रविवार, 3 अप्रैल 2022

तुम आना

जब  मेघ घिरा अंबर हो  

विददुत मुस्कान बिछी हो 

तुम वारिद बन छा जाना 

तुम आना |

मैं श्रान्त पथिक रजनी की 

तुम निद्रा बन जीवन की 

इन पालको पर छा जाना 

तुम आना |

तुम नील कमल मधुवन के 

हिम तन मे बसो हृदय के 

जीवन स्पंद बनाना 

तुम आना |

क्षण क्षण असीम कोलाहल 

सुख दुख के कितने बादल 

वंशी स्वर बन मुसकाना 

तुम आना |

पथ देख रहे मेरे दृग 

भटक न जाए मन विहंग 

साँसो के होते आना 

तुम आना |


शकुन्तला मिश्रा 












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