अमावास के काले सागर में,
भयंकर विषधर फन फैलाए,
सूरज के आने की आस में,
जल रहा, उसे जलना ही होगा,
उसने ठानी है अँधेरे से लड़ने की।
प्रतिपल जलता रहा, निखरता रहा,
खुद को खुद से परखता रहा,
तपन अपने हिस्से की तौलता रहा।
धैर्य में तन्मय हो,
उजाले की चाह में,
परिपक्व होता रहा।
दूर से आती शंख की गूँज,
संकट मोचन दया निधान।
भोर की दिखी किरण,
दीपक बोला, भगा अँधेरा,
जीत गया मैं हुआ सवेरा।