शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

swapna

स्वप्न में गई क्षितिज के पार 

दिखा एक सुन्दर सा संसार 
सुरभि खुशबू  से भरी बयार 
सुरों से सजा हुआ दरबार !
सब्ज सा रंगा - रंगीला भान 
हुआ मुखरित धड़कन का गान 
धरा पर पुष्प ,पुष्प पर मैं 
पुनीता हुई खिली थी मैं !
महानंद से मिली थी मैं 
सोम मई किरण बनी थी मैं !
मिल गया अमृत से जीवन 
लहर -दर -लहर बना सोपान 
चली मैं सात समंदर पार 
अमरता मिली सवप्न में आन 

शकुन