जब मेघ घिरा अंबर हो
विददुत मुस्कान बिछी हो
तुम वारिद बन छा जाना
तुम आना |
मैं श्रान्त पथिक रजनी की
तुम निद्रा बन जीवन की
इन पालको पर छा जाना
तुम आना |
तुम नील कमल मधुवन के
हिम तन मे बसो हृदय के
जीवन स्पंद बनाना
तुम आना |
क्षण क्षण असीम कोलाहल
सुख दुख के कितने बादल
वंशी स्वर बन मुसकाना
तुम आना |
पथ देख रहे मेरे दृग
भटक न जाए मन विहंग
साँसो के होते आना
तुम आना |
शकुन्तला मिश्रा
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