एक सूखे दरख्त पर बैठी
एक चिड़िया ने पूछा
कविता लिखोगी ?
मैंने कहा हाँ लिखूँगी की -
दुनियाँ निरर्थक है यह एक बहुत बड़ा झूठ है
वह कुछ देर मुझे देखती रही
फिर दरख्त के आस -पास की लताओ मे
अपने चोंच मारने लगी
जैसे कह रही हो चलो एकल राग मे गातें हैं
मैं जहाँ भी हूँ . . मैँ कही भी हूँ
तेरी याद साथ है
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