काश ! की ऐसा हो जाए
मैं जिस मोहन की राधा हूँ
इस साल मुझे वो मिल जाए !
मेरे जीवन की वंशी को
उसकी मंजिल मिल जाए !
दिन भर आँखों में खुशियाँ हों
रातें नीदों से भारी हों !
हूँ भीगी , धुली खड़ी अब तक
मैं कब तक पंथ निहारूं ?
मर के फिर मैं मरती हूँ
मैं हारी हूँ तुम जीते हो !
पर इक आधार जरुरी है
जीवन में प्यार जरुरी है !
प्रिये तुम मेरा विश्वास बनो
अपनी दासी के श्याम बनो !
पथरीले फैले सूने में
मैं होती जब अपने मन में !
दो आँखे तकती हैं ऐसे
अम्बर भी हँसता है मुझपे !
प्रिय तुम तो अन्तर्यामी हो
सारी जगती के स्वामी हो
इक बार दरश गर हो जाये
अम्बर भी धरा पर आ जाये !
मेरे अनंत सूने मन में
अंतर के हर इक रग -रग में
तेरी ही ज्योति समां जाये
तू मैं और मैं तू हो जाये
ये साल मेरा ही हो जाये !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें