बुधवार, 1 नवंबर 2023

चिंतन

 मन की उधेड़ बुन 

चिंतन की अवस्था एक दर्शन है 

जगत की आंधीयों से बचाव  होती है छत से 

मन की आंधीयों को बचाव चिंतन से होता है 

जीवन जब जगत का सार समझता है 

तब तक जीवन आगे जा चुका होता है 

शरीर की मशीने  थकने लगती हैं 

तन मन की ताकत घटती जाती है

 कितना अच्छा होता अगर उम्र की तरह ही 

सत को समझने की एक सीमा निर्धारित होती 

एक निश्चित काल होता 

हे  भं ते बताओ  ! दिगंत तक फैले इस मन की 

उलझनों का छोर कहाँ बांधू ?

इसी खोज मे साँझ आ जाती है 

सात वचन ,सात द्वार 

सात जनम ,सात कदम 

सात दिन ,सात अंजली इतने सारे सात !

ये सात जीवन मे कई  रंगों मे 

कई तरीकों से बारी बारी आता है 

ये कहाँ भेज दिया ?

कमाल नयन ! द्वार खुलते ही 

दो बनैली  आंखे चुभती हैं मेरे मर्म स्थल पर 

उम्र बीतती रही द्वार को खोलते 

अब तक ना भेद सकी 

अंतिम द्वार भेदन से पहले माँ  सो गई 

अब ????/


शकुन्तला  मिश्रा  



















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