शनिवार, 13 जून 2015

एक था मन

देखना चाहूँ सब संसार 

प्राणो को प्लावित कर अपार !
सब काल वहन  कर लूँ  खुद पर ,
तैर कर जा पहुंचूं उस पार !
करुणा की धार बहाऊँगी ,
पाषाण की कारा तोड़ूँगी !
फूलों की गंध वसा लूंगी ,
रवि की किरणों पर दौडूँगी !
शिखर -शिखर को चूमूंगी ,
सारी  वसुंधरा डोलूँगी !
निज ह्रदय की बातें कह दूँगी ,
हर प्राण -गान में मैं हूँगी !
इतना सुख साध मेरे मन में ,
तारे जितने नभ मंडल में !
सब एक माला में गुथूगी ,
यौवन का वेग है प्राणो में !
आशा असीम है इस मन में ,
भावों के गीत भरे मन में !


बुधवार, 11 मार्च 2015

आस

नहीं रुकतें  हैं मेरे आस 

निरंतर करतें है उपहास 

कहें हैं -रुको गति है जहाँ 

क्या कहा ?

गति है नाम तो रुकना कहाँ ?

असंभव है ,जब तक है श्वास 

नहीं रूकती है गति कभी 

नहीं रुक सकती मेरी आस 

बड़े हैं दुःख ,वेदना यहाँ 

मगर मैं हो जाती निरुपाय 

रुके न आस ,रुके न गति 

तो कैसे रुकूँ ?कहो मैं हाय !

यही है जीवन का अधिवास 

मुझे है किन्तु त्रास में आस !


शकुन 

 

मंगलवार, 20 जनवरी 2015

आज .......

आज क्यों सूना क्षतिज है
अलसाई सी प्रतिध्वनियाँ
फिरे  बावरी  पगली सी
ठंडी है तपन इस बस्ती की
 क्यों की इंधन है दृग जल का
साँसों का नित आना- जाना
ज्वाला सी लगे अनल की
 जलती हैं सुप्त ब्यथाएँ -
क्यों सुने कोई ये कथाएं ?
खुद कहती हूँ खुद सुनती हूँ
फुर्सत में अश्रु की स्याही से
चुपके -चुपके कुछ लिखती हूँ !
ये राह तुम्ही ने दिखाई थी
इस राह पे मैं चल आई ,
तुम से ही उपदेशित हूँ
फिर आज क्यों धीर विकल हूँ
मृत्यु में भी जीवन है
इस रंग में ह्रदय रंग जाए
ये डीप मेरा जल जाए !

शकुन्तला मिश्रा