रविवार, 17 जून 2012

मैं हूँ दीपक

अमावास    के  काले  सागर में,
भयंकर  विषधर  फन  फैलाए,
देहरी  पर बैठा  एक  दिया।

सूरज  के  आने  की आस में,
जल रहा, उसे  जलना ही  होगा,
उसने ठानी है  अँधेरे  से  लड़ने की।

प्रतिपल  जलता  रहा, निखरता रहा,
खुद को खुद  से परखता  रहा,
तपन  अपने हिस्से की तौलता रहा।

धैर्य में तन्मय हो,
उजाले  की चाह में,
परिपक्व होता  रहा।

तभी सुनी  एक आवाज़,
दूर से आती  शंख की गूँज,
संकट मोचन  दया निधान।

भोर की दिखी किरण,
दीपक बोला, भगा अँधेरा,
जीत गया  मैं  हुआ सवेरा।

मैं हूँ दीपक।

चलो आली

चलो आली  चित चोर आया।
त्रिभंगी  मुद्रा/ तिरछा  चितवन/ मनहर रूप
रस राज/ रास रसेश्वर  आया।

चलो  आली।

कालिया नाग  नथैया/ अहंकार तोड़े यह गउओं का चरैया
गोपी  प्राण  बसैया  आया।

चलो आली।


धर्म रक्षक/ धर्म  धारक/ धर्म पालक
धर्म  राज्य  रचैया  आया।

चलो आली।


प्रेम  धारक/ प्रेम पोषक/ प्रेम रक्षक
प्रेम  रचनाकार  आया।

चलो आली।


प्राण  दाता/ दुःख हरता/ सुख  करता
दीना नाथ जगन्नाथ आया।

चलो आली।

अनंत/ अखंड/ अछेद/ अभेद
सुवेद  है आया।
चलो आली।


कृष्ण कृष्ण/ महाबाहो/  अच्युत/ अनंत
गोविन्द  है  आया।

चलो आली।


चली आली चितचोर आया/
'सुदर्शन'  प्रेम  रूप  धर आया।

चलो आली।