गुरुवार, 7 मार्च 2013

साँझ आई


तौल खुद को तू
प्रवासी !
सघन अंधेरा दूर कर तू !
ज्योति दे अपने हिये को !
कर सवेरा !
साँझ आई -कह रही है
जो थिरा ,जो जाय
अब्यक्त भी खो जाय
मारुत मरण जो आय
धीर रख अपने को
अवसाद के सब क्षण जल तू
निकल चल तू
अब अकेला !
बन के साथी
निज दिवस का !

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