मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

भ्रम

                                           

फिर विकल मन 
चित्र् लिखित सा 
ठहरा हुआ सा!
आज फिरबंसी बजी है !
फिर सुना है 
आयेंगे वो 
आज फिर यह भ्रम हुआ है !
हैं अकेले भीड़ में भी 
हादसा यह मेरे संग हरदम हुआ है !
फिर सुना है,
फिर बजी है
 बांसुरी !

30/10/12

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें