पिछले दिनों देश में जूताफेंकने को लेकर खूब हंगामा काटा गया! हमारे नेताओं ने कहा जूता फेंकना
लोकतंत्रीयव्यवस्था नहीं है !
उद्दंडता हमारी संस्कृति में नहीं है - सही है !
पर घोटाला करना, घूस लेना, गरीबों का हिस्सा खुद ले लेना, भ्रष्ट आचरण करना फिर सफाई देना, ईमानदार को जितना हो सके परेशान करना ताकि वह पोल न खोले! यह सब भी हमारी संस्कृति में नहीं है !
सत्य कहना अब बड़ा जोखिम भरा है!
इमानदार अब अपनी जान गँवाते है!
जूते पैरों में रहतें है, साथ चलते हैं!
जब पहन न सको तो जूते मचलते हैं!
जब जीवन चलना हो मुश्किल!
कदम-कदम पर हो मुश्किल !
अधिकार हो मंत्री हाथो में !
कर्तव्य हो जनता हाथो में !
जब भ्रष्ट आचरण 'मन्त्र 'बने !
जब घोटाला 'अधिकार 'बने !
जब 'निष्ठावान ' कलंक लगे !
जब भूखी जनता मरने लगे !
तब जूता खुद चल पड़ता है !
जब जूता 'खुद 'चल पड़ता है !
तब 'हिन्दुस्तान 'तड़पता है !
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