गुरुवार, 30 नवंबर 2023

साथ चलो

 मैंने तुम्हें पुकारा नहीं 

अकेली ही चली 

मन की दुविधा मुक्त नहीं होने देती 

पर चाहा है की साथ चलो 

आंधी ,झंझा सब  पार करते चलती रही 

राह मे मिले कलरवित पक्षी ,निनादित नदियाँ 

कुछ दरख्त जो  मजबूत खड़े थे 

अपनी हरी डालियों ,फूलों ओर फलों से भरे 

सबसे बेखबर ,खुश 

मैँ उनको भी पीछे छोड़ चलती गई 

सूरज डूबता देखा  रुकना ही पड़ा 

सुबह फिर चलना ही था 

कभी मिलूँगी खुद से जब 

तों कौन फिर बताएगा 

मेरा वजूद है काहाँ /?

पुकार तो नहीं ,पर चाहा जरूर 

तुम मेरे साथ चलो ||

गुरुवार, 16 नवंबर 2023

चिट्ठी जो डाकखाने तक नहीं गई

कुछ चिट्ठीयां ऐसी भी होती हैं 

जो भेजी नहीं जाती कही वे किसको लिखी जाती हैं ?

वे खुद ही पढ़ती हैं खुद को ,ओर खुद ही समझती हैं 

वे चिट्ठियाँ ! समय के साथ विसार दी  जाती हैं |

पुनः आनंद  के दिन आते ही बंद हो जाती हैं वे 

एक दिन फिर लिखनी पड़ती हैं एक चिट्ठी 

फिर पुरानी भी खुल जाती है पन्ने दर पन्ने 

कुछ पन्ने पूरे हो चुके होते हैं 

कुछ के ड्राफ्ट कुदरत ने भर दिए होतें हैं 

कुछ खाली होती हैं 

ये खाली चिट्ठीयां >>> बेचैनी बन कर  

नसों मे दौड़ती हैं ,कुछ मे तो शीर्षक ही होते हैं 

उनका अनुमान लगाया जाता है बस 

हो सकता उसमे कुछ अच्छा लिखा जाए                    

जो बटवृक्ष की तरह हो 

उनका विस्तार किसी को खुशी दे 

दुनिया सबसे बड़ा कलमकार तो लिख चुका होगा 

बस पढ़ ना बाकी है |

अहो राम ! वही नहीं पढ़ सकी 

जो पढ़ा जाना चाहिए था 

मन जब  बहुत गीला हुआ तो एक चिट्ठी और लिख ली 

ना कल गुजर ना आज गया |

बच जाती झंझावातों से गर मोह का पहरा ना होता 

ना वो होता ना ये होता जीवन अपना गुजरा  होता |

सवाल अभी भी है-- किसे लिखी गई ये चिट्ठीयां ??

शायद अपनी आत्मा को उसका पता नहीं पता 

इसलिए डाकखाने नहीं जा सकी ये चिट्ठीयां 

नहीं जा सकी ये चिट्ठीयां ||

                                                      शकुन्तला मिश्रा 











बुधवार, 1 नवंबर 2023

चिंतन

 मन की उधेड़ बुन 

चिंतन की अवस्था एक दर्शन है 

जगत की आंधीयों से बचाव  होती है छत से 

मन की आंधीयों को बचाव चिंतन से होता है 

जीवन जब जगत का सार समझता है 

तब तक जीवन आगे जा चुका होता है 

शरीर की मशीने  थकने लगती हैं 

तन मन की ताकत घटती जाती है

 कितना अच्छा होता अगर उम्र की तरह ही 

सत को समझने की एक सीमा निर्धारित होती 

एक निश्चित काल होता 

हे  भं ते बताओ  ! दिगंत तक फैले इस मन की 

उलझनों का छोर कहाँ बांधू ?

इसी खोज मे साँझ आ जाती है 

सात वचन ,सात द्वार 

सात जनम ,सात कदम 

सात दिन ,सात अंजली इतने सारे सात !

ये सात जीवन मे कई  रंगों मे 

कई तरीकों से बारी बारी आता है 

ये कहाँ भेज दिया ?

कमाल नयन ! द्वार खुलते ही 

दो बनैली  आंखे चुभती हैं मेरे मर्म स्थल पर 

उम्र बीतती रही द्वार को खोलते 

अब तक ना भेद सकी 

अंतिम द्वार भेदन से पहले माँ  सो गई 

अब ????/


शकुन्तला  मिश्रा  



















गुरुवार, 19 अक्तूबर 2023

भारतीय दर्शन

 दर्शन चिंतन की श्रेष्ठ अवस्था है | यह वह ज्ञान है जी हमे तत्व से अवगत कराता हैं | मोक्ष पाना ही जीवन लक्ष्य  है 

शिक्षा पाने का अर्थ भारतीय दर्शन मे यही है और यह पूर्णतः तर्क पर आधारित है |

दुनिया मे दर्शन सबसे पहले भारत मे आया ,महाभारत  मे गीता  का उपदेश दर्शन ही है जो आत्मा से जुड़ा है |

बाहरी देशों मे दर्शन बहुत बाद मे आया जैसे -सुकरात ,प्लेटो, पाइथागोरस हुए | सुकरात को उनके तर्क सिद्ध 

सिद्धांत के कारण ही फांसी दे दी गई थी लेकिन बाद मे की वर्षों के बाद उनको माना |

दूसरी ओर भारत वैदिक काल मे ही अनेकों दार्शनिकों को जन्म दे चुका था जिनमे हमारे ऋषि मुनि तो थे ही अनेकों स्त्रियाँ भी थी | भारतीय दर्शन मे अनेक स्त्रिया भी दार्शनिक हुई हैं जिनमे मुख्य हैं  अंभरिणी जो परम तेजस्विनी है ये 

उद्घोषणा करती है -मैँ ही राष्ट्री हूँ कर्तव्य का अनुभव मैंने किया है मैँ ही जीवन रूप मे सब मे प्रविष्ट हूँ |

ब्रम्ह वादिनी गार्गी ने ऋषि यज्ञवल्क्य से तर्क करके नारी की श्रेष्ठता का अप्रतिम उदहरण दिया |इसके अलावा लोपामुद्रा ,घोषा ,अपाला ,मैत्रेयी अनेकों दर्धनिक व विदुषी स्त्रिया वैदिक काल मे हुई जो नारी चेतना की ध्वज रही हैं 

ये स्त्रिया पुरुषों की पूरक रही है प्रतिद्वंदी नहीं | 

इसके बाद सातवाहन व शुंग वंश मे नागणिका ,धारिणी ,लोखाम्बा |इस तरह हमारे देश मे स्त्रियों की समृद्ध शाली 

परंपरा रही है |

दार्शनिक स्त्रियों मे हर प्रकार का ज्ञान था वे यह भी जानती थी की रसोई से ही परिवार का स्वास्थ्य कैसे ठीक रखा जाए |

ये थी हमारे भारत की स्त्रियाँ हमारे गुरुकुलों मे भी इनको शिक्षा का बराबर अधिकार था |

जब आक्रांता आए तो यहाँ पर्दा आया ,अपनी गरिमा को बचाने के लिए जौहर अपनाना पड़ा ,शिक्षा से वंचित 

होना पड़ा हमारा शैक्षिक पतन हुआ हम अपने ज्ञान को भूलते गए ||

गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

दरख्त की चिड़िया

 एक सूखे दरख्त पर बैठी

 एक चिड़िया ने पूछा 

कविता लिखोगी ?

मैंने कहा हाँ लिखूँगी की -

दुनियाँ निरर्थक है  यह एक बहुत बड़ा झूठ है 

वह कुछ देर मुझे देखती रही 

फिर दरख्त के  आस -पास की लताओ मे 

अपने चोंच मारने लगी 

जैसे कह रही हो चलो एकल राग मे गातें हैं 

मैं जहाँ भी हूँ . . मैँ कही भी हूँ 

तेरी याद साथ है 





सोमवार, 4 सितंबर 2023

भोर का तारा

प्रातः सूर्य देव के निकलने से पहले
 आकाश के उत्तर ओर एक अकेला 
तारा ,अन्य तारों की अपेक्षा 
अधिक चमकदार भोर मे कुछ कहता हुआ 
जैसे  कह रहा हो 
जब चारों ओर आनंद भरी शांति हो 
 शांत रहो , अच्छा सोचो ,अच्छा करो
 मैं तुम्हें कुछ देने आता हूँ |
तुम अंतर्मन से देखो तुम जो भी 
चाहते हो उसे होता हुआ देखो 
पर वही देखो जो तुम्हारे लिए संभव हो 
कर के देखो वही होगा  ||