स्वप्न में गई क्षितिज के पार
दिखा एक सुन्दर सा संसार
सुरभि खुशबू से भरी बयार
सुरों से सजा हुआ दरबार !
सब्ज सा रंगा - रंगीला भान
हुआ मुखरित धड़कन का गान
धरा पर पुष्प ,पुष्प पर मैं
पुनीता हुई खिली थी मैं !
महानंद से मिली थी मैं
सोम मई किरण बनी थी मैं !
मिल गया अमृत से जीवन
लहर -दर -लहर बना सोपान
चली मैं सात समंदर पार
अमरता मिली सवप्न में आन
शकुन