सोमवार, 18 जनवरी 2010

सफलता के सूत्र - १

बहुत से ऐसे लोग हैं जो जिंदगी को बेमकसद जीते जा रहें हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कुछ नया करने की सोचते ही नहीं हैं। जो जैसा है, उसे वैसा ही रहने देते हैं, हताशा और निराशा में जीवन काट देते हैं। कुछ लोगों को कामयाबी तुक्के से, कुछ लोगों को भाग्य से मिल जाती है।

बहुत कम ऐसे लोग हैं जो अपनी बुद्धि और कर्मठता के बल पर कुछ हासिल करतें हैं। अपने श्रम से जीवन को सफल और कामयाब बनाते हैं। कुछ अलग करते हैं, अपना एक मुकाम बनाते हैं।


यह लेख उन लोगों के लिए है जो भीड़ से अलग दिखना चाहते हैं।


हम अपने जीवन में सफल होने के लिए बहुत तरह से सोचते हैं, परेशान होते हैं। इस भागमभाग में तनाव, चिंता, दुःख आदि घेर लेता है। हम बिना सोचे करते चलते हैं फ़िर सोचते हैं, इतनी मेहनत करते हैं, पर संतुष्टि नही आती, कहीं पर कुछ कम लगता है या खिन्नता रहती है। इसका कारण ये होता है कि हम जानते ही नहीं कि कार्य की कुशलता में कमी कहाँ हुई है।

सफलता का अर्थ है किसी कार्य को कुशलता के साथ पूरा कर देना। जीवन में एक लक्ष्य निर्धारित करना और उसे पाना। एक के बाद एक प्रगति के पथ पर चलते जाना। यह एक ऐसा सफर है जो जीवन भर चलता है। इस सफर में ठहराव आने का मतलब है पीछे रह जाना, जिस समय आप रुक गए समझो वहीँ से आप पीछे जाने लगे।

किसी कार्य को कुशलता पूर्वक सफलता की और ले जाने के लिए उद्देश्य, सिद्धांत, योजना, अभ्यास, धैर्य, साहस और सतत प्रयास की जरुरत होती है। कई बार गलतियाँ भी होती हैं और असफलता भी मिलती है, पर उन गलतियों से सबक लेना चाहिए। गलती को सुधार लेने पर सफलता हाथ आती है, अन्यथा नहीं। जब तक गलतियों को सुधरने का प्रयास नही करेंगे, तब तक सफलता की राह में रुकावट आती रहेगी। कभी कभी सफल न होने पर, यह सोच कर बैठ जाना कि यह नहीं हो रहा- नहीं कर पा रहा, यह सोच कर काम न करना कमजोरी है या काम न करने का बहाना भी हो सकता है।

अयोग्यता, अनुशासन की कमी, ज्ञान का आभाव और भाग्यवादी दृष्टिकोण भी सफलता की राह में बाधक होते हैं, सफल होने के लिए छोटे-छोटे काम को भी धैर्य के साथ मन लगा कर करना चाहिए। कठिनाइयों का सामना साहस के साथ करने से सहायक भी मिल जाते हैं।

यदि कोई हमारी आलोचना करता है तो उसको धैर्य पूर्वक सुनना चाहिए, फ़िर उस पर विचार करना चाहिए। आलोचक यदि सही है, अर्थात वो जो कह रहा है, सच है, तो उसको अपना मित्र समझना चाहिए, और अगर वो अनाप शनाप बोल रहा है तो उसे अनसुना कर देना चाहिए। इस तरह का व्यव्हार करो जैसे तुमने उसे सुना ही नहीं। स्वस्थ आलोचना हमारा मार्ग दर्शन करती है और उसी में से सफलता का सूत्र निकल आता है।

सफल होने के लिए दृढ़ इच्छा का होना जरुरी है क्योंकि सफलता इतनी सहज नही होती की आसानी से मिल जाए। हाँ, हर सफलता के बाद शक्ति, साहस और उत्साह अवश्य बढ़ जाता है।

कभी कभी कुछ ऐसी गलती हो जाती है जिसके कारण मन को सीधे चोट लगती है। कुछ दिनों तक हर तरफ अँधेरा ही दिखता है। कभी कभी जीवन ज्योति बुझने लगती है। ऐसे में ज़रा रुकें, अपनी पिछली सफलताओं को देखें, और देखें कि अतीत में इस प्रकार की उलझनों को आपने किस प्रकार सुलझाया था, उनसे जूझने का कौन सा रास्ता अपनाया था। यह सब सोचिये, फ़िर राह मिल जाएगी, ह्रदय के घाव जल्दी भर जाएंगे, जीवन के प्रति पुनः एक आशा जागेगी।

आशा एक ऐसी ज्योति है जो दुर्गम अन्धकार में भी प्रकाश देती है। यह प्रकाश आपका अपना होता है और इसके सहारे कठिन रास्ते कट जाते हैं। आशा को भगवान् कहा जा सकता है क्योंकि यह हमें विकट परिस्थिति से उबार लेती है।

जब आप किसी दुःख या समस्या से घिर जाएं, तो अपने अतीत में जाकर देखें कि इस तरह की समस्या का सामना पहले आपने किस प्रकार किया था, और आज आप क्या कर सकते हैं। इसे किस प्रकार सुलझा सकते हैं। उस समय आपने कौन सा निर्णय लिया था, और आज आप क्या कर सकते हैं।

कभी कभी ऐसा भी होता है कि हम दूसरों की चालाकियों का शिकार बन जाते हैं, या उनकी धूर्तता भरी बातों में आ जाते हैं। ऐसे में अपने संतुलन को बनाये रखें और विचार करें कि भविष्य में आपका व्यवहार उनके साथ कैसा होना चाहिए। उनके कपट का मन पर गहरा असर भी पड़ सकता है। अपनी कुंठा से मुक्त होने के लिए अपनी भावनाओं को एक कागज पर लिख कर रखें। ऐसा करने से मन में मुक्त भाव आ जाता है। यह भी एक प्रकार का उपचार है, इससे मन के ज़ख्म जल्दी भर जाते हैं, मन शांत होता है।

एक बात बड़ी सावधानी के साथ और ऊँची अवस्था में सोचनी चाहिए कि हमें अपने जीवन को किस प्रकार और कितना अच्छा प्रयोग में लाना है। अपने को किसी ऊँचे आदर्श से जोड़कर देखना चाहिए और मुक्तता का अनुभव करना चाहिए। अपनी नज़र में अपनी ऊंचाई, अपनी प्रतिष्ठा, अपना आदर्श हमेशा बना कर रखना चाहिए।

किसी भी कार्य को पूरी तरह करने के लिए कुशलता के साथ कार्य की निरन्तरता भी आवश्यक होता है। ऐसा नहीं करना चाहिए कि आज किया, फ़िर कुछ दिन आराम करें, फ़िर करें। ऐसा करने से कार्य तो रुकता ही है, वह ठीक तरह से होता भी नहीं क्योंकि एकाग्रता भंग होती है। मन उतना नहीं लगता जितनी उस कार्य को जरुरत होती है, और सफलता भी रुक जाती है, आपके साथी आपसे आगे हो जाते हैं। इसलिए अपने काम को एक रफ़्तार देनी होगी तभी सफलता प्राप्त होगी, आवश्यक समय और प्रयास निरंतर देना होगा।

सफलता कोई ऐसी वस्तु नहीं है कि आपने माँगा या चाहा और आपको मिल गई। इसे तुंरत प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, इसमें लगातार परिश्रम करना होगा। एक कठिन परिश्रमी व्यक्ति ही सफलता पाता है, और अपने कारण पाता है, दूसरों के कारण नहीं। इसीलिए सफल व्यक्ति याद किए जाते हैं।

जीवन को ठीक तरह से जीना भी एक कला है और यह कला जरूर आनी चाहिए, तभी जीवन का आनंद आता है। जीवन को अच्छी तरह जीने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, मानवीय मूल्य, नैतिक मूल्य और नियमों का आदर पूर्वक अनुशासन के साथ पालन करना चाहिए। तब कहीं एक सशक्त चरित्र बनता है, तब आप एक विशेष व्यक्ति जाने जाएंगे। अपने मूल्यों को प्रतिबिम्बित करें, ऐसा जीवन होना चाहिए। आपके आदर्श खोखले न हों, आप उनके प्रति इमानदार हों, और सच्चाई बरतें, तो प्रसन्नता बनी रहेगी। परन्तु यह एक कला है, जो इस तरह के व्यक्तियों के संपर्क में आकर जल्दी सीखी जा सकता है।

अगर आप चाहते हैं कि आप में आत्मविश्वास बढ़े तो किसी को नीचा दिखाने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए। ऐसा करके आप अपनी मित्रता का दायरा बढ़ा लेंगे। कोशिश करें कि जिन्होंने आपको कष्ट दिया, उनके लिए भी कठोर भावनाएं न व्यक्त करें। उनके पीठ पीछे भी उनकी निंदा से बचना चाहिए।

अपनी सोच को सकारात्मक रखें पर हर किसी पर भरोसा न करे। ईर्ष्यालु प्रवृत्ति के लोगों से दूर रहे ये आपको लड़ने पर विवश कर देंगे और इस तरह की दाँव-पेंच भरी बातें करेंगे कि आप लोंगो के बीच शर्मिंदा हो सकते हैं। ऐसे लोग मौका खोजते रहते हैं। किसी की निंदा से भी अपने को दूर रखें। सामंजस्य को बढ़ाने की कोशिश करें, एक बेहतर इन्सान बनें, सफलता जरुर मिलेगी।

किसी को अपशब्द कभी न कहें। जब आप क्रोध में हों तो एक गिलास ठंडा पानी पिएँ, सोचें कि आपके क्रोध का कारण क्या है, किस बात पर है, वजह कहाँ है, क्यों है। हो सकता है समाधान भी आपके पास ही हो। अपने क्रोध पर काबू पाने की ताकत हम सब में होती है, केवल संयम पूर्वक काम लेना आना चाहिए।

अक्सर क्रोध में हम अपना ही नुक्सान कर लेते हैं, हम किसी को क्रोध करके नही बदल सकते। हर एक का अपना एक स्वभाव होता है, उसे समझना चाहिए और नकारात्मक प्रभावों से बचना चाहिए ताकि हमारी खुशियाँ हमसे छिन न जाएँ। अपने जीवन पर और अपनी खुशियों पर ग्रहण न आने दें।

ईर्ष्यालु और क्रोधी लोगों को उपेक्षित कर दें अथवा किसी बात का उचित समाधान रख कर हट जाएँ, अपना काम करें। इस प्रकार आप उनके पीड़ादायी व्यवहार से बच सकते हैं। सबसे अच्छा तो यही होगा कि आप उनके सामने आने से बचें और उनको यह भी न पता लगने दें कि आप उनसे दूर रहना चाहते हैं। यह एक सुरक्षा का तरीका है जो आपका बचाव कर देगी।

श्री कृष्ण ने गीता में कहा है- संशयात्मा विनश्यति! अर्थात- जिसमें संशय हो उसका विकास नही होता।

किसी काम को करने के पहले अगर मन में दो तरह के विचार रहते हैं कि करें या न करें, इसे करने लाभ होगा या नहीं, मन की यह स्थिति असफलता की तरफ़ ले जाती है। काम के पूरा होने से पहले फल की कल्पना करना और कामना करना ग़लत है, ऐसा करने से कर्म करने की कुशलता घट जाती है क्योंकि मन संदेह के घेरे में रहता है। पूरी तरह मन को एकाग्र करके कर्म करने से काम तो कुशलता से होता ही है फल भी अवश्य अच्छा आता है।

अपनी आलोचना से न तो डरें न घबराएँ। है तो यह बहुत बहादुरी वाला काम, इसमें अन्दर की ताकत ही काम आती है। तो अपनी आलोचना को साहस के साथ स्वस्थ मन से सुनें और कहीं कमी है तो उसे सुधारें। अपना विश्लेषण ठीक ढंग से करें, सफलता मिलेगी।

आलोचक अगर आपकी गलती की और आपका ध्यान दिलाता है, तो इसे ग़लत न समझें। खुशी से मान लें। उसे धन्यवाद देकर अपने को बदलने की कोशिश करें।

सफलता पाने के लिए उसकी ऊँचाई और अपना स्थान जान लें कि आप कहाँ हैं और अभी कितना जाना होगा। हममें कितनी कुशलता है, क्या कमी है, क्या खूबी है, क्या अच्छा है और क्या ख़राब है। मुझमें क्रोध, ईर्ष्या, अहंकार, अज्ञान, प्रेरणा, संवेदना, विनम्रता, क्या सब कुछ अनुपात में है।

अक्सर जब कोई हमारे बारे में पूछता है तो हम केवल यही बता पाते हैं कि मेरा नाम यह है, मेरा घर यहाँ है, मेरे पिता यह हैं, भाई-बहन, गाँव, शहर का नाम आदि। पर मैं ख़ुद के बारे में कुछ नही बता पाता। जब हम अपने बारे में सब जानेगे तभी सफल होंगे।

जिज्ञासा का भाव और उस पर चर्चा हमें नए आयाम देती है। सोचने का दायरा बड़ा बनाती है और खोज का रास्ता दिखाती है। जिज्ञासा एक नए प्रकार से समाधान करना भी बताती है और यह हमें सफलता की ओर ले जाती है।

हम अक्सर दुखी हो जाते हैं कि हमें अमुक ने परेशान किया या पीड़ा दी, गाली दी। किसी ने यह सब किया और गया। वो गया और हम उसकी बातों को लेकर चिंता में चले जाते हैं, बहुत परेशान हो जाते हैं। कई दिन तक खाना बंद, कुछ भी अच्छा नहीं लगता। पर जरा गहराई में जाकर सोचें तो पाते हैं कि वो व्यक्ति तो बोल कर चला गया, अब हम ख़ुद उसे सोच कर अपनी पीड़ा को बढ़ा रहे हैं और यह पीड़ा जो हम ख़ुद को दे रहे है ये मेरी ही गलती है ऐसे में सुन कर ख़त्म कर देना चाहिए, सोच कर अपना मन ख़राब करना निराधार है। शान्ति से रहना चाहिए, इसमें सफलता का सूत्र है ।

जो बात हमारी चिंता का कारण बन जाती है, वह हो कर वहीँ ख़त्म भी हो जाती है और हम उसे सोच कर बढाते रहते हैं और तरह तरह के विचार करते हैं। इस प्रकार हम अपना नुकसान ख़ुद ही करते हैं, इस अवस्था से बचना चाहिए।

जीवन के घाव चाहे जिसने दिए हों, चाहे जितने गहरे हों, चाहे जैसे हों, अगर जीना है तो उसे भरने के लिए स्वयं प्रयास करना होगा। मैंने लिखा, "अगर जीना है तो", क्योंकि हम घावों के साथ जीवन नही जी सकते। ज़िन्दगी ज़िंदा रह कर ही चलती है, और कोई दूसरा उसे भर नहीं सकता। कोई आपको सांत्वना देगा, समझा देगा, पर घावों पर पट्टी ख़ुद ही करनी होगी। उसे भरना तो हमें ही पड़ेगा। यह तभी भरेगा जब हम इसे भूल जाने की चेष्टा करें, दर्द को छोड़ने की चेष्टा करें, तभी खड़े हो सकेंगे जब हम स्वस्थ हों।

हम अपनी किसी भी परेशानी को तभी दूर कर सकते हैं जब अपनी मदद ख़ुद कर सकें, अपने ही प्रयास से हम अपनी जिंदगी को बदल सकते हैं।

दुनिया में बहुत से लोगों ने अपनी ताकत के सहारे अपनी बेचारगी दूर की है, और एक मिसाल कायम की है। ज़िन्दगी से लड़ना पड़ता है, तभी यह बदलती है, और तकलीफें भी तभी दूर होती हैं जब जीत की ताकत रखते हों।

जीवन में किसी प्रकार की क्षति हुई हो तो आप उसके बोझ को लेकर नहीं जी सकते, इससे धीरे धीरे जीवन ज्योति कम होती जाएगी। दर्द एक प्रकार का रोग है। रोगी आदमी क्या कर सकता है? उसे इलाज की जरुरत होती है ताकि वह स्वस्थ होकर फ़िर से काम करने लगे। इसी प्रकार अपने मन या तन के दर्द का इलाज भी करना होगा। मैं खुश रहूँगा, मैं यह करूँगा, ऐसा सोचकर ख़ुद को विश्वास दिलाना होगा। गौतम बुद्ध ने कहा है- अप्प दीपो भव।

याद रखिये जीवन में अपना विवेक ही अपना सच्चा साथी है। अपनी बुद्धि श्रेष्ठ हो, इसका प्रयत्न हमेशा करना चाहिए क्योंकि बुद्धि के द्वारा सब कुछ जीता जा सकता है और सब कुछ पाया जा सकता है।

जीवन में धैर्य एक आवश्यक गुण है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। उतावलेपन और घबराहट से काम बिगड़ जाता है, धैर्य से काम में कुशलता आती है। धैर्य का सम्बन्ध मन की शान्ति से होता है। आपके पास धैर्य और शान्ति, अगर दोनों है, तो मानिए की आप बहुत सुखी हैं। मन अगर दुखी है तो अमृत भी स्वादहीन है, व्यर्थ लगेगा। किसी प्रकार का तनाव, भय, चिंता हमारी अशांति का कारण बन जाता है। आवश्यकता है एक संकल्प लेने की- हम शांत रहेंगे! एक दिन यह आदत में शामिल हो जाएगा।

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