गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

नायक

                                   नायक 

जीवन का रहस्य !
कृष्ण भी नहीं समझ सके 
कि क्या होगा आगे !
नियति के आगे झुकना पड़ा !
बहुत चाहा पर युद्ध नहीं रुका !
कहा -'अर्जुन सुन '
तू केवल कर्म को कर !
अपने धर्म को समझ 
इसे धारण कर !
दार्शनिकों ने  जीवन को 
नाटक कहा !
विद्वानों ने इसे - कर्म कहा !
गुरु  रवीन्द्र  ने इसे- स्वप्न कहा !
हम पढ़ सके सिर्फ उसे ही -
जो गुजर गया !
जो बीत गया उसका विश्लेषण किया !
भविष्य में बचा केवल 
कल्पना ,सोच ,विचार, संशय ,आशा -निराशा 
और परियोजना !
क्या सच होगा ,क्या ठीक है -नहीं जानते !
इस रंग मंच पर अभिनय करना ही होता है !
हम खुद ही इसके पात्र और रचनाकार हैं !
नायक होंगे या खलनायक
यह बुद्धि के निर्णय पर है!
परिणाम भी अज्ञात होता है !
पर परिष्कृत कर्म ,धर्म और  नियम
विनय देता है !
 सफल बनाता है !












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