तू ही नारायण तू ही नारायणी।
तू ही शक्ति तू ही ज्योति।
तू ही भू लोक में तू ही भुवः!
तू ही शक्ति तू ही ज्योति।
तू ही भू लोक में तू ही भुवः!
तू ही दिन रात में, तू ही ज्ञान चित्त में।
तू ही उल्लास में, तू ही उत्साह में।
तू ही हर्ष में, तू ही विषाद में।
तू ही प्राण में, मरण, हरण में।
निद्रा तोड़ो चित्त जगा दो।
मुक्त स्वर दो , मानस रस दो।
एक काल मेरा दो।
अमरत्व, आलोक दो।
त्रिभुवन मोहिनी ,चिर कल्याणी।
विश्व विजयिनी, पुण्य पियुशिनी।
जगत जननी, थोड़ी महक दो।
हे भय विनाशिनी, निखिल नाथ से मिला दे।
तेरी आरती का दिया बनूँ, थोड़ी अगन दे।
सर्व व्यापिनी अंतर मन विकसित कर।
निर्मल कर, उज्जवल कर, आश्रित कर।
चित्त मेरा आनन्दित, निस्पंदित करो माँ।
तू ही उल्लास में, तू ही उत्साह में।
तू ही हर्ष में, तू ही विषाद में।
तू ही प्राण में, मरण, हरण में।
निद्रा तोड़ो चित्त जगा दो।
मुक्त स्वर दो , मानस रस दो।
एक काल मेरा दो।
अमरत्व, आलोक दो।
त्रिभुवन मोहिनी ,चिर कल्याणी।
विश्व विजयिनी, पुण्य पियुशिनी।
जगत जननी, थोड़ी महक दो।
हे भय विनाशिनी, निखिल नाथ से मिला दे।
तेरी आरती का दिया बनूँ, थोड़ी अगन दे।
सर्व व्यापिनी अंतर मन विकसित कर।
निर्मल कर, उज्जवल कर, आश्रित कर।
चित्त मेरा आनन्दित, निस्पंदित करो माँ।
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