नायक
जीवन का रहस्य !
कृष्ण भी नहीं समझ सके
कि क्या होगा आगे !
नियति के आगे झुकना पड़ा !
बहुत चाहा पर युद्ध नहीं रुका !
कहा -'अर्जुन सुन '
तू केवल कर्म को कर !
अपने धर्म को समझ
इसे धारण कर !
दार्शनिकों ने जीवन को
नाटक कहा !
विद्वानों ने इसे - कर्म कहा !
गुरु रवीन्द्र ने इसे- स्वप्न कहा !
हम पढ़ सके सिर्फ उसे ही -
जो गुजर गया !
जो बीत गया उसका विश्लेषण किया !
भविष्य में बचा केवल
कल्पना ,सोच ,विचार, संशय ,आशा -निराशा
और परियोजना !
क्या सच होगा ,क्या ठीक है -नहीं जानते !
इस रंग मंच पर अभिनय करना ही होता है !
हम खुद ही इसके पात्र और रचनाकार हैं !
नायक होंगे या खलनायक
यह बुद्धि के निर्णय पर है!
परिणाम भी अज्ञात होता है !
पर परिष्कृत कर्म ,धर्म और नियम
विनय देता है !
सफल बनाता है !
क्या सच होगा ,क्या ठीक है -नहीं जानते !
इस रंग मंच पर अभिनय करना ही होता है !
हम खुद ही इसके पात्र और रचनाकार हैं !
नायक होंगे या खलनायक
यह बुद्धि के निर्णय पर है!
परिणाम भी अज्ञात होता है !
पर परिष्कृत कर्म ,धर्म और नियम
विनय देता है !
सफल बनाता है !
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