गुरुवार, 30 नवंबर 2023

साथ चलो

 मैंने तुम्हें पुकारा नहीं 

अकेली ही चली 

मन की दुविधा मुक्त नहीं होने देती 

पर चाहा है की साथ चलो 

आंधी ,झंझा सब  पार करते चलती रही 

राह मे मिले कलरवित पक्षी ,निनादित नदियाँ 

कुछ दरख्त जो  मजबूत खड़े थे 

अपनी हरी डालियों ,फूलों ओर फलों से भरे 

सबसे बेखबर ,खुश 

मैँ उनको भी पीछे छोड़ चलती गई 

सूरज डूबता देखा  रुकना ही पड़ा 

सुबह फिर चलना ही था 

कभी मिलूँगी खुद से जब 

तों कौन फिर बताएगा 

मेरा वजूद है काहाँ /?

पुकार तो नहीं ,पर चाहा जरूर 

तुम मेरे साथ चलो ||