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जी कर तो
पार न की सरिता !
जीवन !
क्या मर कर जीतोगे !
तर कर भी ,
खुद से हार गए ,
डूबे तो ,
जाओगे कैसे ?
अब उठो लिखो ,
नवल लेखा !
आमरण
मंगल गीत आँगन !
यश धवल ,सुवास उन्नत !!
एक दिया
जल रहा था !
अकेला !
किसी राह तकता
मालूम है ,वो नहीं आएगा
जल रहा हूँ
अपनी संतुष्टि के लिए !