गुरुवार, 7 मार्च 2013

सत्य


असत्य से सत्य की उत्पत्ति नही होती ।
 हमारा धर्म सत्य की राह दिखता है पर इस चलना बड़ा कठिन होता है ।
 कभी आदमी का अपना स्वार्थ ,कभी डर ,कभी कोई कमजोरी अथवा बुद्धि हीनता आदि आड़े आता है ।
 पर जो भी हो सत्य पर चलना एक दिन अपने आप को स्वच्छ कर देता है ,मन मे कोई ग्लानी नही छोड़ता और मन वो दर्पण है जो आपके न चाहते हुए भी आपका अपना निजी रूप दिखाता है जो और कोई नही देख सकता वो आपका मन आपको दिखाता है और मन के दर्पण में जब आप अपने को दोषी पाते है तो एक कैदी से या एक अपराधी से आप अधिक पीडा को भोगते है मन के स्तर की पीडा बहुत दुःख देती है ,दीमक की भाति अन्दर से खाली होना ही होता है ।
 इसलिए परम पिता सब को ज्ञान दे ,सब को शक्ति दे ,अच्छी शक्तियाँ मानव का कल्याण करे ,कोई दुखी न हो ।
 ॐ तत्सत

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