रविवार, 18 अगस्त 2013

maa

फटे ,पुराने ,तुड़े ,मुड़े से वस्त्र में
एक सुंदर काया !
जैसे दही का एक टुकड़ा लेकर उससे बना हो तुम्हारा चेहरा
सुन्दर माथे पर लाल गोल बिंदी
जैसे गुलाब की  फूटती  कली !
ऐसी दिखती मेरी माँ !
सुडौल सुन्दर काया ,सुन्दरता की मूरत
उस रूप से थोडा सा चुराने को जी चाहे
सारे रिश्ते जैसे उसी में समाये हों
पत्नी ,वधु ,भाभी ,बहन ,माँ पड़ोसन
सारे रिश्तों के बीच जीवन भर नाचती रही माँ
रिश्तों रिवाजो के बीच आधी सोयी, आधी जागी
अलसाई सी ,थकी हुई दुपहरी जैसी माँ !
तमाम लहरों को खुद में समेटे
समंदर की मानिंद माँ !
जीवन की कामयाबी में
दुआओं जैसी माँ !