रविवार, 16 जून 2013

सत्य

सत्य को ही  'सत्य' कहने के लिए  ,
मैं अदालत  में  लिए गीता खड़ा !

झूठ के तो हर तरफ ही पाँव हैं
सत्य बेचारा  बना 'तनहा 'खड़ा !

जुबान जिनको थी वो तो चली अपनी ही तरह
वो सत्य था की जो भौचक रहा पत्थर की तरह !

हे देव

हे देव !
मेरे आविल स्वप्न
अनंत पथ की बातें
मंडराती अभिलाषा
अमिट  बनेगी !
नभ के आँचल में
एक दिन तुम देखोगे
इश वचन का सत्य होना
मेरे संकल्प का निभना
तुम्हे देना होगा
असीम अमरता
मेरा मुक्ताकाश !

शनिवार, 15 जून 2013

मत करना

 कभी जख्मी परिंदे का
शिकार मत करना
पनाह मांगे जो उसका
शिकार मत करना
जगत की चोट का खुलकर
 प्रचार  मत  करना
कृपा की  चाह में कोई
गुनाह मत करना
बदल सकता है दुश्मन भी
प्रथम वार मत करना
अँधेरा भी बन सकता है साथी
निराशा  स्वीकार मत करना
बड़े ताप कर्म से  मिलता है ये मानव जीवन
इसे  यूँ  ही बेकार मत करना !

जंगल का दर्द

जंगल का  दर्द
तरल नयन के साथ
कहा यह -कटे पेड की शाखों ने
पत्ते झरे ,कटी नसे
दिखते घाव ,छिले वदन
दर्द से भरे !
फिर भी खड़ा हूँ
मौन तपसी हूँ
संरक्षक हूँ !
पंछी बेघर हुए
छाँव भी  छीने  गए
जीव  सारे रो रहे
शोक में डूबे हैं मौन
फूल ,बेल ,पेड़ ,पौधे
कहा पेड़ ने !
मैंने अपना आप लुटाया
ईधन ,औषध ,भोजन ,छाया
सब कुछ मैंने सबको बांटा
फिर भी कुछ निर्मम हाथों ने
घाव दिए ,आघात दिए !
विम्ब भी मुझसे अलग हुआ अब
अपने हाथ तू रोक ले मानव
मत मिटा मुझे फिर सोच ले मानव
मैं  शरण्य  हूँ ,मैं जीवन  हूँ
मैं न रहा तो तू न बचेगा