शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2012

अर्ध्य

रुको  श्वांस !भर अर्ध्य नयन का !
सूरज को यह फूल  जवा  का !
दे तो दूं मैं !
इक अमोघ अनिवार्य दान भी 
ले तो लूं मैं !
जो जिया; गया /जो किया; गया 
इस  लोकालय  में !
सब विस्मय आह 
मिटा तो लूं मैं
इस पावन क्षण में, पल भर अर्ध्य
चढ़ा तो लूं मैं !
जी लूं मैं संकल्प जगत में
यह आशीष  जगत कर्ता से
पा तो लूं मैं !
अनसुनी आह ,सूना अंतः ,गुजरी बातें
सब कह तो दूं मैं !
तिमिर रात्रि आने से पहले
भोर का वादा
कर तो लूं मैं !
स्वच्छ ह्रदय से सुमनांजलि दे
अपने पिय को
रिझा तो लूं मैं !
कुंदन भरे प्रभा मंडल से
अपनी झोली
भर तो लूं मैं !







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