी कहाँ ,पी कहाँ फिर कलम भी चली -
तृप्ति में जीवन न पाया
प्यास ही तू है ' पपीहे' !
निज क्षितिज में
नील नभ में
नापता है रोज सागर
ढूढ़ता रहता है नित तू
पी कहाँ -हैं पी कहाँ !
नाप पाता यदि मेरी तू
ह्रदय अंतर मेघमाला
पी बसा उर है कहाँ ?
खोज मुझमे पी कहाँ
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