बुधवार, 30 जुलाई 2014

एक साँझ ........

साँझ समय !

पीताभ अम्बर ,
दुर्जय सा दृश्य  दिखाता है !
निरभ्र ,शांत 
दिगंत प्रसार 
ज्यों अनंत को निगल जाता है !
पंक्षियों की कतार 
अनुशाषित उड़ान 
शांत निर्धूम निज नीड़ों को जाता है !
आती निशा 
निद्रित दिशा 
ज्यों ब्रम्हलीन हुआ जाता है !
अधीर मन 
आकुल क्षण 
रात भर को विश्राम को जाता है !

शकुंतला 

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