गुरुवार, 12 अक्तूबर 2023

दरख्त की चिड़िया

 एक सूखे दरख्त पर बैठी

 एक चिड़िया ने पूछा 

कविता लिखोगी ?

मैंने कहा हाँ लिखूँगी की -

दुनियाँ निरर्थक है  यह एक बहुत बड़ा झूठ है 

वह कुछ देर मुझे देखती रही 

फिर दरख्त के  आस -पास की लताओ मे 

अपने चोंच मारने लगी 

जैसे कह रही हो चलो एकल राग मे गातें हैं 

मैं जहाँ भी हूँ . . मैँ कही भी हूँ 

तेरी याद साथ है 





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